रिपोर्ट आमिर अंसारी
इमरान खान ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर 2 साल पूरे कर लिए हैं लेकिन देश में चुनौतियों का अंबार है। महंगाई, बेरोजगारी और विदेशी कर्ज इमरान के माथे पर बल ला रहे हैं। कश्मीर मुद्दे पर भी इमरान अकेले पड़ गए हैं।
बतौर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने 2 साल पूरे कर लिए हैं। हालांकि इमरान खान जिन वादों के साथ सरकार में आए थे, वे पूरे होते नहीं नजर आ रहे हैं। पाकिस्तान की सेना शक्तिशाली तो है लेकिन उसके पास भी इमरान का विकल्प नहीं है। क्रिकेट से राजनीति में आए इमरान खान ने 18 अगस्त 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। तब लगा था कि देश में आमूल-चूल बदलाव आएगा। लेकिन लगता है कि पाकिस्तान में जिन नारों के साथ इमरान खान सत्ता पर काबिज हुए थे तो वे उन्हें पूरा करने में नाकाम नजर आ रहे हैं।
इमरान ने 2 साल पहले चुनाव में 'नया पाकिस्तान' का नारा दिया था लेकिन देश के हालात जस-के-तस हैं। महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। 2 साल बाद यह सवाल सभी के दिमाग में कौंधने लगा कि क्या इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने जो वादे किए थे, वे पूरे हुए या फिर वे पूरे होने की प्रक्रिया में हैं?
2 साल पहले इमरान खान को लेकर एक सकारात्मक संकेत मिल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि वे देश के भीतर की समस्याओं का हल करेंगे और पड़ोसी देश के साथ रिश्ते को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएंगे, हालांकि दोनों ही मामलों में इमरान खान अभी तक सफल होते नहीं दिख रहे हैं। भारत के साथ पाकिस्तान का संवाद बंद है।
वैसे इमरान की छवि साफ मानी जाती है और बाकी नेताओं के मुकाबले वे अब भी ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। 14 अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इमरान खान ने देश को संबोधित करते हुए कहा था कि पिछले 2 साल मुश्किलभरे रहे लेकिन चीजें अब सुधर रही हैं। उन्होंने कहा, 'हमारे पास विदेशी मुद्रा नहीं थी और हम अपने कर्ज नहीं चुका पाए।' इमरान ने आगे कहा, 'हम एक बड़े संकट से बच गए हैं, क्योंकि हमने भुगतान में चूक नहीं की, लेकिन मुझे पता है कि यह जनता के लिए आसान नहीं रहा और मैं समझ सकता हूं कि वह कठिनाइयों का सामना कर रही थी और अब भी कर रही है।'
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री का कर्ज चुकाने को लेकर संबोधन करना वहां के आर्थिक हालात को दर्शाता है। इस्लामाबाद स्थित पत्रकार अब्दुल सत्तार डीडब्ल्यू से कहते हैं, 'जाहिर तौर पर जनता परेशान है। उन्होंने जो इमरान खान से उम्मीदें लगाई हुई थीं, उनमें से कोई भी उम्मीद पूरी नहीं हुईं। महंगाई के अलावा देश में बेरोजगारी बढ़ी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ कोविड-19 के कारण 1.8 करोड़ लोगों के रोजगार प्रभावित हुए हैं और 1,000 संस्थानों पर इसका सीधा असर हुआ है।'
सत्तार बताते हैं कि इमरान खान ने सरकारी संस्थानों में खाली पड़े 74 हजार पद नहीं भरे। सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा है लेकिन इस गुस्से को उभारने का काम राजनीतिक दल करते हैं। सत्तार के मुताबिक 'राजनीतिक पार्टियां इसलिए कुछ नहीं कर सकतीं, क्योंकि उन्हें पता है कि सेना इमरान खान के साथ है और ऐसे में कोई भी आंदोलन इमरान के खिलाफ ताकतवर नहीं हो सकता है। पहले जब भी कोई आंदोलन सरकार के खिलाफ हुआ है तो उसके पीछे सेना का छिपा हुआ समर्थन था।'
विपक्षी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने इमरान खान सरकार के 2 साल पूरे होने पर ट्वीट कर कहा, 'इमरान ने हमारे देश के इतिहास में हमें सबसे खराब अर्थव्यवस्था दी है, कश्मीर से लेकर सऊदी अरब तक विदेश नीति में विफलता, लोकतंत्र और मानवाधिकार को चोट पहुंचाई है, बेरोजगारी उच्चतम स्तर पर है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशन ने कहा था कि भ्रष्टाचार पहले से अधिक है।'
दूसरी ओर सत्तार कहते हैं कि इमरान खान की सरकार जब से आई है, अनौपचारिक क्षेत्र पर अधिक मार पड़ी है। उनके मुताबिक सरकार ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर छोटे होटल, व्यापार और बारात घर गिराए हैं, जहां पर लाखों लोग काम करते थे और अब वे बेरोजगार हैं। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में अनौपचारिक क्षेत्र में करीब 7 करोड़ लोग काम करते हैं।
कश्मीर, कर्ज और चीन
सऊदी अरब और यूएई से पाकिस्तान को सबसे ज्यादा पैसे भेजे जाते हैं। सऊदी अरब में पाकिस्तान के 1 करोड़ श्रमिक काम करते हैं। लेकिन पिछले दिनों कश्मीर पर विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के बयान से सऊदी अरब नाराज हो गया।
जानकारों का कहना है कि सऊदी और यूएई से तनाव बरकरार रहा तो पाकिस्तान के लिए परेशानी बढ़ेगी। हो सकता है कि सऊदी अरब उधार पर तेल देना बंद कर दे। इस बीच जब दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ने लगे तो पाकिस्तान की तरफ से सऊदी अरब न तो राष्ट्रपति गए और न ही प्रधानमंत्री। रिश्तों को सुधारने के लिए पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को भेजा गया और कहा गया कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने को लेकर यह दौरा है। लेकिन दुनिया जानती है कि कुरैशी के कश्मीर मुद्दे पर आईओसी पर दिए बयान से सऊदी भड़का हुआ था।
चीन और पाकिस्तान की गहरी होती दोस्ती
रिश्ते इतने तल्ख हो गए कि पाकिस्तान को कर्ज चुकाने के लिए चीन से 1 अरब डॉलर का कर्ज लेना पड़ा था। सऊदी अब 1 अरब डॉलर और चुकाने को कह रहा है। हाल के सालों में पाकिस्तान की तुलना में अरब जगत से भारत के रिश्ते ज्यादा मजबूत हुए हैं। पाकिस्तान के विरोध के बावजूद 2019 में पहली बार ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन में विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत को आमंत्रित किया गया था। पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर कश्मीर के मुद्दे पर वैसे समर्थन नहीं मिला, जैसा कि वह चाहता है। वह जब कश्मीरियों को कथित उत्पीड़ित बताता है तो वह चीन में उइगुर मुसलमानों के साथ होने वाली ज्यादती पर चुप्पी साध लेता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसे चीन से कर्ज के अलावा देश में निवेश भी मिल रहा है।
महंगाई
पाकिस्तानी मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इमरान के कार्यकाल में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक जरूरी चीजें जैसे कि चीनी, आटा, दाल, सब्जी, तेल के दाम बेकाबू हो गए हैं। बीते 2 सालों में चीनी का दाम करीब 80 फीसदी, आटा 70 फीसदी और खाने का तेल 68 फीसदी तक महंगा हुआ है। सत्तार बताते हैं, 'जनता गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और जरूरी चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से बेहद परेशान है। साथ ही कराची और अन्य शहरों में बिजली कटौती बड़ी समस्या है। नवाज शरीफ के दौर में ग्रामीण इलाकों में बिजली कटौती की समस्या कम हो गई थी, अब वह दोबारा बढ़ गई है जिससे लोगों में गुस्सा बढ़ा है।'
दूसरी ओर इमरान खान की सरकार देश की अर्थव्यवस्था को लेकर अपनी पीठ थपथपाने से पीछे नहीं हट रही है। प्रधानमंत्री के वित्त सलाहकार हाफिज शेख का कहना है कि यह पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का ऐतिहासिक प्रदर्शन ही है जिसके कारण देश का चालू खाता घाटा 20 अरब डॉलर से घटकर 3 अरब डॉलर पर आ पाया है। उनका यह भी कहना है कि सरकार ने 5,000 अरब रुपए बतौर कर्ज चुका दिए हैं। हालांकि अपने वादों को पूरा करने के लिए इमरान खान के पास अब भी 3 साल का वक्त है।