क्या जर्मनी वाकई रूसी गैस का तोड़ ढूंढ सकता है?

DW
रविवार, 26 जून 2022 (07:50 IST)
अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए जर्मनी काफी हद तक रूसी गैस पर निर्भर है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि अगर रूस से गैस की आपूर्ति बंद हो जाती है, तो जर्मनी के पास दूसरा विकल्प क्या है?
 
जर्मनी के पास रूसी गैस के अलावा दूसरा विकल्प क्या है?जर्मनी रूसी प्राकृतिक गैस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है और इसके विकल्प खोजने में जुटा है। जर्मनी ने गैस की आपूर्ति से निपटने के तीन चरणों वाली आपातकालीन योजना बनाई है। अब इसके दूसरे चरण ‘अलार्म' स्तर की घोषणा कर दी गई है। इस घोषणा के बाद से देश के उपभोक्ताओं के लिए गैस की कीमतें बढ़ सकती हैं। तीसरे चरण में गैस राशनिंग शामिल हो सकती है। दूसरे शब्दों में कहें, तो सभी के लिए गैस के इस्तेमाल की सीमा तय की जा सकती है। ऐसे में आने वाले महीनों में उद्योग और सामान्य उपभोक्ताओं के लिए गंभीर ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है।
 
हालांकि, इस ऊर्जा संकट से निपटने के कई संभावित समाधान मौजूद हैं। जैसे, दूसरे स्रोतों से गैस खरीदना, तरल गैस, अपनी खपत कम करना और कोयले के इस्तेमाल को बढ़ावा देना।
 
वहीं, इसी समय जर्मनी की सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार में शामिल सबसे छोटी पार्टी नवउदारवादी फ्री डेमोक्रेट का कहना है कि देश में मौजूद परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाए। साथ ही, फ्रैकिंग की प्रक्रिया के जरिए प्राकृतिक गैस निकालने पर लगी हुई पाबंदी को हटाया जाए।
 
इन तमाम उपायों के बीच बड़ा सवाल यह है कि कौन से कदम ऊर्जा संकट को दूर करने में मदद करेंगे। इनका जलवायु और पर्यावरण पर क्या असर होगा।
 
क्या परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को अधिक समय तक चलाना चाहिए?
फिलहाल, जर्मनी में केवल तीन परमाणु ऊर्जा संयंत्र ग्रिड से जुड़े हुए हैं। जैसे ही हालात सामान्य होंगे, उन्हें 2022 के अंत तक बंद कर दिया जाएगा, क्योंकि जर्मनी ऊर्जा के इस विवादास्पद स्रोत का इस्तेमाल पूरी तरह बंद करना चाहता है।
 
जर्मनी के फ्राइबुर्ग में फ्राउनहॉफर इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर एनर्जी के ब्रूनो बुर्गर कहते हैं, "जर्मनी लंबे समय से परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की दिशा में काम कर रहा है। इस वजह से परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में कर्मचारियों की संख्या भी कम कर दी गई है। साथ ही, नए फ्यूल रॉड के लिए ऑर्डर देने भी बंद कर दिए गए हैं।”
 
न्यूक्लियर एनर्जी इंडस्ट्री एसोसिएशन नए फ्यूल रॉड की खरीद को फिलहाल व्यवहारिक मानता है। एसोसिएशन के प्रवक्ता निकोलस वेंडलर के मुताबिक, "आने वाली सर्दियों में, परमाणु ऊर्जा संयंत्र सीमित उत्पादन के साथ काम करना जारी रख सकते हैं।”
 
हालांकि, एक समस्या और है। बुर्गर कहते हैं कि जर्मनी अपनी खपत का 20 फीसदी यूरेनियम रूस से खरीदता है। वहीं, 20 फीसदी कजाखस्तान से। कजाखस्तान पर भी रूस का ही प्रभाव है। इसका मतलब यह है कि यूरेनियम के लिए भी वैकल्पिक स्रोत तलाशने की जरूरत होगी। इसके अलावा, नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण में दशकों लगेंगे।
 
जर्मनी के मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से 2021 में कुल 34.5 टेरावॉट प्रति घंटे बिजली का उत्पादन हुआ। दूसरे शब्दों में कहें, तो 34.5 अरब किलोवॉट प्रति घंटा, जबकि, पवन ऊर्जा से 113 टेरावॉट प्रति घंटे का उत्पादन हुआ, जो परमाणु ऊर्जा के मुकाबले तीन गुना अधिक है। 
 
परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल से सीओ2 का उत्सर्जन नहीं होता है, लेकिन यूरेनियम के खनन के दौरान रेडियोधर्मी कचरा निकलता है। जर्मनी के पास इस खतरनाक कचरे को सुरक्षित तरीके से लंबे समय के लिए जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
 
वहीं, जलवायु संकट की वजह से जैसे-जैसे जर्मनी का मौसम गर्म होता है, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को कई दिनों या हफ्तों के लिए भी बंद करना पड़ता है। इसकी वजह यह है कि तापमान बढ़ने के कारण से नदी का पानी भी गर्म होता है और संयंत्रों को ठंडा रखने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
 
क्या जर्मनी फ्रैकिंग शुरू कर सकता है?
जर्मनी में प्राकृतिक गैस की जितनी जरूरत है उसका 5 फीसदी हिस्सा बलुआ पत्थर के भंडार में ड्रिलिंग करके निकाला जाता है। जर्मन फेडरल एसोसिएशन ऑफ नेचुरल गैस, पेट्रोलियम एंड जियोएनर्जी (बीवीईजी) के अनुसार, देश में फिलहाल 32 अरब घन मीटर प्राकृतिक गैस का सुरक्षित भंडार है, जो लगभग 320 टेरावॉट प्रति घंटे ऊर्जा के बराबर है। 
 
जर्मन फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर जियोसाइंसेज एंड नेचुरल रिसोर्सेज का अनुमान है कि लगभग 450 अरब घन मीटर (4500 टेरावॉट प्रति घंटे) प्राकृतिक गैस कोयले की चट्टानों में और अन्य 2,300 अरब घन मीटर (23,000 टेरावॉट प्रति घंटे) अवसादी चट्टानों में मौजूद हैं।
 
इन गैसों को फ्रैकिंग की प्रक्रिया के जरिए ही निकाला जा सकता है, लेकिन जर्मनी ने इस प्रक्रिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसकी वजह यह है कि फ्रैकिंग में इस्तेमाल होने वाले रसायन पर्यावरण और भूजल को प्रदूषित करते हैं। अगर प्रतिबंध हटा भी दिया जाता है, तो फ्रैकिंग के जरिए गैस का उत्पादन करके इसे आम लोगों तक उपलब्ध कराना इस साल सर्दी के मौसम तक संभव नहीं है। अगली सर्दी के मौसम तक भी फ्रैकिंग के जरिए निकाली गई गैस इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हो जाएगी, इसकी भी गारंटी नहीं है।
 
बीवीईजी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी लुडविष मोएहरिंग ने कहा, "अगर हम फ्रैकिंग का इस्तेमाल शुरू भी करते हैं, तो उत्पादन शुरू होने में शायद चार या पांच साल लग सकते हैं। राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर विरोध की वजह से बीवीईजी इस मामले में कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकता। यह निर्णय पूरी तरह से जर्मन सरकार को ही लेना है।”
 
इसके साथ, पर्यावरण से जुड़ी एक बड़ी चिंता भी है। ऊर्जा वैज्ञानिक बुर्गर कहते हैं, "उत्पादन के दौरान तीन से पांच फीसदी गैस सीधे वातावरण में जा सकती है। यह विनाशकारी है, क्योंकि मीथेन सीओ2 की तुलना में ज्यादा हानिकारक है।” प्राकृतिक गैस मुख्य रूप से मीथेन से बनी होती है।
 
क्या पवन और सौर ऊर्जा अल्पकालिक समाधान हैं?
अप्रैल में, जर्मन सरकार ने अक्षय ऊर्जा के विस्तार के लिए नए नियमों का एक महत्वाकांक्षी पैकेज पेश किया है, लेकिन वे अभी तक औपचारिक रूप से लागू नहीं हुए हैं। जर्मन विंड एनर्जी एसोसिएशन के फ्रांक ग्रुनाइजेन के अनुसार, फिलहाल करीब 10,000 मेगावाट की कुल पवन ऊर्जा परियोजनाओं को मंजूरी मिलना बाकी है। औसतन, हर विंड टरबाइन की प्रक्रिया पूरी होने में छह साल का समय लगता है। ऐसे में इस साल के अंत तक पर्याप्त नए विंड टरबाइन नहीं लग सकते।
 
सौर ऊर्जा की भी यही स्थिति है। हालांकि, फोटोवोल्टिक और सोलर थर्मल सिस्टम का उत्पादन किया जा सकता है और इन्हें कम समय में इस्तेमाल के लिए तैयार किया जा सकता है। जर्मन सोलर इंडस्ट्री एसोसिएशन के प्रबंध निदेशक कार्स्टन कोएर्निश कहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से बाधित हुई आपूर्ति श्रृंखला अभी भी सामान्य नहीं हुई है। अगर इस क्षेत्र में तेजी से विस्तार करना है, तो नौकरशाही से जुड़ी बाधाओं को कम करना होगा। साथ ही, ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद देनी होगी।
 
कोएर्निश का अनुमान है कि वाणिज्यिक साइटों पर स्थापित एक हजार से ज्यादा सोलर प्लांट से ग्रिड में बिजली भेजने की अनुमति नहीं है, क्योंकि ऐसा करने की शर्तों को दो साल पहले बदल दिया गया था। उन्होंने कहा, "यह लाखों किलोवाट घंटा बिजली है जो ग्रिड में नहीं जा रही है।”
 
जर्मन बायोगैस एसोसिएशन की प्रवक्ता आंद्रिया हॉर्बेल्ट ने कहा कि बायोगैस संयंत्र तेजी से अपने उत्पादन को 95 टेरावॉट प्रति घंटे से 120 टेरावॉट प्रति घंटे प्रति वर्ष तक बढ़ा सकते हैं, लेकिन फिलहाल ऐसा करने पर मनाही है। इस तरह के कदम को पुराने अक्षय ऊर्जा स्रोत अधिनियम द्वारा रोका गया है, जिसके तहत उत्पादन 95 फीसदी पर सीमित है। सामान्य स्थितियों में, बायोगैस संयंत्रों से हर वर्ष 2030 तक 230 टेरावॉट प्रति घंटे से अधिक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। हॉर्बेल्ट ने कहा, "यह मौजूदा समय में रूस से आने वाली प्राकृतिक गैस के करीब 42 फीसदी हिस्से के बराबर होगा।”
 
ऊर्जा की कम खपत और कोयले के इस्तेमाल को बढ़ावा
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च (डीआईडब्ल्यू) के अनुसार, रूस से आयात की जा रही ऊर्जा के स्रोत के विकल्प के तौर पर कुछ समय के लिए कोयले के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐसे में, अधिक बिजली पैदा करने के लिए लिग्नाइट और कठोर कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की आवश्यकता होगी।
 
इसके अलावा, जो बिजली संयंत्र बंद हो गए हैं, लेकिन ग्रिड के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रखे गए हैं उन्हें फिर से चालू करना होगा। जर्मनी के आर्थिक मामलों और जलवायु कार्रवाई मंत्रालय ने पहले ही बिजली संयंत्र संचालकों को अपने संयंत्रों को जल्द से जल्द चालू करने के लिए तैयार रहने को कहा है।
 
कम से कम कितनी ऊर्जा में काम चल सकता है, इसका अनुमान लगाते हुए डीआईडब्ल्यू ने कहा कि 2023 में कोयले से चलने वाले संयंत्रों से 41 से 73 टेरावॉट प्रति घंटे बिजली की आवश्यकता होगी। इसके बावजूद, जर्मनी 2030 तक कोयला और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, दोनों को चरणबद्ध तरीके से बंद कर सकता है। हालांकि, ऐसा तभी हो सकता है जब जर्मन सरकार की व्यापक योजना के मुताबिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार किया जाए। उस स्थिति में कोयले से चलने वाले संयंत्रों को 2024 की शुरुआत से धीरे-धीरे बंद किया जा सकता है।
 
फ्राउनहॉफर इंस्टीट्यूट आईएसई के ब्रूनो बुर्गर के अनुसार, कोयले के जलने पर प्राकृतिक गैस की तुलना में औसतन दोगुना सीओ2 निकलता है। वहीं, लिग्नाइट के जलने पर यह ढाई गुना ज्यादा निकलता है। हालांकि, उत्पादन और एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के दौरान मीथेन गैस निकलने की वजह से प्राकृतिक गैस भी जलवायु के अनुकूल विकल्प नहीं है।
 
खपत कम करना भी बेहतर उपाय
डीआईडब्ल्यू, वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र फोरशुंगसेंट्रुम ययूलिश और जर्मन एसोसिएशन ऑफ एनर्जी एंड वाटर इंडस्ट्रीज (बीडीईडब्ल्यू) सभी इस बात से सहमत हैं कि रूस से आयात होने वाली प्राकृतिक गैस को किसी भी दूसरे विकल्प से पूरी तरह नहीं बदला जा सकता, भले ही जर्मनी कोई भी कदम उठाए। कुल मिलाकर बात यह है कि ऊर्जा की खपत कम करनी चाहिए।
 
उदाहरण के लिए, बीडीईडब्ल्यू का कहना है कि घरों एवं अन्य जगहों को गर्म करने में जो ऊर्जा खपत होती है उसे बचाया जा सकता है। कारोबार और सेवा क्षेत्र में 10 फीसदी तक ऊर्जा बचाई जा सकती है। वहीं, निजी घरों में 15 फीसदी तक ऊर्जा बच सकती है। डीआईडब्ल्यू का कहना है कि ऊर्जा की मांग को कम करने के लिए, ‘जितनी जल्दी हो सके ऊर्जा बचत से जुड़े अभियान शुरू करने चाहिए।' साथ ही, अन्य उपाय अपनाने चाहिए।
 
रिपोर्ट: ज्यांनेटे सीविंक

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