Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

हिंदुओं के लिए क्या है मंदिर?

हमें फॉलो करें हिंदुओं के लिए क्या है मंदिर?
, मंगलवार, 4 दिसंबर 2018 (12:46 IST)
हिंदू धर्म में क्या मंदिर का वही स्थान है जो मुसलमानों के लिए मस्जिद का है? कुछ लोग मंदिरों को धार्मिक बाध्यता नहीं मानते तो दूसरे मानते हैं कि मंदिरों की हिंदू धर्म में अपनी उपयोगिता है। हिंदू धर्म में मंदिर क्या है?
 
 
केरल के सबरीमाला मंदिर के मामले में जब सुप्रीम कोर्ट महिलाओं को मंदिर जाने की इजाजत देता है तो इसका विरोध करने आम जन समेत राजनीतिक पार्टियां सड़कों पर उतर आती हैं। भीड़ धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों की दुहाई देती है और पवित्रता के मुद्दे को उठाती है। दूसरी तरफ अयोध्या विवाद में बाबरी मस्जिद का विध्वंस और विवादित जमीन का मसला सालों से अदालतों की सुनवाई और आंदोलन देख रहा है। विवादित जमीन पर राम मंदिर बनाने की कई संगठन और गुट पैरवी करते हैं दूसरी तरफ विरोध करने वालों के पास भी अपनी दलीलें हैं। कुछ लोगों के लिए यह उनके आराध्य की जन्मभूमि तो कुछ लोगों के लिए उनके उपासना की जगह। पूरी स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए डीडब्ल्यू हिंदी ने हिंदू धर्म में मंदिरों की जरूरत के तार्किक पहलू को समझने की कोशिश की।
 
 
क्या है मंदिर का मतलब?
सबसे पहला सवाल उठता है कि आखिर मंदिर क्या है और हिंदू धर्म में मंदिरों की क्या महत्ता है? मंदिर होना क्यों जरूरी है और क्या किसी धर्मशास्त्र में मंदिरों का उल्लेख किया गया है?
 
 
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी कहते हैं, "वैदिक काल में किसी मूर्ति पूजा का जिक्र नहीं आता है, मंदिर भी खुले प्रांगण रहे होंगे जहां खानाबदोश और बंजारों से जाति समुदाय में ढल रहे लोग अपने कुल चिन्ह रखते होंगे।" उन्होंने कहा कि जब खानाबदोश, बंजारे लोग एक जगह ठहर कर जनजातियों और समूहों में रहने लगे तो आपस में पहचान स्थापित करने के लिए उन्होंने प्राकृतिक चीजों का कुल चिन्हों के रुप में इस्तेमाल शुरू किया होगा। दूसरी तरफ कुछ जानकार ये भी मानते हैं कि मंदिरों का हिंदू धर्म में खासा महत्व रहा है, लेकिन मंदिर जरूरी नहीं है। मंदिर न सिर्फ पूजा स्थल हुआ करते थे बल्कि ये सीखने-सिखाने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामाजिक बातचीत के केंद्र होते थे।
 
 
संस्कृति मंत्रालय के तहत आने वाली संस्था इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्ट्स के मेंबर सेक्रेटरी डॉक्टर सच्चिदानंद जोशी कहते हैं, "400 ईसा पूर्व से मंदिर के अवशेष मिलते हैं इसलिए यह माना जा सकता है कि मंदिर सदियों से मौजूद हैं।" उन्होंने कहा कि हर समुदाय के अपने अपने मंदिर थे, मसलन शैव मंदिर (शिव को मानने वाले), वैष्णव मंदिर (विष्णु को मानने वाले) ,शाक्त मंदिर (देवी को मानने वाले)। जोशी कहते हैं, "पुराने समय में मंदिरों को लेकर कोई बाध्यता नहीं थी, वे सामाजिक धार्मिक संगम के सबसे बड़े केंद्र थे। लेकिन जब भारतीय संस्कृति पर हमला बढ़ा खासकर हिंदू मंदिरों पर तो मंदिरों के तौर-तरीकों में कठोरता बढ़ी।"
 
 
सच्चिदानंद जोशी कहते हैं कि शास्त्रों में मंदिर बनाने की महत्ता बताई गई है। इसके साथ ही शास्त्रों में मंदिरों को बनाने की तकनीक और शैली का भी जिक्र हुआ है। पुराण साहित्य के विशेषज्ञ डॉक्टर देवदत्त पटनायक कहते हैं, "ईसाई और इस्लाम धर्म के विपरीत हिंदू धर्म में, कुछ भी लिखित रूप से नहीं मिलता जिसमें यह कहा गया हो कि हिंदू होने को कैसे व्यक्त किया जाना चाहिए। अलग-अलग समूहों के लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं।" उन्होंने कहा कि कुछ लोग मंदिर जाना पसंद करते हैं और कुछ नहीं करते। कुछ का मूर्तिपूजा में विश्वास है तो कुछ का नहीं।
 
 
हेरम्ब चतुर्वेदी ये भी कहते हैं, "बौद्ध धर्म आने के बाद ही मूर्ति पूजा, शाकाहार और अहिंसा की धारणा हिंदू समुदाय में नजर आती है।"
 
 
दूसरे धर्मों से अलग?
अब एक सवाल यह भी है कि क्या दूसरे धर्मों में धार्मिक स्थलों का वैसा ही महत्व है जैसा कि हिंदुओं के लिए मंदिरों का है?
 
 
इस के जवाब में पटनायक कहते हैं, "इस्लाम और ईसाई धर्म में मस्जिद और चर्च की भूमिका एक ऐसी जगह की रही है जहां इन धर्मों को मानने वाले इकट्ठा होते थे। लेकिन ताओ परंपराओं की ही तरह हिंदुओं के लिए मंदिर किसी देवी या देवता का घर है जहां श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं।" हालांकि वह अलग-अलग अवधारणाओं के अस्तित्व से भी इनकार नहीं करते हैं।
 
 
जोशी कहते हैं कि हर धर्म का धार्मिक स्थान होता है, जिसे महत्ता दी जाती है। ऐसा माना जाता रहा है कि धार्मिक स्थलों पर लोग पूजा-पाठ करते हैं। जोशी के मुताबिक, "हिंदुओं की अकसर धार्मिक अनुष्ठानों और मूर्ति पूजा के चलते आलोचना की जाती है लेकिन हर धर्म में ऐसे धार्मिक स्थल हैं। ईसाई धर्म में चर्च और कैथीड्रल हैं जहां लोग अनिवार्य रूप से जाते हैं। वहीं मुसलमान मस्जिद जाते हैं।"
 
 
इतिहासकार हेरम्ब चतुर्वेदी कहते हैं कि सनातन धर्म, दूसरे धर्मों के मुकाबले काफी पुराना है। उन्होंने कहा, "बौद्ध धर्म के बाद जो धर्म सामने आएं हैं उनमें आपको इस तरह की उपासना और आराधना की अवधारणा नजर आएगी।" हालांकि वह यह भी कहते हैं कि कुरान में कहीं मस्जिद की बात नहीं है और ना किसी शास्त्र में मंदिर का जिक्र आता है। वहीं जब धर्म के साथ परंपराएं और रीति-रिवाज जुड़ने लगे और पुरोहित वर्ग इसकी व्याख्या में सामने आए तब से धर्मों का एक अलग स्वरूप बन गया।
 
 
हिंदू धर्म या जीवन जीने का तरीका?
कुछ जानकार मानते हैं कि कोई भी धर्म तब तक ही धर्म है जब तक उसके साथ किसी भी प्रकार के कट्टर रीति रिवाज जुड़े नहीं हैं। बकौल चतुर्वेदी, "सारे धर्म जीवन जीने का तरीका है, तभी स्वर्ग और नरक, जन्नत और जहन्नुम सभी की एक जैसी ही अवधारणा ही है।"पटनायक के मुताबिक, "लोग लंबे वक्त से हिंदू धर्म को एक ग्रंथ, एक भगवान वाले यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की तरह मानकीकृत करने की कोशिश कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि इस भूमिका में पहले कभी समाज सुधारक हुआ करते थे, लेकिन अब उनकी जगह राजनेताओं ने ले ली है। पटनायक की नजर में मौजूदा राजनीतिक विचारधाराओं ने हिंदू धर्म को अलग ढंग से देखा है। हिंदू धर्म, समय और भूगोल के साथ बदलता रहा है और अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग रहा है। पटनायक कहते हैं कि इसे तय करने का कोई तरीका नहीं है।
 
 
जोशी भी कहते हैं कि हिंदू धर्म जीवन जीने का तरीका है। वह सनातन धर्म की बात करते हैं और बताते हैं कि आक्रमणकारियों के पहले हिंदू धर्म जैसा कुछ नहीं था। उन्होंने कहा, "सनातन धर्म बेहद ही लोकतांत्रिक रहा है जो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर विश्वास जताता है। इसके अपने तौर-तरीके, रीति रिवाज और पूजा पाठ करने के तरीके रहे हैं।" जोशी की माने तो सनातन धर्म में द्वैत और अद्वैत दोनों ही अवधारणाओं को सम्मान मिलता है और यह पूजा करने के तौर-तरीकों की आजादी देता है। बाहरी हमलों के बाद "हिंदू" शब्द प्रचलन में आया। जोशी मानते हैं कि भारत में धर्म की जो अवधारणा है वह दुनिया में व्याप्त धर्म की अवधारणा से काफी अलग है और यह एक लंबी बहस का विषय है।
 
 
बकौल जोशी, "आक्रमणकारियों ने ये समझ लिया था कि भारत में धर्म की जड़ें बहुत गहरी है। जब तक वह इस पर हमला नहीं करेंगे तब तक भारत का जीतना मुश्किल होगा। इसलिए उन्होंने मंदिर को तोड़ दिया, धर्म परिवर्तन पर जोर दिया।" वह कहते हैं कि यह कहानी समझना बहुत लंबी है, लेकिन जो कुछ भी हुआ इसके चलते हिंदू धर्म की परंपरा को बचाने के लिए एक कठोरता ने जन्म लिया। उन्होंने कहा कि इसके बाद ब्रिटिश शासन आया और उसने धर्म का इस्तेमाल कर समाज को राजनीतिक स्तर पर बांट दिया, और देश बंट गया। जोशी कहते हैं, " दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी धर्म के तत्व को बिना सोचे-समझे हम ब्रिटिश सरकार के सुझाए रास्ते पर ही चलते रहे।"
 
 
रिपोर्ट अपूर्वा अग्रवाल
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या नाश्ता करना सचमुच फ़ायदेमंद होता है?