Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं तलाक के मामले

हमें फॉलो करें भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं तलाक के मामले
, गुरुवार, 25 जुलाई 2019 (17:55 IST)
संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते दो दशकों में भारत में तलाक के मामले दोगुने बढ़ गए हैं। इस कारण देश में सिंगल मदर यानी अकेली माओं की तादाद भी बढ़ रही है।
 
संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस सप्ताह जारी "प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड्स विमेन 2019-2020 ''फेमिलीज इन ए चेंजिंग वर्ल्ड" शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महिलाओं के अविवाहित रहने के मामले बेहद कम हैं। 45 से 49 वर्ष की उम्रवर्ग वाली ऐसी महिलाओं की तादाद एक फीसदी से भी कम है जिन्होंने कभी शादी नहीं की। लेकिन बीते दो दशकों के दौरान तलाक के मामले दोगुने बढ़ गए हैं।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते मामलों के बावजूद महज 1.1 फीसदी महिलाएं ही तलाकशुदा हैं। इनमें भी शहरों में रहने वाली महिलाओं की तादाद ज्यादा है। इस वजह से अकेली माओं वाले परिवारों की तादाद बढ़ रही है। इसमें कहा गया है कि बीते दो दशकों के दौरान महिलाओं के अधिकार बढ़े हैं। लेकिन बावजूद इसके परिवारों में मानवाधिकार उल्लंघन और लैंगिक असमानता के मामले जस के तस है।
 
यह रिपोर्ट बताती है कि देश के विभिन्न हिस्सों में शादी की उम्र बढ़ी है। लेकिन जन्मदर में गिरावट आई है और साथ ही महिलाएं आर्थिक रूप से पहले से ज्यादा स्वायत्त हुई हैं। इसमें कहा गया है कि महिला अधिकारों की बेहतरी के बावजूद कई मामलों में महिलाओं की स्थिति जस की तस है। उनको अब भी पारिवारिक समेत कई मामलों में फैसले में अपनी राय देने का अधिकार नहीं है। अगर वे ऐसा करती भी हैं तो उनकी राय को खास तवज्जो नहीं दिया जाता। उनको अपने पति की मर्जी के हिसाब से विस्थापन का शिकार होना पड़ता है।
 
रिपोर्ट में नीति निर्धारकों, महिला अधिकार संगठनों और समाज के तमाम तबकों के लोगों से परिवारों को समानता और न्याय के ऐसे मंच में बदलने की अपील की गई है जहां महिलाएं अपनी पसंद-नापसंद खुल कर बता सकें और उनकी आवाज को समुचित तवज्जो मिले। इसके साथ ही उनको शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा का अहसास भी हो।
 
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में पारिवारिक कानूनों में कई सुधारों व बदलावों का भी सुझाव दिया है ताकि महिलाएं तय कर सकें कि वह कब और किससे शादी करेंगी, जरूरत पड़ने पर तलाक की संभावना रहे और पारिवारिक संसाधनों तक उनकी पहुंच आसान हो।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि एकल परिवारों की बढ़ती अवधारणा की वजह से देश में दंपतियों वाले परिवारों की तादाद बढ़ रही है। तलाक के बढ़ते मामलों की वजह से अकेली माओं वाले परिवारों की तादाद भी बढ़ रही है। देश में ऐसे परिवारों की तादाद 5।4 फीसदी तक पहुंच गई है। ऐसी महिलाओं की तादाद काफी ज्यादा है जिनको शादी के बाद पारिवारिक बाधाओं व दूसरी वजहों के चलते काम करने की इजाजत नहीं मिलती। यही वजह है कि एशिया के दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले भारत में शादी के बाद काम करने वाली महिलाओं की तादाद काफी कम है।
 
तलाक के मामलों में तेजी की वजह क्या है? 
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है। लेकिन समाजशास्त्रियों का कहना है कि इसकी कई वजहें हैं। एकल परिवारों में पति पत्नी दोनों के नौकरीपेशा होने की वजह से एक-दूसरे के लिए समय की कमी, बढ़ती असहिष्णुता, अहं का टकराव और कई मामलों में विवाहेत्तर संबंध इसकी प्रमुख वजह हैं। कई मामलों में पति पत्नी के बीच बढ़ते मतभेदों में दूर रहने वाले परिजन और करीबी लोग भी आग में घी डालने का काम करते हैं।
 
सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार दास कहते हैं, "पति पत्नी के कमाऊ होने की वजह से पत्नियां भी हर अहम फैसले में अपनी भागीदारी चाहती हैं। लेकिन पुरुष अपनी मानसिकता के चलते इस बात को अपने वर्चस्व और अधिकारों के अतिक्रमण के तौर पर लेते हैं। वे मानते हैं कि फैसले लेने का अधिकार सिर्फ उन्हें ही है। इसके अलावा रोजमर्रा के जीवन में बढ़ता तनाव भी पति पत्नी के बीच मतभेद बढ़ाता है।"
 
कई महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं ने महिला अधिकारों की बेहतरी के सरकारी दावों के बावजूद महिलाओं की ताजा स्थिति पर चिंता जताई है। महिलाओं व बच्चों के हितों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठन स्वाधीन की एक सदस्य मालिनी सेनगुप्ता कहती हैं, "संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट महिलाओं की स्थिति पर सरकारी दावों की पोल खोलती है। इससे साफ है कि एकल परिवारों के बावजूद अहम फैसलों में महिलाओं की राय की कोई अहमियत नहीं है। यह बेहद शोचनीय स्थिति है। केंद्र सरकार को इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए संबंधित कानूनों में जरूरी संशोधन की पहल करनी चाहिए ताकि महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिल सके।”
 
एक अन्य संगठन स्वयम से जुड़ी सुलग्ना भट्टाचार्य कहती हैं, "ज्यादातर परिवारों में महिलाओं को अब भी बराबरी का दर्जा हासिल नहीं है, भले ही वह महिला नौकरीपेशा हो और परिवार चलाने में पुरुषों के बराबर योगदान कर रही हो।” वह कहती हैं कि पितृसत्तात्मक मानसिकता इसकी एक प्रमुख वजह है। जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी कानूनों में तमाम संशोधनों के बावजूद परिवारों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलना दूर की ही कौड़ी लगता है।
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

ट्रंप को माथे पर बिठाने से यही हासिल होना था!