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भारत को नकदी से इतना प्यार क्यों है

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, गुरुवार, 14 नवंबर 2019 (14:17 IST)
शहरों और ग्रामीण इलाकों में एटीएम के रखरखाव की लागत बढ़ी है। गांवों में लोग डिजिटल पेमेंट की जगह नकद इस्तेमाल कर रहे हैं।
 
भारत में बड़ी संख्या में इंटरनेट और मोबाइल यूजर होने के बावजूद नकदी पर निर्भरता डिजिटल भुगतान की ओर जाने की प्रक्रिया को सुस्त कर सकता है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बहुत से लोगों के लिए आज भी कैश ही किंग है, क्योंकि सुविधा की कमी के कारण लोग रोजमर्रा के काम में नकदी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। महाराष्ट्र के सतारा जिले के किसान सुधीर शिंदे कहते हैं कि वे अपने बैंक से जरूरत से ज्यादा नकदी निकासी करते हैं, क्योंकि उनके गांव में मौजूद एटीएम महीनों से खराब है।
 
37 साल के गन्ना किसान शिंदे कहते हैं, 'अगर मुझे तत्काल पैसे की जरूरत पड़ती है तो मुझे इसके लिए 32 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा। यह हर वक्त संभव नहीं है। मैं हमेशा अपने हाथ में नकदी रखता हूं, यह सोचकर कि इसकी कहीं कभी भी जरूरत पड़ सकती है। परिवार से जुड़ी जरूरत, अस्पताल का खर्च या किसी और अचानक के काम के लिए।'
 
डिजिटल इंडिया का सपना
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 में एक झटके में 1,000 और 500 के बड़े नोट प्रचलन से बाहर कर दिए थे। उन्होंने इसका कारण भ्रष्टाचार पर आघात और कालेधन पर प्रहार बताया था। नोटबंदी के कारण 500 और 1,000 के नोट बाजार से हट गए और मोदी ने कहा कि इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, अवैध रूप से इकट्ठा किए धन उजागर होंगे और नकद का इस्तेमाल कम होगा। हालांकि बैंकों में 99.3 फीसदी पुराने नोट वापस लौट आए और बहुत मामूली हिस्सा ही सिस्टम में नहीं लौटा।
 
नोटबंदी के समय मूल्य के हिसाब से 500 और 1,000 रुपए के 15.41 लाख करोड़ रुपए के नोट चलन में थे। आरबीआई की एक रिपोर्ट कहती है कि इनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपए के नोट बैंकों के पास वापस आ गए और बंद किए गए नोटों में सिर्फ 10,720 करोड़ रुपए ही बैंकों के पास वापस नहीं लौटे।
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नकदी ही चाहिए
 
नोटबंदी का एक प्रमुख उद्देश्य नकद के इस्तेमाल को हतोत्साहित करना था लेकिन आर्थिक विकास दर में गिरावट के बावजूद भारत में नोट के इस्तेमाल का चलन तेजी से बढ़ा है। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के बाद नोटों के चलन में बढ़ोतरी हुई है। मार्च 2019 के अंत तक नकदी 17 फीसदी बढ़कर 21.1 लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच गई। नोटबंदी के पहले 17.74 लाख करोड़ मुद्रा ही चलन में थी।
 
आरबीआई का कहना है कि डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए उसने अत्याधुनिक भुगतान प्रणाली को विकसित किया है, जो कि कुशल, सुविधाजनक और सुरक्षित है। आरबीआई का कहना है कि इसके परिणामस्वरूप खुदरा डिजिटल भुगतान में तेजी से वृद्धि हुई है।
 
आरबीआई ने कहा है कि ई-पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए वह पार्किंग, पेट्रोल पंप और टोल शुल्क के लिए डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित कर रहा है। आरबीआई ने बैंकों से नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) करने पर ग्राहकों से शुल्क न वसूलने को कहा है। इस सुविधा के लिए अब 1 जनवरी 2020 से कोई शुल्क लागू नहीं होगा।
 
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक ब्रिक्स देशों में भारत में प्रति 1 लाख व्यक्ति पर सबसे कम एटीएम हैं। जानकारों के मुताबिक एटीएम संचालन की लागत बढ़ी है और इस बीच सॉफ्टवेयर भी महंगा हुआ है, साथ ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बीच फासला भी डिजिटल भुगतान की तरफ बढ़ने को प्रभावित कर रहा है।
 
एए/एनआर (रॉयटर्स)

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