भारत में फिलहाल बीएस-4 मानक उत्सर्जन मानक वाले वाहन चल रहे हैं। अप्रैल, 2020 से आने वाले नए वाहनों में बीएस-6 मानक का पालन किया जाएगा लेकिन इससे क्या फर्क पड़ेगा?
भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर बड़ी मंदी की चपेट में है। हर महीने आ रहे आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। ऑटोमोबाइल बनाने वाली कंपनियों के समूह एसआईएएम(सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैनुफक्चरर्स) का कहना है कि जुलाई महीने में वाहनों की बिक्री में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। यही वजह है कि अब कई कंपनियां अपनी फैक्ट्रियों को कुछ दिनों के लिए बंद कर रही हैं। इन सब के बीच दो शब्द अकसर सुनने को मिल रहे हैं। ये हैं बीएस-4 और बीएस-6। ऑटोमोबाइल उद्योग के जानकार मान रहे हैं कि मंदी के पीछे एक बड़ा कारण अप्रैल, 2020 से लागू हो रहे बीएस 6 एमिसन स्टैंडर्ड भी हैं। लेकिन इसका मतलब क्या है?
क्या है एमिसन स्टैंडर्ड?
एमिसन स्टैंडर्ड का हिंदी में अर्थ है उत्सर्जन मानक। कोई भी ऐसी चीज जो प्रदूषण पैदा करती है, उसके अधिकतम प्रदूषण उत्सर्जन की एक सीमा होती है। इस अधिकतम सीमा का उल्लंघन करने पर उस देश के कानून के मुताबिक सजा हो सकती है। वाहन भी प्रदूषण में अपना योगदान देते हैं। इसलिए इनके लिए भी उत्सर्जन मानक तय किए गए हैं। इन्हें व्हीकल एमिसन परफॉर्मेंस स्टैंडर्ड कहा जाता है।
वाहनों में ऊर्जा के लिए इंजन का इस्तेमाल होता है। इन इंजनों में डीजल, पेट्रोल या गैस का इस्तेमाल का ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है। इन वाहनों से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड और कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) जैसे कारक होते हैं। इसमें ग्रीन हाउस गैसें भी हैं जो जलवायु परिवर्तन की बड़ी वजह हैं। पीएम ऐसे सूक्ष्म कण होते हैं जो सांस के साथ हमारे शरीर में चले जाते हैं और जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं। ऐसे में इन पर नियंत्रण जरूरी है।
1990 के दशक से पहले वाहनों के लिए इस तरह के मानक नहीं थे। लेकिन जब वाहनों की संख्या और इनसे होने वाले प्रदूषण में बढ़ोत्तरी होने लगी तो इसको नियंत्रित करने के लिए मानक तय किए गए। पश्चिमी देशों और जापान ने सबसे पहले ऐसे मानक बनाए। 1992 में यूरोपियन यूनियन ने यूरो-1 मानक बनाए जो 1993 से लागू किए गए। इसके बाद बने सभी वाहनों से इन्हीं मानकों की सीमा में उत्सर्जन होता था। 1996 में यूरो-2 मानक और 2000 में यूरो-3 मानक लागू हुए। 2005 में यूरो 4, 2009 में यूरो-5 और 2014 में यूरो-6 मानक लागू हुए।
2000 से पहले वाहनों पर भारत में कोई उत्सर्जन मानक लागू नहीं थे। साल 2000 में पूरे भारत में बीएस-1 यानी भारत स्टेज 1 मानक लागू किए गए। ये यूरो-1 मानकों के समान थे। इसके बाद आए मानकों को अलग-अलग स्तरों पर लागू किया गया। बीएस-2 मानक साल 2001 में एनसीआर, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में लागू किया गया। 2003 में इसे 13 शहरों में किया गया। 2005 में इसे पूरे देश में लागू किया गया। इसी साल एनसीआर और 13 शहरों में बीएस-3 लागू कर दिया गया जो 2010 में पूरे देश में लागू हुआ। 2010 में ही एनसीआर और इन 13 शहरों में बीएस 4 लागू कर दिया गया जो 2017 से पूरे भारत में लागू हुए। लागू होने का मतलब जिस तारीख से नए मानक लागू हुए उस दिन के बाद रजिस्टर्ड सभी गाड़ियों को उन मानकों का पालन करना चाहिए। भारत सरकार ने तय किया कि वो बीएस-5 मानक को छोड़कर सीधे बीएस-6 मानक को अपनाएगी। 1 अप्रैल 2020 के बाद भारत में रजिस्टर होने वाले सभी वाहन बीएस-6 उत्सर्जन मानक वाले होने चाहिए।
क्या फर्क है बीएस-4 और बीएस-6 में?
बीएस-6 से सबसे पहला अंतर आता है प्रदूषण में कमी। डीजल और पेट्रोल दोनो में सल्फर होता है। जिस ईंधन में जितना सल्फर ज्यादा होता है उसमें उतनी ज्यादा ताकत और प्रदूषण होता है। डीजल में सल्फर ज्यादा होता है। बीएस-6 वाहनों के उत्सर्जन में सल्फर की मात्रा बीएस-4 की तुलना में पांच गुना तक कम होगी। बीएस-4 में यह मात्रा 50 पार्टिकल पर मिलियन होती है वहीं बीएस-6 में यह 10 पार्टिकल पर मिलियन हो जाएगी। साथ ही नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की मात्रा डीजल वाहनों में 68 प्रतिशत तक और पेट्रोल वाहनों में 25 प्रतिशत तक कम हो जाएगी। इससे ग्रीन हाउस गैसों का कम उत्सर्जन होगा।
तकनीक की बात करें तो वाहनों में ऑनबोर्ड डायग्नोस्टिक और रियल ड्राइविंग एमिसन तकनीक लगाई जाएगी। ऑनबोर्ड डायग्नोस्टिक से वाहन के इंजन में किसी भी तरह की परेशानी का संकेत मिलेगा और रियल ड्राइविंग एमिसन से वाहन द्वारा पैदा किए जा रहे उत्सर्जन की उसी समय जानकारी मिल जाएगी। डीजल वाहनों में डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (डीपीएफ) और सेलेक्टिव कैटलिस्ट रिडक्शन (एससीआर) का भी इस्तेमाल किया जाएगा। एससीआर नाइट्रोजन के ऑक्साइडों को दो अलग-अलग सामान्य उत्पादों नाइट्रोजन और भाप में बदल देगा। इसके लिए डीजल एक्जॉस्ट फ्ल्यूड यानी एडब्ल्यू का इस्तेमाल किया जाएगा। एडब्लू में गैर-आवेशित पानी और यूरिया होता है जो नाइट्रोजन के ऑक्साइडों को विघटित कर देता है। एडब्लू के लिए वाहन में फ्यूल टैंक की तरह एक टैंक लगेगा। इसकी कीमत करीब 127 रुपये लीटर के आसपास है। एक कार में डाला गया 1 लीटर एडब्लू करीब 1200 किलोमीटर चलने तक काम आएगा।
बीएस-6 का असर किस पर क्या होगा
बीएस-6 मानक लागू होने का असर ऑटोमोबाइल उद्योग के साथ-साथ इसके साथ जुड़े हुए सारे उद्योगों पर पड़ेगा। इसका असर ग्राहकों पर भी पड़ेगा।
ग्राहकों पर इसका पहला असर ये होगा कि वाहनों की कीमत बढ़ जाएगी। साथ ही बीएस-4 की तुलना में वाहन चलाना थोड़ा महंगा हो जाएगा। डीजल वाहनों की कीमतों पर ज्यादा असर होगा। डीजल कारों की कीमत करीब एक से डेढ़ लाख रुपये तक बढ़ जाएगी। पेट्रोल वाहनों की कीमतों में 20 से 50 हजार रुपये का इजाफा होगा। वाहन चलाने की बात करें तो बीएस-6 ईंधन में सल्फर की मात्रा कम होती है। इस वजह से वाहनों की ताकत भी कम हो जाएगी। डीजल वाहनों पर इसका ज्यादा असर दिखेगा।
एक बड़ा असर होगा ईंधन की उपलब्धता का। भारत में अधिकतर पेट्रोल और डीजल पंप बीएस-4 ईंधन बेच रहे हैं। शहरों में बीएस-6 ईंधन की पहुंच आसान होगी। लेकिन गांवों और कस्बों में ऐसा नहीं होगा। इन्हीं इलाकों में भारत की अधिकांश जनसंख्या रहती है। बीएस-6 वाहनों में बीएस-4 ईंधन डालना या बीएस-4 वाहनों में बीएस-6 ईंधन डालना वाहन के इंजन और मालिक की जेब दोनों के लिए ही सही नहीं होगा। क्योंकि बीएस-4 और बीएस-6 ईंधन में सल्फर की मात्रा में बहुत अंतर होगा जो इंजन को नुकसान करेगा।
ऑटोमोबाइल उद्योग पर असर
वाहन बनाने वाली कंपनियों को अपने वाहनों में अमूलचूल बदलाव करने होंगे। ऑटोमोबाइल उद्योग के जानकारों के मुताबिक उद्योग ने बीएस-5 मानकों को लागू करने के हिसाब से तैयारी कर ली थी। लेकिन सरकार ने बीएस-5 को छोड़कर बीएस-6 लागू करने का फैसला किया। अब बीएस-5 की जगह बीएस-6 वाहन बनाने में समय और पैसा भी लगेगा। सरकार ने 2016 में बीएस-5 को छोड़कर बीएस-6 अपनाने की घोषणा की थी। इससे वाहनों की कीमत भी बढ़ेगी और इस कारण से लोग गाड़ी कम खरीदेंगे।
दूसरा बड़ा असर ये है कि सरकार के इस कदम से एक उहापोह की स्थिति पैदा हो गई है। ग्राहकों को शंका है कि कहीं सरकार बीएस-4 वाहनों को पूरी तरह तो बंद नहीं कर देगी। जिससे पुराने बीएस-4 वाहन भी बंद हो जाएंगे। इसलिए वो बीएस-4 वाहन नहीं खरीद रहे। हालांकि सरकार ने यह साफ किया है कि पुराने बीएस-4 वाहन चलते रहेंगे। लेकिन सरकार के पुराने डीजल वाहनों पर लगाए कुछ प्रतिबंध उहापोह की स्थिति को बनाए हुए हैं।
ऑइल रिफाइनरियों पर असर
बीएस-6 मानक वाहनों के लिए ईंधन भी बीएस-6 मानक वाला चाहिए। ऐसे में रिफाइनरियों को भी बीएस-4 के साथ बीएस-6 ईंधन का उत्पादन करना होगा। इससे रिफाइनरियों की चालू लागत बढ़ेगी। इससे ईंधनों के दाम भी बढ़ सकते हैं। बीएस-6 से पर्यावरण और पर्यावरण से इंसानों को जरूर फायदा होगा। इससे बढ़ रहे जलवायु परिवर्तन पर रोक लगेगी। साथ ही प्रदूषण में भी कमी होगी।