भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर इस समय पिछले 18 साल में सबसे बुरी स्थिति का सामना कर रहा है। ऑटो मैन्युफैक्चरर्स के संगठन सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने मंगलवार को आंकड़े जारी किए जिसमें बताया गया है कि कारों की बिक्री पिछले महीने में 20.55 फीसदी घटकर 2,39,347 यूनिट पर आ गई है।
सियाम के अनुसार यह पिछले 18 साल की सबसे तेज गिरावट थी। इसके पहले सितंबर 2001 में पैसेंजर गाड़ियों की सेल्स में 21.91% की भारी कमी आई थी। जानकारों का मानना है कि सरकारी नीतियों, डीजल-पेट्रोल में तेजी जैसे कारणों से ऐसा हो रहा है।
इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि कारों को जीएसटी के सबसे ऊंचे स्लैब 28 फीसदी में रखा गया है, इससे कंपनियों की लागत बढ़ रही है। इसके अलावा रोजगार सेक्टर में धीमापन और पेट्रोल कीमतों में आई तेजी भी सेल्स में गिरावट की बड़ी वजह है।
गिरावट को देखते हुए कई नामी-गिरामी वाहन निर्माता कंपनियों ने प्रोडक्शन रोकने का फैसला लिया है। कई बड़ी ऑटो कंपनियां जैसे मारुति सुजुकी, महिंद्रा और टाटा मोटर्स ने अपने पिछले प्रोडक्शन के स्टॉक को क्लीयर करने के लिए प्रोडक्शन को रोक दिया है।
होंडा, रेनो-निसान और स्कोडा ऑटो भी अपने प्रोडक्शन को 10 दिनों के लिए बंद करने की तैयारी में है। इन कंपनियों ने जून के महीने में प्लांट शटडाउन की घोषणा की है।
इस स्थिति से उबरने के लिए सियाम के डायरेक्टर जनरल विष्णु माथुर का कहना है कि हमने कुछ मुद्दों और चिंताओं को लेकर सरकार से संपर्क किया है और उससे सभी श्रेणियों की गाड़ियों पर लगने वाले गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) को मौजूदा 28% से घटाकर 18% करने का अनुरोध किया है।
सियाम के डिप्टी डायरेक्टर जनरल सुगतो सेन के अनुसार सरकार को 'व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसी' बनानी चाहिए जिससे नई गाड़ियों के लिए बाजार बनाने में मदद मिलेगी। उनका कहना है कि हम सरकार से रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर वेटेड टैक्स डिडक्शन के तौर पर मिलने वाले इंसेंटिव का 200% का पुराना लेवल बहाल किए जाने की भी मांग कर रहे हैं।