फलस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम ले जाने के कदम से तीसरा इंतिफादा शुरू हो सकता है। लेकिन ये इंतिफादा असल में होता क्या है और पहले दो इंतिफादा कब और क्यों हुए।
इंतिफादा का अर्थ आमतौर पर "बगावत" या "विद्रोह" मान लिया जाता है। लेकिन अरबी भाषा में इसका अर्थ "उथल पुथल" या फिर किसी से "छुटकारा पाना" होता है। जब दशकों से इस्राएल और फलस्तीनियों के बीच जारी लड़ाई में इंतिफादा का इस्तेमाल होता है तो इसका मतबल है इस्राएली सेना के खिलाफ एक संगठित विद्रोह जिसे राजनीतिक और जमीनी, दोनों ही स्तरों पर फलस्तीनियों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। इससे पहले दो इंतिफादा हो चुके हैं। पहला इंतिफादा 1987 में शुरू हुआ और 1993 में खत्म। इसके बाद 2000 में शुरू हुआ इंतिफादा पहले कहीं ज्यादा खूनी था और चार साल तक चला।
अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से इस्राएल ले जाने के खिलाफ फलीस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास अब तीसरा इंतिफादा शुरू करने की बात कर रहा है। इस्राएल येरुशलम को अपनी राजधानी बताता है जबकि शहर के पूर्वी हिस्से पर फलस्तीनी भी अपना दावा जताते हैं। पूर्वी येरुशलम अभी इस्राएल के नियंत्रण में है और फलस्तीनी चाहते हैं कि जब उनका एक स्वतंत्र देश बने तो पूर्वी येरुशलम ही उसकी राजधानी हो। ऐसे में, अमेरिकी दूतावास को येरुशलम ले जाने के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के कदम को कई लोग इस्राएल के पाले में खड़े होने के तौर पर देख रहे हैं।
पहला इंतिफादा
पहला इंतिफादा 8 दिसंबर 1989 को शुरू हुआ। इसकी वजह चार फलस्तीनी मजदूरों की मौत बनी, जिन्हें ले जा रही एक कार में एक इस्राएली सैन्य ट्रक ने टक्कर मारी। हालांकि इस्राएलियों का कहना था कि ट्रक का ड्राइवर गाड़ी पर नियंत्रण खो बैठा था, लेकिन बहुत से अरब पर्यवेक्षक मानते हैं कि टक्कर जानबूझ कर मारी गयी ताकि इससे कुछ दिन पहले चाकू घोंपकर मारे गये एक इस्राएली सैनिक की मौत का बदला लिया जा सके।
फलस्तीनी मजदूरों की मौत के बाद इस्राएली सैनिकों के खिलाफ हिंसक दंगे शुरू हो गये। बताया जाता है कि इस्राएली सैनिकों ने इन्हें दबाने के लिए गोलियां चलायीं। आने वाले दिनों हिंसा और भड़कती गयी। पहले इस मुहिम को आम लोगों ने शुरू किया, लेकिन जल्द ही फलस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफत इससे जुड़ी गतिविधियों को निर्देशित करने लगे।
इसी के साथ बहुत से फलस्तीनियों ने इस्राएल में जाकर काम करने, टैक्स देने और इस्राएली सामान खरीदने से इनकार कर दिया। पहले इंतिफादा में ही हमास का जन्म हुआ और शेख अहमद यासीन ने मुस्लिम ब्रदरहुड और पीएलओ के धार्मिक सदस्यों की मदद से इस संगठन का गठन किया।
इस्राएल ने अधिकृत क्षेत्र में बगावत को दबाने के लिए कार्रवाई की। कर्फ्यू और बड़े पैमानों पर गिरफ्तारी के अलावा पिटाई और उत्पीड़न के तौर तरीके भी इस्राएली सेना ने इस्तेमाल किये जिससे यह संकट और गंभीर रूप लेता गया। बरसों तक चली हिंसा के बाद 1993 में इस्राएल सरकार और पीएलओ के बीच ओस्लो शांति समझौते के साथ पहला इंतिफादा खत्म हुआ। इसी समझौते के तहत फलस्तीनी प्राधिकरण का गठन हुआ और अधिकृत क्षेत्रों में उसे शासन का अधिकार मिला। हालांकि हमास ने इसे खारिज कर दिया।
पहले इंतिफादा में कितने लोग मारे गये, इसे लेकर अलग अलग आंकड़े हैं। इस्राएल के एक एनजीओ बितसलेम का दावा है कि 1993 के अंत तक 1,203 फलस्तीनी और 179 इस्राएली मारे गये। इस्राएल की तरफ से बर्बर कार्रवाई के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी छवि को धक्का लगा।
दूसरा इंतिफादा
28 सितंबर 2000 को इस्राएली राजनेता आरियल शेरोन ने इस्राएल के नियंत्रण वाले पूर्वी येरुशलम का दौरा किया। इससे दूसरा इंतिफादा भड़का। फलस्तीनी नेताओं ने इसे अधिकृत इलाके और येरुशलम के टेंपल माउंट पर स्थित अल अक्सा मस्जिद पर इस्राएली दावेदारी के तौर पर देखा। इस दौरे के वक्त शेरोन इस्राएली संसद में विपक्ष के नेता थे। लेकिन इसके कुछ महीनों के भीतर ही वह प्रधानमंत्री चुन लिये गये।
हमास ने 6 अक्टूबर 2000 को "आक्रोश दिवस" मनाया और लोगों से इस्राएली सेना के ठिकानों पर हमला करने को कहा है। इससे इस्राएल-फलस्तीन विवाद और जटिल हो गया, जो बरसों बाद आज भी खिंचता चला जा रहा है। पहले इंतिफादा में फलस्तीनी इस्राएली सेना पर पत्थर और बोतल बम ही फेंकते थे लेकिन दूसरे इंतिफादा में हमास और अन्य जिहादी समूह इस्राएली सेना के साथ बंदूकों और गोलियों के साथ लड़े और इस्राएली शहरों पर भी गोलाबारी भी की गयी। दोनों ही पक्षों की तरफ से खूब खून खराबा किया गया।
हमास ने आत्मघाती हमलावरों के जरिए इस्राएली आम लोगों को मारा। उन्होंने बसों, रेस्तराओं और होटलों को निशाना बनाया। बदले में, इस्राएल ने गाजा पर हवाई हमले किये और अधिकृत इलाके में बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई की। इंतिफादा के कारण इस्राएली अधिकारियों ने "आतंकवाद विरोधी अवरोध" नाम से एक बड़ी दीवार बनायी।
इस्राएली अखबार हारेत्स का अनुमान है कि पांच साल तक चली लड़ाई में 1,330 इस्राएली और 3,330 फलस्तीनी मारे गये। हालांकि दूसरे इंतिफादा के खत्म होने की कोई औपचारिक तारीख नहीं है, लेकिन कई पर्यवेक्षक मानते हैं कि नवंबर 2004 में यासिर अराफात की मौत इसमें एक निर्याणक पल था। हालांकि उनकी मौत के बाद महीनों तक घातक हमले होते रहे।