यूरोपीय संघ और G-7 देशों ने रूसी तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल पर फ्रीज करने का फैसला किया है। रूस फिलहाल प्रतिदिन करीब 50 लाख बैरल तेल का निर्यात करता है। इससे तेल की कीमतों में भारी कमी आने की संभावना है। भारत रूस से लंबे समय से क्रूड का आयात करता है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि भारत में पेट्रोल डीजल कब और कितना सस्ता होगा?
क्या है कीमत सीमा तय करने की वजह : यूरोपीय संघ (EU) के कार्यकारी निकाय ने 27 सदस्य देशों से रूसी तेल के लिए कीमत सीमा 60 डॉलर प्रति बैरल तय करने को कहा है। पश्चिमी देशों के इस कदम का मकसद वैश्विक कीमतों और आपूर्ति को स्थिर बनाये रखते हुए रूस के तेल राजस्व को कम कर यूक्रेन के साथ युद्ध लड़ने की उसकी क्षमता को प्रभावित करना है।
कीमत सीमा व्यवस्था 5 दिसंबर से लागू होगी। इसके तहत यूरोप के बाहर रूसी तेल का परिवहन करने वाली कंपनियां तभी यूरोपीय संघ की बीमा और ब्रोकरेज सेवाओं का उपयोग कर सकेंगी, जब वे 60 अमेरिकी डॉलर या उससे कम में तेल बेचेंगी।
ब्रेंट क्रूड और रूसी क्रूड के दाम में कितना अंतर : रूस के कच्चे तेल के दाम इस हफ्ते 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे चले गए थे। अब यूरोपीय संघ के इसकी सीमा 60 डॉलर प्रति बैरल तय करने पर यह मौजूदा दाम के आसपास ही होगी। अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड का दाम गुरुवार को 87 डॉलर प्रति बैरल था।
रूस से तेल खरीदता रहेगा भारत : इस बीच एक भारतीय अधिकारी ने कहा कि कोई यह नहीं कह रहा कि रूस से तेल नहीं खरीदो। रूस कोई बड़ा आपूर्तिकर्ता नहीं है। भारत 30 देशों से आपूर्ति प्राप्त करता है। हमारे पास तेल खरीदने के कई स्रोत हैं। इसीलिए हमें किसी प्रकार की बाधा की कोई आशंका नहीं है।
क्षतिपूर्ति मांगेगा पेट्रोलियम मंत्रालय : पेट्रोलियम मंत्रालय कच्चे माल की लागत बढ़ने के बावजूद पेट्रोल और डीजल के दाम को पिछले आठ महीने से एक ही स्तर पर बरकरार रखने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की खुदरा ईंधन कंपनियों को हुए नुकसान के एवज में वित्त मंत्रालय से क्षतिपूर्ति मांगेगा।
इंडियन ऑयल कॉरपोरशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. को अप्रैल-सितंबर के दौरान संयुक्त रूप से 21,201.18 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा हुआ है। खुदरा पेट्रोलियम कंपनियों को एलपीजी सब्सिडी मद की 22,000 करोड़ रुपए की राशि मिलनी थी। अगर खाते में इसका प्रावधान नहीं किया गया होता, तो उनका नुकसान और ज्यादा होता।
क्या होगा रूस पर असर : रूसी क्रूड ऑयल के लिए 60 डॉलर की प्राइस कैप लगाने से रूसी अर्थव्यवस्था को खासा आर्थिक नुकसान पहुंचने की संभावना है। शुक्रवार को करीब 67 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था।