लगी हुई थी हम बच्चों को,
बहुत दिनों से आस।
दादा-दादी की शादी के,
होंगे साल पचास।
स्वर्ण जयंती जल्दी होगी,
हम सोचें मुस्काएं।
कब दादा को दूल्हा,
दादीजी को दुल्हन बनाएं।
और शीघ्र ही प्यारा-प्यारा-सा,
शुभ दिन वह आया।
दादा-दादी को जब हमने,
नख-शिख पूर्ण सजाया।
कुर्ता चमक रहा दादा का,
दादीजी की साड़ी।
दोनों की जोड़ी है सचमुच,
सबसे प्यारी-न्यारी।
धूम-धड़ाका हो-हल्ला कर,
हमने मजे उड़ाए।
मित्र सभी हम सब बच्चों के,
दावत खाने आए।