न तो हमको भैंस चाहिए,
नहीं चाहिए गाय।
कड़क ठण्ड है हमें पिला दो,
बस एक कप भर चाय।
चाय कड़क हो थोड़ी मीठी,
बस थोड़ा अदरक हो।
दूध मिलाकर खुशियों के संग,
मिला हुआ गुड लक हो।
हो जाती छू मंतर सुस्ती,
बढ़िया चाय,उपाय।
जब भी बनती चाय घरों में,
मोहक गंध निकलती।
लाख सम्भालो जीभ परन्तु,
बिलकुल नहीं संभलती।
समय नहीं कटता है काटे,
चाय न आई हाय !
गरम घूंट की चुस्की देती,
दिव्य भव्य आनंद।
मन करता कविता लिख डालूं ,
ह्रदय बांटता छंद।
बड़े काम की चीज़ है चाय,
सुधी जनों की राय।
(यहां पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)