बैश और बवाल
- ओमीश परुथी
इक जुनून सा तारी था हवाओं पे
नया साल है आने वाला
सबकी बेताब निगाहें
पुराने साल की नब्ज पकड़े बैठी थीं।
किसी की आखिरी सांस का
इतनी बेसब्री से इंतजार
देखा था मैंने पहली बार।
पंच सितारा होटल, रेस्तरां व जिमखाने
नेता, अभिनेता, पार्टी-पुंगव जाने-माने
नए साल को गलबहियां डालने को थे बेकरार
कहीं बैश, कहीं बवाल।
उन्मादग्रस्त टी.वी. चैनल
पल-पल का उगल रहे थे हाल।
पुराने साल की सुन अंतिम सांस
सबकी सांस में आई सांस।
नए साल को सबने
किलकारियों, तालियों व प्यालियों
में लपक लिया
'नववर्ष हो मंगलकारी!'
'हैप्पी न्यू ईयर !'
जाम पर जाम छलकाए गए
मूढ़ मुसद्दी लाल
देख रहा था
सुन रहा था
भीतर-भीतर गुन रहा था
ये जाम, ये डांस, ये आतिशबाजी
न होती गर, तो नया साल न आता?
किसको यह सोचना है भाता
काल की अविरल, अजस्र, प्रवहमान धारा को
किसी क्षण विशेष पर
काटा जा सकता है?
इसे नए और उसे पुराने में
बांटा जा सकता है?