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बाल कविता: मिस्टर लिक्खी राम

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

शाला जाकर नाम लिखाते,
मिस्टर लिक्खी राम।
कई बच्चों को मुफ्त पढ़ाते,
मिस्टर लिक्खी राम।
 
रेत नदी की, धूल सड़क की,
उनको प्यारी है।
नन्हें-नन्हें बच्चों से बस,
उनकी यारी है।
झुग्गी के बच्चों के संग में,
रहते समय तमाम।
मिस्टर लिक्खी राम।
 
पिचके हुए पेट जिनके हैं,
दें उनको रोटी।
नंगों की ढेरों कपड़ों से,
भर देते पेटी।
सेवा उनकी बिना दाम के,
लेते नहीं छदाम।
मिस्टर लिक्खी राम।
 
बिना शुल्क के रोज किताबें,
पुस्तक बंटवाते।
अगर पड़ोसी भूखा हो खुद,
अन्न नहीं खाते।
चुपके-चुपके मदद सभी की,
नहीं बताते नाम।
मिस्टर लिक्खी राम।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

बाल कविता

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