Hanuman jayanti 2020 : इन खास गुणों के कारण प्रभु श्रीराम को अत्यंत प्रिय हैं केसरीनंदन हनुमान

डॉ. छाया मंगल मिश्र
hanuman jayanti 2020
 
गोस्वामी तुलसीदासजी सुंदरकांड को लिपिबद्ध करते समय हनुमानजी के गुणों पर विचार कर रहे थे। वे जिस गुण का सोचते, वहीं हनुमानजी में भरपूर दिखाई देता। इसलिए उन्होंने हनुमानजी की स्तुति करते समय उन्हें 'सकल गुण निधानं' कहा है।
 
यह सम्मान पूरे संस्कृत साहित्य में केवल बजरंगबली को मिला है। हालांकि ईश्वर के समस्त रूप अपने आप में पूर्ण हैं लेकिन हनुमानजी एकमात्र ऐसे स्वरूप हैं, जो किसी भी कार्य में कभी भी असफल नहीं हुए। एक स्वामी को अपने सेवक से काम में सफलता की ग्यारंटी के अलावा और चाहिए भी क्या?
 
पवनपुत्र अपने कई गुणों के कारण प्रभु श्रीराम को अत्यंत प्रिय रहे। ये गुण हमारे जीवन में भी बड़ा बदलाव लाने की शक्ति रखते हैं-
 
वीरता, साहस और प्रभावी सम्प्रेषण-
 
तमाम बाधाओं को पार कर लंका पहुंचना, माता सीता को अपने राम दूत होने का विश्वास दिलाना, लंका को जलाकर भस्म कर देना- उनके इन गुणों का बखान करते हैं।
 
'सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा, विकट रूप धरी लंक जरावा'
 
'कपि के वचन सप्रेम सुनि, उपजा मन बिस्वास,
जाना मन क्रम बचन यह, कृपासिंधु कर दास'।
 
विनम्रता के साथ बुद्धि बल-
 
उनका सामना सुरसा नामक राक्षसी से हुआ, जो समुद्र के ऊपर से निकलने वाले को खाने के लिए कुख्यात थी। हनुमानजी ने जब सुरसा से बचने के लिए अपने शरीर का विस्तार करना शुरू कर दिया, तो प्रत्युत्तर में सुरसा ने अपना मुंह और बड़ा कर दिया। इस पर हनुमानजी ने स्वयं को छोटा कर दिया और सुरसा के मुख से होकर बाहर आ गए।
 
हनुमानजी की इस बुद्धिमत्ता से सुरसा संतुष्ट हो गईं और उसने हनुमानजी को आगे बढ़ने दिया। अर्थात केवल बल से ही जीता नहीं जा सकता बल्कि विनम्रता के साथ बुद्धिमत्ता से भी कई काम आसानी से किए जा सकते हैं।
 
'जस-जस सुरसा बदनु बढ़ावा, तासु दून कपि रूप देखावा।'
 
समर्पण और आदर्श-
 
रामजी के प्रति हनुमानजी की अपार श्रद्धा, विश्वास और सम्मान के प्रति समर्पण अतुल्य था। उनकी अनुपस्थिति में भी उनके मान की रक्षा का ध्यान रखा। जब रावण की सोने की लंका को जलाकर जब हनुमानजी दोबारा सीताजी से मिलने पहुंचे, तो सीताजी ने कहा- 'पुत्र, हमें यहां से ले चलो।'
 
इस पर हनुमानजी ने कहा कि माता, मैं आपको यहां से ले चल सकता हूं, पर मैं नहीं चाहता कि मैं आपको रावण की तरह यहां से चोरी से ले जाऊं। रावण का वध करने के बाद ही प्रभु श्रीराम आदर सहित आपको ले जाएंगे। इन्हीं गुणों के बलबूते हनुमानजी ने अष्ट सिद्धियों और सभी 9 (नव) निधियों की प्राप्ति की।
 
लंका में रावण के उपवन में हनुमानजी और मेघनाथ के मध्य हुए युद्ध में मेघनाथ ने 'ब्रह्मास्त्र' का प्रयोग किया। हनुमानजी चाहते तो वे इसका तोड़ निकाल सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वे उसका महत्व कम नहीं करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ब्रह्मास्त्र का तीव्र आघात सह लिया। हालांकि, यह प्राणघातक भी हो सकता था। तुलसीदासजी ने हनुमानजी की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण इस पर किया है-
 
'ब्रह्मा अस्त्र तेहि साधा, कपि मन कीन्ह विचार, जो न ब्रहसर मानहु, महिमा मिटहीं अपार।'
 
सदैव सचेत रहना-
 
किसी भी संकट के समय अपना मनोबल बनाए रखते व मस्तिष्क का संतुलन नियंत्रित भाव से रखते रहे। लक्ष्मण जब शक्ति लगने से अचेत हुए तब हनुमानजी का पहाड़ जाकर संजीवनी को पहाड़ सहित उठा लाना इसी का उदाहरण है। ऐसा वे इसलिए कर पाए, क्योंकि उनके अंदर निर्णय लेने की असीम क्षमता थी। उनका यह गुण अपने दिमाग को सक्रिय रखने के लिए प्रेरित करता है।
 
बौद्धिक कुशलता, वफादारी और नेतृत्व क्षमता
 
समुद्र में पुल बनाते वक्त अपेक्षित कमजोर और उद्दंड वानर सेना से भी कार्य निकलवाना उनकी विशिष्ट संगठनात्मक योग्यता का परिचायक है। राम-रावण युद्ध के समय उन्होंने पूरी वानर सेना का नेतृत्व संचालन प्रखरता से किया।
 
सुग्रीव और बाली के परस्पर संघर्ष के वक्त प्रभु राम को बाली के वध के लिए राजी करना, क्योंकि एक सुग्रीव ही प्रभु राम की मदद कर सकते थे। इस तरह हनुमानजी ने सुग्रीव और प्रभु श्रीराम दोनों के कार्यों को अपने बुद्धि कौशल और चतुराई से सुगम बना दिया। यहां हनुमानजी की मित्र के प्रति 'वफादारी' और 'आदर्श स्वामीभक्ति' तारीफ के काबिल है।
 
सीताजी का समाचार लेकर सकुशल वापस पहुंचे श्री हनुमान की हर तरफ प्रशंसा हुई, लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम का कोई किस्सा प्रभु श्रीराम को नहीं सुनाया। यह हनुमानजी का बड़प्पन था जिसमें वे अपने बल का सारा श्रेय प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद को दे रहे थे। प्रभु श्रीराम के लंका यात्रा वृत्तांत पूछने पर हनुमानजी ने जो कहा, उससे भगवान राम भी हनुमानजी के आत्ममुग्धताविहीन व्यक्तित्व के कायल हो गए-
 
'ता कहूं प्रभु कछु अगम नहीं, जा पर तुम्ह अनुकूल,
तव प्रभाव बड़वानलहि, जारि सकइ खलु तूल।'
 
सबसे बड़ी बात यह है कि असंभव लगने वाले कार्यों में भी जब हनुमानजी ने विजय प्राप्त की तब भी उन्होंने प्रत्येक सफलता का श्रेय 'सो सब तव प्रताप रघुराई' कहकर अपने स्वामी को समर्पित कर दिया। पूरी मेहनत करना पर श्रेय प्राप्ति की इच्छा न रखना सेवक का देव दुर्लभ गुण होता है, जो उसे अन्य सभी सद्गुणों का उपहार दे देता है। यहीं हनुमानजी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है।
 
भगवान राम और हनुमानजी के पावन व पवित्र रिश्ते को कौन नहीं जानता। रामजी की ओर अपनी भक्ति भावना के लिए हनुमानजी ने अपना सारा जीवन त्यागमय कर दिया था।
 
हनुमानजी का चरित्र अतुलित पराक्रम, ज्ञान और शक्ति के बाद भी अहंकार से विहीन था। यही आदर्श आज हमारे प्रकाश स्तंभ हैं, जो विषमताओं से भरे हुए संसार सागर में हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
 
हनुमान जयंती के अवसर पर हम 'संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरे हनुमत बलबीरा' की भावना के अनुरूप प्रार्थना करते हैं कि संकटमोचन हनुमानजी संपूर्ण विश्व की इस 'कोरोनासुर' से रक्षा करें।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Nanak Jayanti 2024: कब है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे मनाएं प्रकाश पर्व

Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

Kartik Purnima 2024: कार्तिक मास पूर्णिमा का पुराणों में क्या है महत्व, स्नान से मिलते हैं 5 फायदे

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal:14 नवंबर का राशिफल, आज किस पर होंगे ग्रह मेहरबान, पढ़ें 12 राशियां

14 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

14 नवंबर 2024, गुरुवार के शुभ मुहूर्त

क्या सिखों के अलावा अन्य धर्म के लोग भी जा सकते हैं करतारपुर साहिब गुरुद्वारा

Indian Calendar 2025 : जानें 2025 का वार्षिक कैलेंडर

अगला लेख
More