रोहिणी व्रत आज, जानिए व्रत का महत्व एवं पौराणिक कथा

Webdunia
जैन धर्म में रोहिणी व्रत प्रतिमाह मनाया जाता है। मान्यतानुसार यह व्रत स्वास्थ्य, सुख और शांति देता है। इस व्रत के प्रभाव से आर्थिक समस्याओं से छुटकारा भी मिलता है। जैन पंचांग के अनुसार, 10 मार्च 2022, गुरुवार को रोहिणी व्रत (Rohini Vrat 2022) मनाया जा रहा है। 27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन यह व्रत होता है, इसी वजह से इसे रोहिणी व्रत कहा जाता है। रोहिणी व्रत का जैन समुदाय में खास महत्‍व है। 
 
महत्व- दिगंबर जैन समुदाय में रोहिणी व्रत का बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। 27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन यह व्रत होता है, इसी वजह से इसे रोहिणी व्रत कहा जाता है। महिलाओं के लिए यह व्रत अनिवार्य माना गया है। हालांकि इस व्रत को कोई भी कर सकता है। इस व्रत को पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकते हैं। यह व्रत आत्‍मा के विकारों को दूर कर कर्म बंधन से छुटकारा दिलाने में सहायक है। इस व्रत में पूरे विधि विधान के सात भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। 
 
इस दिन जैन धर्म के अनुयायी वासुपूज्य स्वामी की पूजा और उपासना करके व्रत रखते है। इस दिन व्रत रखने से भगवान वासुपूज्य और माता रोहिणी के आशीर्वाद से घर से आर्थिक समस्या दूर होती हैं तथा उस घर में सदैव धन की देवी मां लक्ष्मी का वास होना, माना जाता है और ऋण मुक्त होने और आय बढ़ने का मार्ग मिल जाता है। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से पति की आयु लंबी हो जाती है और उनका स्वास्थ भी अच्छा रहता है। इससे ईर्ष्या, द्वेष, जैसे भाव भी दूर हो जाते हैं। घर में सुख, समृद्धि और धन-धान्य की निरंतर बढ़ोतरी होती है। इस व्रत का समापन उद्यापन के बाद ही किया जाता है।
 
कथा-Rohini Vrat Katha  
 
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्‍मीपति के साथ राज करते थे। उनके 7 पुत्र एवं 1 रोहिणी नाम की पुत्री थी। एक बार राजा ने निमित्‍तज्ञानी से पूछा कि मेरी पुत्री का वर कौन होगा? तो उन्‍होंने कहा कि हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ तेरी पुत्री का विवाह होगा। यह सुनकर राजा ने स्‍वयंवर का आयोजन किया जिसमें कन्‍या रोहिणी ने राजकुमार अशोक के गले में वरमाला डाली और उन दोनों का विवाह संपन्‍न हुआ। 
 
एक समय हस्तिनापुर नगर के वन में श्री चारण मुनिराज आए। राजा अपने प्रियजनों के साथ उनके दर्शन के लिए गया और प्रणाम करके धर्मोपदेश को ग्रहण किया। इसके पश्‍चात राजा ने मुनिराज से पूछा कि मेरी रानी इतनी शांतचित्त क्‍यों है? तब गुरुवर ने कहा कि इसी नगर में वस्‍तुपाल नाम का राजा था और उसका धनमित्र नामक एक मित्र था। उस धनमित्र की दुर्गंधा कन्‍या उत्पन्‍न हुई। धनमित्र को हमेशा चिंता रहती थी कि इस कन्‍या से कौन विवाह करेगा? धनमित्र ने धन का लोभ देकर अपने मित्र के पुत्र श्रीषेण से उसका विवाह कर दिया, लेकिन अत्‍यंत दुर्गंध से पीडि़त होकर वह एक ही मास में उसे छोड़कर कहीं चला गया।
 
इसी समय अमृतसेन मुनिराज विहार करते हुए नगर में आए, तो धनमित्र अपनी पुत्री दुर्गंधा के साथ वंदना करने गया और मुनिराज से पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा। उन्‍होंने बताया कि गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राजा भूपाल राज्‍य करते थे। उनकी सिंधुमती नाम की रानी थी। एक दिन राजा, रानी सहित वनक्रीड़ा के लिए चले, सो मार्ग में मुनिराज को देखकर राजा ने रानी से घर जाकर मुनि के लिए आहार व्यवस्था करने को कहा। राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई, परंतु क्रोधित होकर उसने मुनिराज को कड़वी तुम्‍बी का आहार दिया जिससे मुनिराज को अत्‍यंत वेदना हुई और तत्‍काल उन्‍होंने प्राण त्‍याग दिए।
 
जब राजा को इस विषय में पता चला, तो उन्‍होंने रानी को नगर में बाहर निकाल दिया और इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ उत्‍पन्‍न हो गया। अत्‍यधिक वेदना व दु:ख को भोगते हुए वो रौद्र भावों से मरकर नर्क में गई। वहां अनंत दु:खों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्‍पन्न और फिर तेरे घर दुर्गंधा कन्‍या हुई। यह पूर्ण वृत्तांत सुनकर धनमित्र ने पूछा- कोई व्रत-विधानादि धर्म कार्य बताइए जिससे कि यह पातक दूर हो। 
 
तब स्वामी ने कहा- सम्‍यकदर्शन सहित रोहिणी व्रत पालन करो अर्थात प्रति मास में रोहिणी नामक नक्षत्र जिस दिन आए, उस दिन चारों प्रकार के आहार का त्‍याग करें और श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान सहित 16 प्रहर व्‍यतीत करें अर्थात सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय बिताए और स्‍वशक्ति दान करें। इस प्रकार यह व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करें। दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और आयु के अंत में संन्यास सहित मरण कर प्रथम स्‍वर्ग में देवी हुई। वहां से आकर तेरी परमप्रिया रानी हुई। 
 
इसके बाद राजा अशोक ने अपने भविष्य के बारे में पूछा, तो स्‍वामी बोले- भील होते हुए तूने मुनिराज पर घोर उपसर्ग किया था, सो तू मरकर नरक गया और फिर अनेक कुयोनियों में भ्रमण करता हुआ एक वणिक के घर जन्म लिया, सो अत्‍यंत घृणित शरीर पाया, तब तूने मुनिराज के उपदेश से रोहिणी व्रत किया। फलस्‍वरूप स्वर्गों में उत्‍पन्‍न होते हुए यहां अशोक नामक राजा हुआ। इस प्रकार राजा अशोक और रानी रोहिणी, रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्‍वर्गादि सुख पाने के उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Nanak Jayanti 2024: कब है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे मनाएं प्रकाश पर्व

Dev diwali 2024: कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली रहती है या कि देव उठनी एकादशी पर?

शमी के वृक्ष की पूजा करने के हैं 7 चमत्कारी फायदे, जानकर चौंक जाएंगे

Kartik Purnima 2024: कार्तिक मास पूर्णिमा का पुराणों में क्या है महत्व, स्नान से मिलते हैं 5 फायदे

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

सभी देखें

धर्म संसार

Dev Diwali 2024: वाराणसी में कब मनाई जाएगी देव दिवाली?

Pradosh Vrat 2024: बुध प्रदोष व्रत आज, जानें महत्व और पूजा विधि और उपाय

Surya in vrishchi 2024: सूर्य का वृश्चिक राशि में गोचर, 4 राशियों के लिए बहुत ही शुभ

Aaj Ka Rashifal: 13 नवंबर के दिन किन राशियों को मिलेगी खुशखबरी, किसे होगा धनलाभ, पढ़ें 12 राशियां

Vaikuntha chaturdashi date 2024: वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व, क्यों गए थे श्री विष्णु जी वाराणसी?

अगला लेख
More