बर्लिन। दुनियाभर में यौन उत्पीड़न के खिलाफ हैशटैग के रूप में लोकप्रिय हुए ‘मी टू’ आंदोलन के बाद अब नस्लवाद के खिलाफ जर्मनी में भी ‘मी टू’ आंदोलन हो रहा है।
जर्मनी में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के आव्रजक अपने साथ हर रोज नस्ल के आधार पर होने वाले भेदभाव और इस बारे में टि्वटर पर अपने अनुभव साझा कर रहे हैं कि जर्मन नागरिक के रूप में उनकी स्वीकार्यता के लिए उन्हें अब भी कितने संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन का हैशटैग #MeToo था और जर्मनी में नस्लवाद के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन का हैशटैग #MeTwo है। #MeTwo को तुर्की मूल के 24 वर्षीय पत्रकार अली कैन ने तब बनाया जब तुर्किश-जर्मन फुटबॉल खिलाड़ी मेसुत ओजिल को हाल में जर्मनी की राष्ट्रीय टीम से इस्तीफा देना पड़ा।
तुर्किश आव्रजकों के बेटे ओजिल ने तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन के साथ तस्वीर खिंचवाने के अपने फैसले की जर्मनी में हुई तीखी आलोचना के बाद इस्तीफा दे दिया था।
ओजिल ने अपनी प्रतिक्रिया में जर्मन फुटबॉल संघ, इसके अध्यक्ष, प्रशंसकों और मीडिया पर हमला बोला। उन्होंने अपनी आलोचना होने पर इसे नस्लवाद बताया तथा तुर्की मूल के लोगों के साथ व्यवहार में दोहरे मानक अपनाए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं जीतता हूं तो तब मुझे जर्मन कहा जाता है और जब हार जाता हूं तो तब मुझे एक आव्रजक कहा जाता है।’’
कैन ने #MeTwo हैशटैग का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि वह यह दिखाना चाहते थे कि जर्मनी में जातीय अल्पसंख्यक एक ही समय में अक्सर खुद को दो संस्कृतियों या स्थानों - जर्मनी और खुद के या अपने पूर्वजों के मूल देश तुर्की से जुड़ा महसूस करते हैं। सोमवार तक टि्वटर पर 60 हजार ट्वीट पोस्ट किए जा चुके थे जिनमें भेदभाव के उदाहरणों के बारे में बताया गया है।
जर्मनी में तुर्की मूल के 40 लाख से अधिक लोग रहते हैं जिन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद देश के पुनर्निर्माण में मदद के लिए 1960 के दशक में बुलाया गया था।