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क्या गुमनामी बाबा ही थे सुभाषचंद्र बोस, एक रहस्य जो आज तक कोई न जान सका

हमें फॉलो करें क्या गुमनामी बाबा ही थे सुभाषचंद्र बोस, एक रहस्य जो आज तक कोई न जान सका
विश्व इतिहास में 23 जनवरी 1897 का दिन स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इसी दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) का जन्म हुआ था। सुभाष जी का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावती देवी के यहां हुआ। 18 अगस्त 1945 (18 August 1945) को उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था परंतु उनके अवशेष नहीं पाए गए तभी से यह कयास लगाए जाते रहे हैं कि वे मरे नहीं थे जिंदा है।
 
दरअसल, 18 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। क्या नेताजी की मौत 1945 में प्लेन क्रैश में ही हुई थी? यह सवाल आज भी जिंदा है। कहते हैं कि नेताजी जिंदा थे परंतु वे लोगों के सामने इसीलिए नहीं आ सके क्योंकि उन्हें अंग्रेज सरकार ढूंढ रही थी। 
 
कई लोगों का मानना था कि नेताजी गुमनामी बाबा (gumnami baba) के नाम से यूपी में 1985 तक रह रहे थे। नेताजी पर शोध करने वाले बड़े-बड़े विद्वानों का मानना है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। परंतु इसकी पुष्टि अभी तक न तो राज्य सरकार ने की और न ही केंद्र सरकार ने और ना ही कोई ठोस प्रमाण दिया गया।
 
 
हालांकि नेताजी के जीवन पर ‘कुन्ड्रम: सुभाष बोस लाइफ आफ्टर डेथ’ किताब लिखने वाले अनुज धर का दावा था कि यूपी के फैजाबाद में कई साल तक रहे गुमनामी बाबा (gumnami baba) ही सुभाष चंद्र बोस थे। उनके मुताबिक, तत्कालीन सरकार के अलावा नेताजी का परिवार भी जानता था कि गुमनामी बाबा से उनका क्या कनेक्शन है, लेकिन वे कभी इसका खुलासा नहीं करना चाहते थे।
 
जनता की मांग और हंगामे के बाद 2016 में तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद गुमनामी बाबा (gumnami baba) की जांच रिपोर्ट के लिए जस्टिस विष्णु सहाय आयोग का गठन किया। 3 साल बाद जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने अपनी रिपोर्ट यूपी विधानसभा में पेश की। इस रिपोर्ट को बाद की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सार्वजनिक करते हुए लिखा है, 'आयोग द्वारा गुमनामी बाबा उर्फ भगवान जी की पहचान नहीं की जा सकी। गुमनामी बाबा के बारे में आयोग ने कुछ अनुमान लगाए हैं।'
 
 
इस अनुमान में यह तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे एक बंगाली थे और हिन्दी के साथ ही अंग्रेजी के जानकार भी थे। उन्हें युद्ध, राजनीति और सामयिक विषयों की गहन जानकारी थी। वे सुभाषचंद्र जैसे ही हावभाव के स्वर में बोलते थे। अयोध्या में 10 वर्षों तक गुमनामी बाबा पर्दे के पीछे रहे और लोग उन्हें सुनकर सम्मोहित हो जाते थे। गुमनामी बाबा संगीत, सिगार और भोजन के प्रेमी थे। उनके ज्यादातर समय पूजा और ध्यान में ही व्यतीत होता था। लेकिन जिस समय यह बात प्रसारित होनी शुरू हुई कि वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) थे, उन्होंने तत्काल अपना मकान बदल लिया था। भारत में शासन की स्थिति से गुमनामी बाबा का मोहभंग हो चुका था। उनकी मृत्यु के समय मात्र 13 लोग ही उपस्थित थे। फैजाबाद शहर के सिविल लाइंस में बने राम भवन में गुमनामी बाबा ने आखिरी सांसें ली थीं। 
 
कहते हैं कि उनके पास नेताजी (Subhash Chandra Bose) की तरह के दर्जनों गोल चश्मे थे, 555 सिगरेट और विदेशी शराब भी थी। सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता और परिवार की निजी तस्वीरें भी थी और एक रोलेक्स की जेब घड़ी भी थी। खास बात तो यह की आजाद हिन्द फौज की एक यूनिफार्म भी थी। इसके अलावा 1974 में कोलकाता के दैनिक आनंद बाजार पत्रिका में 24 किस्तों में छपी खबरें थीं। इसके अलावा भारत-चीन युद्ध संबंधी भी थीं। जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें भी थी। बाबा के पास 22 बड़े-बड़े संदूक थे। जिसमें सारा सामान रखा था। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच के लिए बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें, सैकड़ों टेलीग्राम और पत्र आदि जिन्हें भगवन जी के नाम पर संबोधित किया गया था।
 
यह आज भी रहस्य बरकरार है कि वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे या नहीं और दूसरा यह कि उनके कमरे में क्या-क्या वस्तुएं थीं। राज्य और केंद्र सरकार उन वस्तुओं को क्यों नहीं सार्वजनिक करती है? 

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Subhash Chandra Bose

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