Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

काकोरी डकैती में शामिल नहीं थे ठाकुर रोशन सिंह, फिर भी हुई फांसी...

हमें फॉलो करें काकोरी डकैती में शामिल नहीं थे ठाकुर रोशन सिंह, फिर भी हुई फांसी...
* भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी सपूत ठाकुर रोशन सिंह
 
क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह का जन्म उत्तरप्रदेश के ख्यातिप्राप्त जनपद शाहजहांपुर में स्थित गांव नबादा में 22 जनवरी 1892 को हुआ था। उनकी माता का नाम कौशल्या देवी और पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था। 
 
9 अगस्त 1925 को उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन के पास जो सरकारी खजाना लूटा गया था उसमें ठाकुर रोशन सिंह शामिल नहीं थे इसके बावजूद उन्हें 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद के नैनी जेल में फांसी पर लटका दिया गया। 
 
ठाकुर रोशन सिंह की आयु (36) के केशव चक्रवर्ती इस डकैती में शामिल थे और उनकी शक्ल रोशन सिंह से मिलती थी। अंग्रेजी हुकूमत ने यह माना कि रोशन ही डकैती में शामिल थे। केशव बंगाल की अनुशीलन समिति के सदस्य थे फिर भी पकडे़ रोशन सिंह गए। चूंकि रोशन सिंह बमरौली डकैती में शामिल थे और उनके खिलाफ पूरे सबूत भी मिल गए थे। अत: पुलिस ने सारी शक्ति ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दिलवाने में ही लगा दी और केशव चक्रवर्ती को खोजने का कोई प्रयास ही नहीं किया गया। 
 
सी.आई.डी. के कप्तान खानबहादुर तसद्दुक हुसैन पंडित राम प्रसाद बिस्मिल पर बार-बार यह दबाव डालते रहे कि वह किसी भी तरह अपने दल का संबंध बंगाल के अनुशीलन दल या रस की बोल्शेविक पार्टी से बता दें, परंतु बिस्मिल टस से मस न हुए। आखिरकार रोशन सिंह को दफा 120 'बी' और 121 'ए' के तहत पांच-पांच वर्ष की बामशक्कत कैद और 396 के तहत फांसी की सजा दी गई। 
 
इस फैसले के खिलाफ सभी ने जैसे उच्च न्यायालय और वायसराय के यहां अपील की थी, वैसे ही रोशन सिंह ने भी अपील की परंतु नतीजा वहीं निकला 'ढाक के तीन पात।' 
 
ठाकुर रोशन सिंह ने 6 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद नैनी जेल की काल कोठरी से अपने एक मित्र को पत्र में लिखा था..। एक सप्ताह के भीतर ही फांसी होगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप मेरे लिए रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का कारण होगी। 
 
दुनिया में पैदा होकर मरना जरूर है। दुनिया में बदफैली करके अपने को बदनाम न करें और मरते वक्त ईश्वर को याद रखें, यही दो बातें होनी चाहिए। ईश्वर की कृपा से मेरे साथ यह दोनों बातें हैं। इसलिए मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है। 
 
दो साल से बाल-बच्चों से अलग रहा हूं। इस बीच ईश्वर भजन का खूब मौका मिला। इससे मेरा मोह छूट गया और कोई वासना बाकी न रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्टभरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिंदगी जीने के लिए जा रहा हूं। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है, जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले महात्मा मुनियों की...। 
 
पत्र समाप्त करने के पश्चात उसके अंत में उन्होंने अपना यह शेर भी लिखा... 
 
'..जिंदगी जिंदा-दिली को जान ऐ रोशन 
..वरना कितने ही यहां रोज फना होते हैं..।' 
 
फांसी से पहली की रात ठाकुर रोशन सिंह कुछ घंटे सोए। फिर देर रात से ही ईश्वर भजन करते रहे। प्रात:काल शौच आदि से निवृत्त हो यथानियम स्नान-ध्यान किया। कुछ देर गीता पाठ में लगाया फिर पहरेदार से कहा.. 'चलो.., वह हैरत से देखने लगा यह कोई आदमी है या देवता। 
 
उन्होंने अपनी काल कोठरी को प्रणाम किया और गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फांसी घर की ओर चल दिए। फांसी के फंदे को चूमा फिर जोर से तीन बार वंदे मातरम का उद्घोष किया और वेद मंत्र का जाप करते हुए फंदे से झूल गए। 
 
इलाहाबाद में नैनी स्थित मलाका जेल के फाटक पर हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुष, युवा और वृद्ध एकत्र थे उनके अंतिम दर्शन करने और उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए। जैसे ही उनका शव जेल कर्मचारी बाहर लाए वहां उपस्थित सभी लोगों ने नारा लगाया '..रोशन सिंह अमर रहें..'। भारी जुलूस की शक्ल में शवयात्रा निकली और गंगा-यमुना के संगम तट पर जाकर रुकी, जहां वैदिक रीति से उनका अंतिम संस्कार किया गया। 
 
फांसी के बाद ठाकुर रोशन सिंह के चेहरे पर एक अद्‍भुत शांति दृष्टिगोचर हो रही थी। मूंछें वैसी की वैसी ही थीं बल्कि गर्व से ज्यादा ही तनी हुई लग रहीं थी। उन्हें मरते दम तक बस एक ही मलाल था कि उन्हें फांसी दे दी गई, कोई बात नहीं। उन्होंने तो जिंदगी का सारा सुख उठा लिया परंतु बिस्मिल, अशफाक और लाहिडी़ जिन्होंने जीवन का एक भी ऐशो-आराम नहीं देखा, उन्हें इस बेरहम बरतानिया सरकार ने फांसी पर क्यों लटकाया? 
 
नैनी जेल के फांसी घर के सामने अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह की आदमकद प्रतिमा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अप्रतिम योगदान का उल्लेख करते हुए लगाई गई है। 
 
वर्तमान समय में इस स्थान पर अब एक मेडिकल कॉलेज स्थापित है। मूर्ति के नीचे ठाकुर साहब की कहीं गई यह पंक्तियां भी अंकित हैं...। 
 
'जिंदगी जिंदादिली को जान ए रोशन, ...वरना कितने ही यहां रोज फना होते हैं।' 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हिन्दी निबंध : रामप्रसाद बिस्मिल