Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ज्योतिबा फुले जयंती : 10 बातें उनके जीवन की

हमें फॉलो करें ज्योतिबा फुले जयंती : 10 बातें उनके जीवन की
Jyotiba Phule
 

1. Jyotiba Phule महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन काल में देश से छुआछूत खत्म करने और समाज को सशक्त बनाने के लिए अहम किरदार निभाया। 
 
2. ज्योतिबा फुले के पिता का नाम गोविंदराव तथा माता का नाम चिमणाबाई था। तथा उनका विवाह 1840 में सावित्रीबाई से हुआ था। 
 
3. ज्योतिबा फुले का अध्ययन मराठी भाषा में हुआ था। ज्योतिबा बहुत बुद्धिमान थे। वे महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक एवं दार्शनिक थे। 

 
4. उनका परिवार कई पीढ़ियों पहले माली का काम करता था। और वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करते थे, इसलिए उनकी पीढ़ी 'फुले' के नाम से जानी जाती थी। 
 
5. उन दिनों महाराष्ट्र में धार्मिक सुधार आंदोलन जोरों पर था। तब जाति-प्रथा का विरोध करने और एकेश्‍वरवाद को अमल में लाने के लिए ‘प्रार्थना समाज’ की स्थापना की गई थी, उस समय महाराष्ट्र में जाति-प्रथा बड़े ही वीभत्स रूप में फैली हुई थी। प्रार्थना समाज के प्रमुख गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर थे। 
 
6. उस जमाने में स्त्रियों की शिक्षा को लेकर लोग बहुत उदासीन थे, अत: ऐसे समय में ज्योतिबा ने समाज को कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए। ज्योतिबा के कई प्रमुख सुधार आंदोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्र में छोटे-छोटे आंदोलन जारी थे, जिसने सामाजिक और बौद्धिक स्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त करने का कार्य किया था।
 
7. ज्योतिबा ने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था तथा पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला। अत: लड़कियों और दलितों के लिए पहली पाठशाला खोलने का श्रेय ज्योतिबा फुले को दिया जाता है।
 
8. लोगों में नए विचार, नए चिंतन की शुरुआत, और आजादी की लड़ाई में उनके संबल बनने का श्रेय भी ज्योतिबा को ही जाता है। 
 
9. इतना ही नहीं उन्होंने किसान और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था। ऐसे महान समाजसेवी ने अछूतोद्धार करने के लिए सत्यशोधक समाज स्थापित किया था। 
 
10. ज्योतिराव गोविंदराव फुले को सन् 1888 में 'महात्मा' की उपाधि दी गई और उनका निधन पुणे में 28 नवंबर 1890 को हुआ था।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बाल गीत : पानी झर-झर गाता है