भारतीय राजनीतिज्ञ गुलजारीलाल नंदा का जन्म सियालकोट (अब पाकिस्तानी पंजाब) में 4 जुलाई 1898 को हुआ था। इनके पिता का नाम बुलाकीराम नंदा तथा माता का नाम ईश्वरदेवी नंदा था। नेहरूजी के निधन के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में इनका प्रथम कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून 1964 व लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा था। आओ जानते हैं उनकी जयंती पर भावूक कर देने वाली कहानी।
वह व्यक्ति बहुत वृद्ध था। करीब 94 वर्ष की उसकी उम्र रही होगी। किराये के मकान में पुराने बिस्तर, कुछ बर्तन, प्लास्टिक की बाल्टी और एक मग आदि उसके पास जरूरत के सामान थे। कुछ समय के बाद उसके पास किराया देने के भी पैसे नहीं बचने लगे। एक दिन मकान मालिक उसे उसके सामान के साथ बाहर निकाल दिया। उस वृद्ध ने किराया देने के लिए कुछ दिनों को मौहलत मांगी लेकिन मकान मालिक ने एक नहीं सुनी। आखिर पड़ोसियों को उस वृद्ध पर दया आई और उन्होंने मकान मालिक से अनुरोध किया कि उसे कुछ समय दे दो। मकान मालिक ने सभी के कहने पर उसे कुछ समय के लिए और रहने की मौहलत दे दी। वृद्ध खुश होकर फिर से अपना सामान अंदर ले गया।
उस दौरान रास्ते से गुजर रहा एक पत्रकार रुककर यह नजारा देख रहा था। उसने सोच की यह तो हद हो गई। इस घटना को तो अखबार में छापना चाहिए। उसने शीर्ष भी सोच लिया, ”क्रूर मकान मालिक, बूढ़े को पैसे के लिए किराए के घर से बाहर निकाल देता है।” फिर उसने किराएदार वृ्ध की और किराए के घर की कुछ फोटो भी ले लीं।
यह खबर लेकर वह अपने दफ्तर में पहुंचा और इस घटना के बारे में अखबार के मालिक को बताया। मालिक फोटो देखकर हैरान रह गया और उसने पत्रकार से पूछा, क्या तुम इस बूढ़े किराएदार के जानते हो? पत्रकार ने कहा, नहीं।
इसके बाद अगले दिन अखबार के फ्रंट पेज पर बड़ी खबर छपी जिसका शीर्षक था, ”भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं”। न्यूज में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधानमंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और कैसे उन्हें मकान मालिक घर से बाहर निकाल दिया गया था। टिप्पणी की थी कि एक व्यक्ति जो दो बार पूर्व प्रधानमंत्री रह चुका है और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री भी रहा है, उसके पास अपना खुद का घर भी नहीं है।
इस खबर के बाद दूसरे दिन वर्तमान प्रधानमंत्री ने मंत्रियों और अधिकारियों के वाहनों के एक काफिले को उनके घर भेजा। इतने वाहन और वीआइपी वाहनों की कतारों को देखकर मकान मालिक भौचक्का रह गया। जब उसे यह पता चला कि मैंने जिसे किराए पर अपने मकान में रखा है वह और कोई नहीं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा है तो वह अपने दुर्व्यवहार पर बहुत ही शर्मिदा हुआ और तुरंत ही गुलजारीलाल नंदा के चरणों में झुककर माफी मांगने लगा।
बाद में सरकारी अधिकारियों ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं में रहने का अनुरोध किया, लेकिन श्री गुलजारीलाल नंदा ने कहा कि इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम। यह कह कर उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। गुलजारीलाल नंदा अंतिम श्वास तक वे एक सामान्य नागरिक की तरह, एक सच्चे गांधीवादी बनकर रहे। 1997 में सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित भी किया।
दरअसल गुलजारीलाल नंदा एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें तब 500 रुपए प्रति माह भत्ता मिलता था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस रुपए को लेने से मना कर दिया था कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के भत्ते के लिए लड़ाई नहीं लड़ी थी। बाद में मित्रों ने उन्हें यह स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया यह कहते हुए कि उनके पास इसके अलावा धन का अन्य कोई स्रोत नहीं है। इसी रुपयों से वह अपना किराया देकर गुजारा करते थे।