Biography of netaji subhas chandra bose: 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्म दिवस सारे देश मनाएगा। नेताजी ने ही 'जय हिन्द' और 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा दिया था। आओ जानते हैं नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्म से लेकर रहस्यमय मृत्यु तक की पूरी दास्तां।
जन्म : नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कुट्टक गांव में जानकी नाथ बोस और श्रीमती प्रभावती देवी के घर में हुआ था।
परिवार : साल 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपने इलाज के लिए ऑस्ट्रिया गए हुए थे। वहां उनकी मुलाकात एक ऑस्ट्रियन महिला एमिली शेंकल से हुई। दोनों के बीच प्यार हो गया। 1942 में सुभाष चंद्र बोस और एमिली शेंकल ने हिन्दू रीति-रिवाज से शादी कर ली। उसी साल एमिली शेंकल ने एक बेटी को जन्म दिया। जिसका नाम अनिता बोस रखा गया।
शिक्षा : 2. उन्होंने 1913 में अपनी कॉलेज शिक्षा की शुरुआत की और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। सन् 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1916 में ब्रिटिश प्रोफेसर के साथ दुर्व्यवहार के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया गया। 1917 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज में फिलॉसफी ऑनर्स में प्रवेश लिया। 1919 में फिलॉसफी ऑनर्स में प्रथम स्थान अर्जित करने के साथ आईसीएस परीक्षा देने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए। 1920 में सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक के साथ आईसीएस की परीक्षा न केवल उत्तीर्ण की, बल्कि चौथा स्थान भी प्राप्त किया। 1920 में उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठित डिग्री प्राप्त हुई।
राजनीतिक और स्वंत्रता आंदोलन का जीवन : अपने राजनीतिक और देशभक्तिपूर्ण विचारों के कारण 1921 में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 1 अगस्त, 1922 को वे जेल से बाहर आए और देशबंधु चितरंजनदास की अगुवाई में गया कांग्रेस अधिवेशन में स्वराज दल में शामिल हो गए। सन् 1923 में वे भारतीय युवक कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसके साथ ही बंगाल कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। उन्होंने देशबंधु की स्थापित पत्रिका फॉरवर्ड का संपादन करना शुरू किया।
1924 में स्वराज दल को कोलकाता म्युनिसिपल चुनाव में भारी सफलता मिली। देशबंधु मेयर बने और सुभाषचंद्र बोस को मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनोनीत किया गया। सुभाष के बढ़ते प्रभाव को अंग्रेज सरकार बरदाश्त नहीं कर सकी और अक्टूबर में ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 1925 में देशबंधु का निधन हो गया। 1927 में नेताजी, जवाहरलाल नेहरू के साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के साधारण सचिव चुने गए।
कांग्रेस से अलग एक नई राह : 1928 में स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने के लिए उन्होंने भारतीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दौरान स्वैच्छिक संगठन गठित किया। नेताजी इस संगठन के जनरल ऑफिसर-इन-कमांड चुने गए। 1930 में उन्हें जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के दौरान ही उन्होंने कलकत्ता के मेयर का चुनाव जीता। 23 मार्च, 1931 को भगतसिंह को फांसी दे दी गई, जो कि नेताजी और महात्मा गांधी में मतभेद का कारण बनी।
देश के बाहर समर्थन : 1932 से 1936 में नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दबाव डलवाने के लिए इटली में मुसोलिनी, जर्मनी में फेल्डर, आयरलैंड में वालेरा और फ्रांस में रोमा रोनांड से मुलाकात की। 13 अप्रैल, 1936 को भारत आने पर उन्हें बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया।
1936 से 37 तक रिहा होने के बाद उन्होंने यूरोप में इंडियन स्ट्रगलप्रकाशित करना शुरू किया। 1938 में हरिपुर अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। इस बीच शांति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें सम्मानित किया।
फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की स्थापना : 1939 में महात्मा गांधी के उम्मीदवार सीतारमैया को हराकर एक बार फिर कांग्रेस के अध्यक्ष बने। बाद में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। 1940 में उन्हें नजरबंद कर दिया गया।
देश छोड़ा : इस बीच उपवास के कारण उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 1941 में एक नाटकीय घटनाक्रम में वे 7 जनवरी, 1941 को गायब हो गए और अफगानिस्तान और रूस होते हुए जर्मनी पहुंचे। 9 अप्रैल, 1941 को उन्होंने जर्मन सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा जिसमें एक्सिस पॉवर और भारत के बीच परस्पर सहयोग को संदर्भित किया गया था। सुभाषचंद्र बोस ने इसी साल नवंबर में स्वतंत्र भारत केंद्र और स्वतंत्र भारत रेडियो की स्थापना की।
आजाद हिन्द फौज की स्थापना : वे नौसेना की मदद से जापान पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्होंने टोकियो रेडियो से भारतवासियों को संबोधित किया। 21 अक्टूबर, 1943 को उन्होंने आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की और इसकी स्थापना अंडमान और निकोबार में की गई, जहां इसका 'शहीद और स्वराज' नाम रखा गया। 1944 में आजाद हिन्द फौज अराकान पहुंची और इम्फाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इम्फाल) को अपने कब्जे में ले लिया।
नेताजी की मृत्यु : 1945 में दूसरे विश्वयुद्ध में जापान ने परमाणु हमले के बाद हथियार डाल दिए। इसके कुछ दिनों बाद 18 अगस्त 1945 को नेताजी की हवाई दुर्घटना में मारे जाने की खबर आई। नेताजी सुभाषचंद बोस ताईवान के ताईहोकु में विमान दुर्घटना में बुरी तरह घायल हुए, बाद में एक सैन्य अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई... हालांकि उनकी मृत्यु का रहस्य आज तक बरकरार है।
गुमनामी बाबा : कई लोगों का मानना था कि नेताजीजी गुमनामी बाबा के नाम से यूपी में 1985 तक रह रहे थे। नेताजी के जीवन पर कुन्ड्रम: सुभाष बोस लाइफ आफ्टर डेथ किताब लिखने वाले अनुज धर का दावा था कि यूपी के फैजाबाद में कई साल तक रहे गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे। उनके मुताबिक, तत्कालीन सरकार के अलावा नेताजी का परिवार भी जानता था कि गुमनामी बाबा से उनका क्या कनेक्शन है, लेकिन वे कभी इसका खुलासा नहीं करना चाहते थे। उनकी मृत्यु के समय मात्र 13 लोग ही उपस्थित थे। फैज़ाबाद शहर के सिविल लाइंस में बने राम भवन में गुमनामी बाबा ने आखिरी सांसें ली थी।