किसी किताब को उसके कवर से नहीं आंकना चाहिए
क्या ये मुहावरा होता है इंदौर की स्वच्छता पर भी लागू?
-तृषा निम्बालकर
अविश्वसनीय! सिर्फ ये शब्द मन में गूंजा, जब इंदौर की साफ-सुथरी सड़कों से परे अंदरुनी गलियों में मैंने झांककर देखा। उस वक्त आंखों द्वारा देखा हुआ दृश्य मुझे 'अविश्वसनीय' लगा। लोगों द्वारा 'कचरा गाड़ी का न आना' और 'बिखरी गंदगी से फर्क न पड़ना', ऐसा सुनना मेरे लिए 'अकल्पनीय' था।
पर शायद आपके और मेरे लिए ये कल्पनातीत बातें इंदौर के कई आंतरिक इलाकों के लिए उनका अपना सत्य है। स्वच्छता सर्वेक्षण में 5वीं बार अपनी धाक जमाने के बाद इंदौर फिर दौड़ पड़ा है स्वच्छता में 'छक्का' मारने के लिए। पिछले 5 सालों से स्वच्छता की दौड़ में हमेशा अव्वल रहने वाले 'इंदौर' की इस स्वच्छता का श्रेय इंदौर नगर निगम और यहां के रहवासियों के अथक प्रयास और उनके बीच बने अद्भुत तालमेल को जाता है। पर जिस मुकाम पर इंदौर पहुंचा है, शायद कई स्थानों पर हो रही लापरवाही इस चमकती ट्रॉफी पर 'जंग' छोड़कर जा सकती है।
विश्व की सबसे बड़ी शहरी स्वच्छता सर्वेक्षण की शुरुआत वर्ष 2016 में 'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत की गई थी। नरेन्द्र मोदी द्वारा 2014 में लॉन्च हुआ 'स्वच्छ भारत अभियान' का उद्देश्य देश में खुले में शौच, ठोस और तरल अपशिष्ट का वियोग और प्रबंधन कर शहरों को स्वच्छ बनाने पर केंद्रित था। 'स्वच्छ भारत अभियान' के इस उद्देश्य पर इंदौर ने कारगर अमल किया और 2017 में पहली बार मिली 'सबसे स्वच्छ शहर' की पहली रैंक को 5 वर्ष बाद भी कायम रखा। इस सफलता में सड़कों की साफ-सफाई, घर-घर कचरा संग्रहण, लोगों के द्वारा सूखा और गीला कचरा अलग-अलग करने की आदत की स्वीकृति ऐसे कई सहायक कारक हैं।
पर जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू रहते हैं, वैसे ही इस सिक्के का दूसरा पहलू भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इंदौर के (मरीमाता चौराहा) बाणगंगा इलाके की कई ऐसी गलियां हैं, जहां लोग घरों के आस-पास फैले कचरे से परेशान हैं। एक ऐसी ही आंतरिक गली है, जहां के निवासी घर के पास जमा हो चुके कूड़े के ढेर से परेशान हैं। पोलो ग्राउंड से सीधा जोड़ने वाली ब्रिज के निर्माण कार्य ने घरों के आसपास कूड़े का ढेर खड़ा कर दिया है।
रहवासी बताते हैं कि कचरे का ढेर जमे हुए काफ़ी वक्त बीत गया जिसे सफाई कर्मचारियों द्वारा हटाए जाने की कई बार मांग भी की गई है किंतु शिकायत पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। वहीं वहां के नेता ने बताया कि ब्रिज के निर्माण कार्य के कारण वहां मलबा और कचरा जमा हो गया है जिसे निर्माण कार्य के बाद निश्चित रूप से पूर्णत: साफ कर दिया जाएगा। पर ब्रिज का निर्माण कार्य कब तक पूर्ण होगा, इसकी कोई निश्चित समय सीमा की पुष्टि नहीं की गई।
वहीं शहर के दूसरे छोर पर स्थित राऊ के कमल नगर की गलियां भी स्वच्छता में बरती गई लापरवाही का सबूत दे रही हैं। सड़क पर पसरे कूड़े के ढेरों का कारवां राऊ की गलियों से राऊ-रंगवासा की मुख्य सड़क के दोनों किनारों पर देखने को मिल रहा है।
राऊ-पीथमपुर ब्रिज के नीचे सूर्य मंदिर की सड़कों पर या रंगवासा के रेलवे क्रॉसिंग से लेकर कैट रोड के चौराहे तक जहां कहीं भी नजर घुमा लीजिए, इस बात से मुकरना मुश्किल है कि इंदौर में अस्वच्छता अपने पुख्ता निशान दे रही है।
जहां इंदौर को साफ रखने की जिम्मेदारी सफाई कर्मचारियों की होती ही है, वहीं उतनी ही जिम्मेदारी नागरिकों की भी होती है। परंतु इंदौर के ऐसे इलाके भी हैं, जहां नागरिक अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से नहीं निभा रहे हैं।
इंदौर के बिचौली हप्सी में स्थित भूरी टेकरी की बस्ती भी कूड़े-कचरे की चपेट में है, परंतु वहां के लोगों का मानना है कि क्योंकि वे 1-2 महीने के अंदर ही अंदर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नए भवन में शिफ्ट हो जाएंगे, इसलिए फैला कूड़ा-कचरा उनके लिए महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है।
कैट के नजदीक स्थित बुद्ध नगर की भले ही सड़कें साफ हैं लेकिन खाली मैदान पर लोगों द्वारा डंपिंग ग्राउंड जैसा ही कचरा फेंका गया है।
राऊ-कैट रोड की रहवासी “सुनीता वर्मा” खुले मैदानों सड़क के दोनों और फैली इस अस्वच्छता के बारे में बताती हैं की "सफाई कर्मचारी आते हैं, कचरा साफ करके चले जाते हैं लेकिन 2 दिन बाद कचरा इन ग्राउंड पर फिर से जमा हो जाता है। इस इलाके की भीतरी कॉलोनियों में रहने वाले लोग बाल्टी में कचरा लेकर यहां मैदान पर फेंक देते हैं। वे सूखे कचरे को गीले कचरे से अलग भी नहीं करते हैं। सफाई कर्मचारियों द्वारा कई बार बोलने और समझाने के बावजूद भी, लोग उनकी बात नहीं मानते हैं।
इंदौर अपनी अवधारणा, अनुशासन, सहकारिता व निष्ठा के बलबूते पर भारत के 'सबसे स्वच्छ शहर' के उद्देश्य पर 5 साल से कायम रहा है। लेकिन अपना स्थान बनाए रखने के साथ-साथ इंदौर को छोटे व अंदरुनी इलाकों की साफ-सफाई पर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि शहर की चाक-चौबंद व्यवस्था में हम गांव की अहमियत नहीं भूल सकते हैं।
इस काम के लिए सफाई कर्मियों को इन इलाकों की निगरानी समय-समय पर करनी होगी और साथ-ही-साथ शहर के रहवासियों को सफाई से जुड़ी अच्छी आदतें आदत में लानी होंगी।
लोगों की यह लापरवाही, हमारी 5 साल की मेहनत पर महज़ 5 मिनट में पानी फेर सकती है। इसे रोकने के लिए लोगों को “स्वच्छता की एबीसीडी” फिर से सिखाई जानी चाहिए। भले ही बातों की शुरुआत “बेसिक्स” से होगी पर असलियत में, इंदौर की स्वच्छता अभियान के लिए ये “मूल बातें” हमेशा काफ़ी मज़बूत नींव गढ़ती आई है।
शुरुआत में, सफाई कर्मचारियों को इन नागरिकों को सीख देनी चाहिए कि किस तरह खुले मैदान में कचरा डंप करने से स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं। कुछ प्रतिनिधि खास बैठकें आयोजित कर सकते हैं और लोगों को बता सकते हैं कि अपने घर के कचरे को सूखे और गीले कचरे में कैसे अलग किया जाए। उन्हें यह समझाना चाहिए कि कचरे को सार्वजनिक रूप से डंप करना तभी उचित है जब उसे सार्वजनिक कूड़ेदान में डाला जाए। उन्हें प्रेरित करने के लिए दीवारों पर आकर्षक पोस्टर या चित्र चिपकाए जा सकते हैं या उनके द्वारा रखी गई स्वच्छता के अनुसार उन्हें, समुदाय के रूप में, लाभ या पुरस्कार भी दिया जा सकता है।
जहां शहर के सफाई कर्मचारी प्रतिदिन दिन-रात एक करके शहर को स्वच्छ करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगा देते हैं, वही नागरिकों को भी इस नेक अभियान के लिए अपना समर्थन दिखाना चाहिए। अगर, अब भी सफाईकर्मियों की गुहार बहरे कानों पर नहीं पड़ती है, तो इंदौर नगर निगम को सख्त कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटाना चाहिए तथा निवासियों को उन तत्वों की सूचना देनी चाहिए, जो इतनी कोशिशों के बाद भी गंदगी फैलाते हैं।
अनुशासन,निष्ठा,सहकारिता के साथ-साथ लापरवाह इंदौरवासियों को इंदौर और इसकी स्वच्छता के प्रति "अपनेपन" की भावना का निर्माण करना होगा जो निस्संदेह इंदौर को स्वच्छता की दौड़ में हमेशा जीत दिलाएगा।
सभी तस्वीरें -तृषा निम्बालकर