sant namdev : महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव महाराज

Webdunia
sant namdev
 

आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी (13) के दिन महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। नामदेव भारत के महाराष्ट्र में जन्मे संत-कवि है।
 
संत नामदेव जी का जन्म भक्त कबीर जी से 130 वर्ष पूर्व 1270 में महाराष्ट्र के जिला सातारा के नरसी बामनी गांव में कार्तिक शुक्ल एकादशी को हुआ था। उनके पिता का नाम दामाशेटी और माता का नाम गोणाई देवी था। उनका परिवार भगवान विठ्ठल का परम भक्त था। 
 
संत नामदेव के गुरु विसोबा खेचर थे। गुरुग्रंथ और कबीर के भजनों में इनके नाम का उल्लेख मिलता है। ये महाराष्ट्र के पहुंचे हुए संत हैं। उन्होंने ब्रह्मविद्या को लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार किया तो संत नामदेव जी ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में 'हरिनाम' की वर्षा की।
 
एक दिन उनके पिता बाहर गांव की यात्रा पर गए थे, तब उनकी माता ने नामदेव को दूध दिया और कहा कि वे इसे भगवान विठोबा को भोग में चढा दें। तब नामदेव सीधे मंदिर में गए और मूर्ति के आगे दूध रखकर कहा, ‘लो इसे पी लो।’ उस मंदिर में उपस्थित लोगों ने उनसे कहा- यह मूर्ति है, दूध कैसे पिएगी?

परंतु पांच वर्ष के बालक नामदेव नहीं जानते थे कि विठ्ठल की मूर्ति दूध नहीं पीती, मूर्ति को तो बस भावनात्मक भोग लगवाया जाता है। तब उनकी बाल लीला समझ कर मंदिर में उपस्थित सब अपने-अपने घर चले गए। जब मंदिर में कोई नहीं था तब नामदेव निरंतर रोए जा रहे थे और कह रहे थे, ‘विठोबा यह दूध पी लो नहीं तो मैं यहीं, इसी मंदिर में रो रोकर प्राण दे दूंगा।’
 
तब बालक का भोला भाव देखकर विठोबा पिघल गए। तब वे जीवित व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और स्वयं दूध पीकर नामदेव को भी पिलाया। तब से बालक नामदेव को विठ्ठल नाम की धुन लग गई और वे दिनरात विठ्ठल नाम की रट लगाए रहते थे।  
 
उनके गुरु महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर थे। उन्होंने बह्मविद्या को लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार किया तो संत नामदेव जी ने महाराष्ट्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में 'हरिनाम' की वर्षा की।
 
भक्त नामदेव जी का महाराष्ट्र में वही स्थान है, जो भक्त कबीर जी अथवा सूरदास का उत्तरी भारत में है। उनका सारा जीवन मधुर भक्ति-भाव से ओतप्रोत था। विट्ठल-भक्ति भक्त नामदेव जी को विरासत में मिली। 
 
उनका संपूर्ण जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा। मूर्ति पूजा, कर्मकांड, जातपात के विषय में उनके स्पष्ट विचारों के कारण हिन्दी के विद्वानों ने उन्हें कबीर जी का आध्यात्मिक अग्रज माना है। संत नामदेव जी ने पंजाबी में पद्य रचना भी की। भक्त नामदेव जी की बाणी में सरलता है। वह ह्रदय को बांधे रखती है। उनके प्रभु भक्ति भरे भावों एवं विचारों का प्रभाव पंजाब के लोगों पर आज भी है। 
 
भक्त नामदेव जी के महाप्रयाण से तीन सौ साल बाद श्री गुरु अरजनदेव जी ने उनकी बाणी का संकलन श्री गुरु ग्रंथ साहिब में किया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 61 पद, 3 श्लोक, 18 रागों में संकलित है।
 
वास्तव में श्री गुरु साहिब में नामदेव जी की वाणी अमृत का वह निरंतर बहता हुआ झरना है, जिसमें संपूर्ण मानवता को पवित्रता प्रदान करने का सामर्थ्य है। ‘मुखबानी’ नामक ग्रंथ में उनकी कईं रचनाएं संग्रहित हैं। उनके जीवन के एक रोचक प्रसंग के अनुसार एक बार जब वे भोजन कर रहे थे, तब एक श्वान आकर रोटी उठाकर ले भागा। तो नामदेव जी उसके पीछे घी का कटोरा लेकर भागने लगे और कहने लगे 'हे भगवान, रुखी मत खाओ साथ में घी लो।' विश्व भर में उनकी पहचान 'संत शिरोमणि' के रूप में जानी जाती है। ऐसे महान संत को विनम्र श्रद्धां‍जलि। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Somvati amavasya 2024: सोमवती अमावस्या पर कर लें एक मात्र उपाय, दरिद्रता हमेशा के लिए हो जाएगी दूर

केरल में भगवान गणेश के इस मंदिर में आज भी मौजूद है टीपू सुल्तान की तलवार का निशान

Ganesh Chaturthi 2024: गणेश चतुर्थी 2024 कब है 6 या 7 सितंबर को? जानें तिथि, शुभ समय, महत्व, अनुष्ठान

Shukra gochar : शुक्र ग्रह के कन्या राशि में जाने से 4 राशियों की चमक गई है किस्मत, जानें क्या होगा फायदा

Lal kitab ke upay: लाल किताब के रामबाण उपाय

सभी देखें

धर्म संसार

Ganesh chaturthi 2024: गणेश चतुर्थी पर गणपति पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त कब है?

Aaj Ka Rashifal: 31 अगस्त, महीने का अंतिम दिन क्या लाया है 12 राशियों के लिए, पढ़ें दैनिक राशिफल

Shani Trayodashi 2024: शनि त्रयोदशी पर करें शनि दोष और पितृदोष से मुक्ति के लिए मात्र 4 उपाय

31 अगस्त 2024 : आपका जन्मदिन

31 अगस्त 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

अगला लेख
More