Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(आंवला नवमी)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल नवमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-अक्षय आंवला नवमी
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

शंकराचार्य जयंती : आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कब हुआ था?

हमें फॉलो करें शंकराचार्य जयंती : आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कब हुआ था?
webdunia

अनिरुद्ध जोशी

आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म कब हुआ था? इस संबंध में भ्रम फैला हुआ है। इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म 7वीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था। आओ जानते हैं कि आखिर सचाई क्या है।
 
आदि शंकराचार्य का जन्म- महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि आदि शंकराचार्यजी का काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है। दयानंद सरस्वती जी 138 साल पहले हुए थे। आज के इतिहासकार कहते हैं कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में। मतलब वह 32 साल जीए। अब हम असली बात समझते हैं।
 
इस वक्त 2020 ईसाई वर्ष चल रहा है। विक्रम संवत इससे 57 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। वर्तमान में विक्रम संवत 2077 चल रहा है। इस वक्त कलि संवत 5121 चल रहा है। युधिष्ठिर संवत कलि संवत से 38 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। मतलब इस वक्त युधिष्ठिर संवत 5159 चल रहा है।
 
आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी।

इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्‍ठिर संवत में की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्‍ठिर संवत में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के बारे में लिखा जान लेंगे।
 
मठों में आदि शंकराचार्य से अब तक के जितने भी गुरु और उनके शिष्य हुए हैं उनकी गुरु-शिष्य परंपरा का इतिहास संवरक्षित है। जो भी गुरु या गुरु का शिष्य समाधि लेता था उनकी तिथि वहां के इतिहास में दर्ज होती थी। फिर जो गुरु शंकराचार्य की पदवी ग्रहण करता और समाधि लेता था उसकी भी तिथि आदि दर्ज होती रही है। उक्त तिथियों को श्लोकों में लिखे जाने की परंपरा रही है। जिसे गुरु-शिष्य की परंपरा के अनुसार कंठस्थ किए जाने का प्रचलन रहा है। शंकराचार्य ने पश्‍चिम दिशा में 2648 में जो शारदामठ बनाया गया था उसके इतिहास की किताबों में एक श्लोक लिखा है।
 
युधिष्ठिरशके 2631 वैशाखशुक्लापंचमी श्री मच्छशंकरावतार:।
तदुन 2663 कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां....श्रीमच्छंशंकराभगवत्।
पूज्यपाद....निजदेहेनैव......निजधाम प्रविशन्निति।
 
अर्थात 2631 युधिष्‍ठिर संवत में आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ था। मतलब आज 5159 युधिष्ठिर संवत चल रहा है। अब यदि 2631 में से 5159 घटाकर उनकी जन्म तिथि निकालते हैं तो 2528 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था। इसको यदि हम अंग्रेजी या ईसाई संवत से निकालते हैं तो 2528 में से हम 2020 घटा दे तो आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईसा पूर्व हुआ था। इसी तरह मृत्यु का सन् निकालें तो 474 ईसा पूर्व उनकी मृत्यु हुई थी। 
 
आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था। शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे।

उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात कही है। गुरुरत्न मालिका में उनके देह त्याग का उल्लेख मिलता है। 
 
भ्रम क्यों उत्पनन्न हुआ- दरअसल, 788 ईस्वी में एक अभिनव शंकर हुए जिनकी वेशभूषा और उनका जीवन भी लगभग शंकराचार्य की तरह ही था। वे भी मठ के ही आचार्य थे। उन्होंने चिदंबरमवासी श्रीविश्वजी के घर जन्म लिया था। उनको इतिहाकारों ने आदि शंकराचार्य समझ लिया। ये अभिनव शंकराचार्यजी कैलाश में एक गुफा में चले गए थे। ये शंकराचार्य 45 वर्ष तक जीए थे। लेकिन आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां हुआ था और वे 32 वर्ष तक ही जीए थे।
 
 शंकराचार्य ने ही दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यह दस संप्रदाय निम्न हैं:- 1.गिरि, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। 4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। 9.तीर्थ और 10. आश्रम के ऋषि अवगत हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रामायण और महाभारत युद्ध जैसा ही एक 'महायुद्ध', जिसने बदल दिया भारत