मोरारी बापू : आधुनिक तुलसी
रामचरित के अनूठे प्रस्तुतकर्ता
अपने विशिष्ट अंदाज में रामकथा का रसास्वादन करवाने वाले और देश-विदेश के लाखों लोगों को जीवनदर्शन का सही मार्ग बताने वाले संतश्री मोरारी बापू का 25 सितम्बर को जन्मदिन है। रामचरितमानस को सरल, सहज और सरस तरीके से प्रस्तुत करने वाले 62 वर्षीय बापू की सादगी का कोई सानी नहीं है।
टीवी चैनलों पर अनेक संत-महात्माओं के प्रवचन आते हैं, जिनमें बापू भी शामिल हैं, लेकिन जो लोग उनसे जुड़े हुए हैं, वे बापू की कथा का पता चलते ही कभी चैनल नहीं बदलते। जहाँ पर कथा होती है, वहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं।
राम के जीवन के बारे में तो सब जानते हैं, लेकिन पता नहीं बापू की वाणी में ऐसा कौन-सा जादू है, जो श्रोताओं और दर्शकों को बाँधे रखता है। वे कथा के जरिये मानव जाति को सद्कार्यों के लिए प्रेरित करते हैं। सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि उनकी कथा में न केवल बुजुर्ग महिला-पुरुष मौजूद रहते हैं, बल्कि युवा वर्ग भी काफी संख्या में मौजूद रहता है। वे न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मानव कल्याण के लिए रामकथा की भागीरथी को प्रवाहित कर रहे हैं।
25 सितम्बर, 1946 के दिन महुआ के समीप तलगाजरडा (सौराष्ट्र) में वैष्णव परिवार में मोरारी बापू का जन्म हुआ। पिता प्रभुदास हरियाणी के बजाय दादाजी त्रिभुवनदास का रामायण के प्रति असीम प्रेम था। तलगाजरडा से महुआ वे पैदल विद्या अर्जन के लिए जाया करते थे। 5 मील के इस रास्ते में उन्हें दादाजी द्वारा बताई गई रामचरित मानस की 5 चौपाइयाँ प्रतिदिन याद करना पड़ती थीं। इस नियम के चलते उन्हें धीरे-धीरे समूची रामायण कंठस्थ हो गई।
दादाजी को ही बापू ने अपना गुरु मान लिया था। 14 वर्ष की आयु में बापू ने पहली बार तलगाजरडा में चैत्रमास 1960 में एक महीने तक रामायण कथा का पाठ किया। विद्यार्थी जीवन में उनका मन अभ्यास में कम, रामकथा में अधिक रमने लगा था। बाद में वे महुआ के उसी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक बने, जहाँ वे बचपन में विद्यार्जन किया करते थे, लेकिन बाद में उन्हें अध्यापन कार्य छोड़ना पड़ा, क्योंकि रामायण पाठ में वे इतना डूब चुके थे कि समय मिलना कठिन था।
महुआ से निकलने के बाद 1966 में मोरारी बापू ने 9 दिन की रामकथा की शुरुआत नागबाई के पवित्र स्थल गाँठिया में रामफलकदासजी जैसे भिक्षा माँगने वाले संत के साथ की। उन दिनों बापू केवल सुबह कथा का पाठ करते थे और दोपहर में भोजन की व्यवस्था में स्वयं जुट जाते। ह्वदय के मर्म तक पहुँचा देने वाली रामकथा ने आज बापू को दूसरे संतों से विलग रखा हुआ है।
मोरारी बापू का विवाह नर्मदाबेन से हुआ। उनके चार बच्चों में तीन बेटियाँ और एक बेटा है। पहले वे परिवार के पोषण के लिए रामकथा से आने वाले दान को स्वीकार कर लेते थे, लेकिन जब यह धन बहुत अधिक आने लगा तो 1977 से प्रण ले लिया कि वे कोई दान स्वीकार नहीं करेंगे। इसी प्रण को वे आज तक निभा रहे हैं।
मोरारी बापू दर्शन के प्रदर्शन से प्रदर्शन के दर्शन से काफी दूर हैं। कथा करते समय वे केवल एक समय भोजन करते हैं। उन्हें गन्ने का रस और बाजरे की रोटी काफी पसंद है। सर्वधर्म सम्मान की लीक पर चलने वाले मोरारी बापू की इच्छा रहती है कि कथा के दौरान वे एक बार का भोजन किसी दलित के घर जाकर करें और कई मौकों पर उन्होंने ऐसा किया भी है।
बापू ने जब महुआ में स्वयं की ओर से 1008 राम पारायण का पाठ कराया तो पूर्णाहुति के समय हरिजन भाइयों से आग्रह किया कि वे नि:संकोच मंच पर आएँ और रामायण की आरती उतारें। तब डेढ़ लाख लोगों की धर्मभीरु भीड़ में से कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया और कुछ संत तो चले भी गए, लेकिन बापू ने हरिजनों से ही आरती उतरवाई।
सौराष्ट्र के ही एक गाँव में बापू ने हरिजनों और मुसलमानों का मेहमान बनकर रामकथा का पाठ किया। वे यह बताना चाहते थे कि रामकथा के हकदार मुसलमान और हरिजन भी हैं। बापू की नौ दिवसीय रामकथा का उद्देश्य है- धर्म का उत्थान, उसके द्वारा समाज की उन्नति और भारत की गौरवशाली संस्कृति के प्रति लोगों के भीतर ज्योति जलाने की तीव्र इच्छा।
मोरारी बापू के कंधे पर रहने वाली 'काली कमली' (शॉल) के विषय में अनेकानेक धारणाएँ प्रचलित हैं। एक धारणा यह है कि काली कमली स्वयं हनुमानजी ने प्रकट होकर प्रदान की और कुछ लोगों का मानना है कि यह काली कमली उन्हें जूनागढ़ के किसी संत ने दी, लेकिन मोरारी बापू इन मतों के बारे में अपने विचार प्रकट करते हुए कहते हैं कि काली कमली के पीछे कोई रहस्य नहीं है और न ही कोई चमत्कार। मुझे बचपन से काले रंग के प्रति विशेष लगाव रहा है और यह मुझे अच्छी लगती है, सो इसे मैं कंधे पर डाले रखता हूँ।
किसी भी धार्मिक और राजनीतिक विवादों से दूर रहने वाले मोरारी बापू को अंबानी परिवार में विशेष सम्मान दिया जाता है। स्व. धीरूभाई अंबानी ने जब जामनगर के पास खावड़ी नामक स्थान पर रिलायंस की फैक्टरी का शुभारंभ किया तो उस मौके पर मोरारी बापू की कथा का पाठ किया था। तब उन्होंने धीरूभाई से पूछा कि लोग इतनी दूर से यहाँ काम करने आएँगे तो उनके भोजन का क्या होगा? बापू की इच्छा थी कि अंबानी परिवार अपने कर्मचारियों को एक समय का भोजन दे और तभी से रिलायंस में एक वक्त का भोजन दिए जाने की शुरुआत हुई। यह परंपरा अब तक कायम है।
मोरारी बापू अपनी कथा में शे'रो-शायरी का भरपूर उपयोग करते हैं, ताकि उनकी बात आसानी से लोग समझ सकें। वे कभी भी अपने विचारों को नहीं थोपते और धरती पर मनुष्यता कायम रहे, इसका प्रयास करते रहते हैं। उनकी इच्छा थी कि पाकिस्तान जाकर रामकथा का पाठ करें, लेकिन वीजा और सुरक्षा कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।
आज न जाने कितने लोग हैं, जो बापू के ऐसे भक्त हो गए कि उनके पीछे-पीछे हर कथा में पहुँच जाते हैं और रामकथा में गोते लगाते रहते हैं। आज के दौर में जिस सच्चे पथ-प्रदर्शक की जरूरत महसूस की जा रही है, उसमें सबसे पहले मोरारी बापू का नाम ही जुबाँ पर आता है, जो सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का अलख जगाए हुए हैं।