रामसेतु हिन्दू पूजा स्थल नहीं-केन्द्र
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की नई दलील
मनमोहन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर दावा किया है कि कंब रामायण के अनुसार लंका से लौटते समय भगवान श्रीराम ने स्वयं ही रामसेतु को तोड़ा था और रामसेतु के अवशेष को हिन्दू धर्म के अभिन्न हिस्से के रूप में आराधना स्थल नहीं कहा जा सकता है।
केंद्र सरकार ने रामसेतु को विध्वंस से बचाने के इरादे से सेतु समुद्रम परियोजना के लिए निर्धारित मार्ग में परिवर्तन की माँग को लेकर न्यायालय की शरण लेने वालों के अधिकांश तर्कों को ही इस लिखित दलील में जवाब का आधार बनाया है। इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अपनी दलीलों के पक्ष में आधार बनाई गई धार्मिक पुस्तकों से भी पता चलता है कि भगवान राम ने ही रामसेतु का निर्माण किया था और स्वंय उन्होंने ही इसे तोड़ा भी था।
सरकार का दावा है कि एक धार्मिक आस्था या व्यवहार, जो धर्म का अनिवार्य और अभिन्न हिस्सा नहीं है, को धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 25 या अनुच्छेद 26 में किसी प्रकार का संरक्षण प्राप्त नहीं है।
सरकार का तर्क है कि किसी समुदाय की आस्था के सवाल को अदालत में किसी अन्य तथ्य की तरह ही सिद्घ करना होगा और इसके बाद कोई भी पंथनिरपेक्ष न्यायाधीश उसे स्वीकार करने के लिए बाध्य होगा। सरकार का यह भी तर्क है कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में कहीं भी रामसेतु के बारे में इसे धर्म के अनिवार्य और अभिन्न हिस्से के रूप में धार्मिक स्थल होने का दावा नहीं किया है। यही नहीं, इसमें कहीं भी इसके बारे में हिन्दू समुदाय की आस्था का भी दावा नहीं किया गया है।
प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 30 जुलाई को सेतु समुद्रम परियोजना को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की थी। इस मामले में न्यायालय का फैसला प्रतीक्षित है। न्यायालय ने सभी संबंधित पक्षों से कहा था कि वे दो सप्ताह के भीतर अपनी लिखित दलीलें भी पेश कर सकते हैं। केंद्र सरकार ने इसी आदेश के अनुरूप ये दलीलें दाखिल की हैं।
ध्यान रहे अरबों रुपए की इस महत्वाकांक्षी परियोजना से धार्मिक आस्था के प्रतीक रामसेतु को लेकर भगवान राम और रामायण में वर्णित उनके प्रसंगों के अस्तित्व को एक बार नकार चुकी मनमोहन सरकार ने मार्च में न्यायालय में नया हलफनामा दाखिल किया था।
संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के बजाय नया हलफनामा जहाजरानी मंत्रालय ने दाखिल किया था। इस हलफनामे में सरकार ने रामसेतु जैसे धार्मिक आस्था से जुड़े सवालों का सीधा जवाब देने से परहेज किया था। सरकार ने यह भी कहा था कि नीतिगत फैसले धर्म और आस्था से संचालित नहीं होने चाहिए।
न्यायालय ने 31 अगस्त 2007 को केंद्र सरकार और सेतु समुद्रम कॉरपोरेशन को इस परियोजना के तहत समुद्र तल से रेत हटाने का काम जारी रखने की अनुमति देते हुए यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि इससे रामसेतु को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचे। न्यायालय के इस आदेश के बाद से ही सेतु समुद्रम परियोजना के तहत रेत निकालने का काम ठप है।
सरकार ने इस परियोजना को लेकर की जा रही आपत्तियों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए दावा किया है कि इस परियोजना को 31 मार्च 2005 को ही पर्यावरण की दृष्टि से मंजूरी दी गई थी। सरकार का यह भी दावा है कि इस मंजूरी के समय तमिलनाडु में जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक की सरकार थी, लेकिन 2005 से 2007 के दौरान उन्होंने इसे चुनौती देना उचित नहीं समझा।