आदि शंकराचार्य की कहानी : 10 खास बातें

Webdunia
आदि शंकराचार्यजी और गुरु गोरखनाथजी ने हिन्दू सनातन धर्म को फिर से सुगठित किया था। आदि शंकराचार्यजी ने बहुत कम उम्र में ही बहुत बड़ा कार्य किया था। उनके बारे में कुछ लोगों ने बहुत ज्यादा भ्रम फैला रखा है और कई लोग उनके बारे में कम ही जानते हैं। आओ जानते हैं उनके बारे में 10 खास बातें।
 
1. जन्म समय : आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईस्वी पूर्व हुआ था और उन्होंने 474 ईसा पूर्व अपनी देह को त्याग दिया था। एक दूसरे अभिनव शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में हुई थी।
 
2. माता पिता : आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर हुआ था। मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां उनका जन्म हुआ था।
 
3. चार मठों की स्थापना : आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण में ही श्रंगेरी मठ की स्थापना की। इसके बाद अंत में उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।
adi shankaracharya
4. दसनामी संप्रादाय की स्थापना : आदि शकराचार्य ने ही दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यह दस संप्रदाय निम्न हैं:- 1.गिरि, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। 4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। 9.तीर्थ और 10.आश्रम के ऋषि अवगत हैं। 
 
5. शंकराचार्य के चार शिष्य : 1. पद्मपाद (सनन्दन), 2. हस्तामलक 3. मंडन मिश्र 4. तोटक (तोटकाचार्य)। माना जाता है कि उनके ये शिष्य चारों वर्णों से थे। शंकराचार्य के गुरु दो थे। गौडपादाचार्य के वे प्रशिष्य और गोविंदपादाचार्य के शिष्य कहलाते थे। 
 
6. ग्रंथ : शंकराचार्य ने सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र भाष्य के अतिरिक्त ग्यारह उपनिषदों पर तथा गीता पर भाष्यों की रचनाएं की एवं अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों स्तोत्र-साहित्य का निर्माण कर वैदिक धर्म एवं दर्शन को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए अनेक श्रमण, बौद्ध तथा हिंदू विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया।
 
7. महान अद्वैत दर्शन : शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है। आदि शंकराचार्य का स्थान विश्व के महान दार्शनिकों में सर्वोच्च माना जाता है। उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि 'ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया।' आत्मा की गति मोक्ष में है।
 
8. राजा सुधनवा के काल में हुए शंकराचार्य : आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था। 
 
9. शंकराचार्य के सहपाठी : शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात कही है। गुरुरत्न मालिका में उनके देह त्याग का उल्लेख मिलता है।
 
10. समाधी : आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ क्षेत्र में समाधी ले ली थी। उनकी समाधी केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित है। उन्होंने ही केदारनाथ मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया था। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Bhai dooj katha: भाई दूज की पौराणिक कथा

Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन सामग्री सहित सरल विधि

Diwali Laxmi Pujan Timing: दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त और चौघड़िया

Narak chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी पर हनुमानजी की पूजा क्यों करते हैं, क्या है इसका खास महत्व?

दिवाली के पांच दिनी उत्सव में किस दिन क्या करते हैं, जानिए इंफोग्राफिक्स में

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: भाई दूज के दिन किन राशियों पर होगी ईश्वर की विशेष कृपा, पढ़ें 03 नवंबर का राशिफल

03 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

03 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chhath Puja 2024: छठ पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की सामग्री एवं पूजन विधि

Chhath Puja katha: छठ पूजा की 4 पौराणिक कथाएं

अगला लेख
More