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history of sudas | महान सम्राट सुदास का इतिहास

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अनिरुद्ध जोशी

सम्राट भरत के समय में राजा हस्ति हुए जिन्होंने अपनी राजधानी हस्तिनापुर बनाई। राजा हस्ति के पुत्र अजमीढ़ को पंचाल का राजा कहा गया है। राजा अजमीढ़ के वंशज राजा संवरण जब हस्तिनापुर के राजा थे तो पंचाल में उनके समकालीन राजा सुदास का शासन था।
 
 
राजा सुदास का संवरण से युद्ध हुआ जिसे कुछ विद्वान ऋग्वेद में वर्णित 'दाशराज्य युद्ध' से जानते हैं। राजा सुदास के समय पंचाल राज्य का विस्तार हुआ। राजा सुदास के बाद संवरण के पुत्र कुरु ने शक्ति बढ़ाकर पंचाल राज्य को अपने अधीन कर लिया तभी यह राज्य संयुक्त रूप से 'कुरु-पंचाल' कहलाया, परंतु कुछ समय बाद ही पंचाल पुन: स्वतंत्र हो गया।
 
राजा कुरु के नाम पर ही सरस्वती नदी के निकट का राज्य कुरुक्षेत्र कहा गया। माना जाता है कि पंचाल राजा सुदास के समय में भीम सात्वत यादव का बेटा अंधक भी राजा था। इस अंधक के बारे में पता चलता है कि शूरसेन राज्य के समकालीन राज्य का स्वामी था। दाशराज्य युद्ध में यह भी सुदास से हार गया था। इस युद्ध के बाद भारत की किस्मत बदल गई। समाज में दो फाड़ हो गई।
 
 
कब हुआ था दाशराज्य का युद्ध?
कुछ इतिहासकारों के अनुसार सुदास दशराज्ञ युद्ध के विजेता थे जिसका वर्णन ऋग्वेद ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है। उनका जीवनकाल अलग-अलग स्रोतों में 1700 ईसापूर्व से लेकर 1100 ईसापूर्व के बीच के किसी समय में अनुमानित किया जाता है। लेकिन पौराणिक स्रोतों के अनुसार महाभारत युद्ध के लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व एक और युद्ध हुआ था जिसे दशराज युद्ध (दाशराज्ञ के नाम से जाना जाता है।
 
इस युद्ध की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है। यह रामायण काल की बात है। दाशराज युद्ध त्रेतायुग में लड़ा गया। भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व 10 जनवरी को दिन के 12.05 पर हुआ था। भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि को हुआ था। आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने एक बाण लगने के कारण देह छोड़ दी थी।
 
कहां हुआ था दाशराज्य का युद्‍ध?
महाभारत युद्ध के पहले भारत के आर्यावर्त क्षेत्र में आर्यों के बीच दाशराज्ञ युद्ध हुआ था। इस युद्ध का वर्णन दुनिया के हर देश और वहां की संस्कृति में आज भी विद्यमान हैं। ऋग्वेद के सातवें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है। इस युद्ध से यह पता चलता है कि आर्यों के कितने कुल या कबीले थे और उनकी सत्ता धरती पर कहां तक फैली थी। इतिहासकारों के अनुसार यह युद्ध आधुनिक पाकिस्तानी पंजाब में परुष्णि नदी (रावी नदी) के पास हुआ था।
 
 
इनके बीच हुआ था युद्ध : भारतों के कबीले का राजा था सुदास जो अपने ही कुल के अन्य कबीले से लड़ा था। माना जाता है कि वह पुरु, यदु, तुर्वश, अनु, द्रुह्मु, अलिन, पक्थ, भलान, शिव एवं विषाणिन कबीले के लोगों से लड़ा था।
 
माना जाता है कि पुरु और तृत्सु नामक आर्य समुदाय के बीच यह युद्ध हुआ था। इस युद्ध में जहां एक ओर पुरु नामक आर्य समुदाय के योद्धा थे, तो दूसरी ओर 'तृत्सु' नामक समुदाय के योद्धा युद्ध लड़ रहे थे। दोनों ही हिन्द-आर्यों के 'भरत' नामक समुदाय से संबंध रखते थे। हालांकि पुरुओं के नेतृत्व में से कुछ को आर्य नहीं माना जाता था।
 
 
तुत्सु का नेतृत्व : तुत्सु समुदाय का नेतृत्व राजा सुदास ने किया। सुदास दिवोदास के पुत्र थे, जो स्वयं सृंजय के पुत्र थे। सृंजय के पिता का नाम देवव्रत था। सुदास के युद्ध में सलाहकार ऋषि वशिष्ठ थे।
 
पुरु का नेतृत्व : सुदास के विरुद्ध दस राजा युद्ध लड़ रहे थे जिनका नेतृत्व पुरु कबीला के राजा संवरण कर रहे थे। जिनके सैन्य सलाहकार ऋषि विश्वामित्र थे।
 
 
अन्य तथ्य : साढ़े छह से सात हजार वर्ष पूर्व यह दाशराज्ञ युद्ध तुत्सु राजा सुदास और दस जनजातियों के समूह के बीच हुआ। वे जनजातियां हैं पख्त, भत्मान, अत्मिन, शिव, विशानिन, सिम्यु, भृगु, पृथु और पर्शु (परशु)। इस युद्ध में पराजित द्रुह्रु राजा का नाम अंगार था। उसके बाद के द्रुह्रु राजा गंधार ने वायव्य दिशा में जाकर अपना राज्य स्थापित किया। गंधार के इसी राज्य को गांधार कहा जाने लगा। (आधुनिक युग में इसी का अपभ्रंश रूप कंधार है जो अफगानिस्तान में है।)
 
 
सुदास के विरुद्ध लड़े ये समुदाय : ऋग्वेद का सुविख्यात नायक सुदास भारतों का नेता था और पुरोहित वसिष्ठ उसके सहायक थे। इनके शत्रु थे, पांच प्रमुख जनजातियां-, ‘अनु’, ‘द्रुह्यु’, ‘यदु’, ‘तुर्वशस्’ और ‘पुरु’ तथा पांच गौण जनजातियां- ‘अलिन’, ‘पक्थ’, ‘भलानस्’, ‘शिव’ और ‘विषाणिन’ के दस राजा। विरोधी गुट के सूत्रधार ऋषि विश्वामित्र थे और उसका नेतृत्व पुरुओं ने किया था। हालांकि इन दस राजाओं का सभी जगह अलग-अलग वर्णन मिलता है। यहां प्रस्तुत है ज्यादातर जगह पाया जाना वाला वर्णन।
 
 
1. अलीन समुदाय : इतिहासकार मानते हैं कि यह कबीला अफगानिस्तान के नूरिस्तान क्षेत्र के पूर्वोत्तर में रहता था। चीनी तीर्थयात्री हुएन त्सांग ने उस जगह को उनकी गृहभूमि होने का जिक्र किया है। अलीन समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
2. अनु : यह ययाति के पुत्र अनु के कुल का समुदाय था, जो परुष्णि (रावी नदी) के पास रहता था। अनु समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
 
3. भृगु समुदाय : माना जाता है कि यह समुदाय प्राचीन भृगु ऋषि के वंश के थे। बाद में इनका संबंध अथर्ववेद के भृगु-आंगिरस विभाग की रचना से किया गया है। भृगु समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
4. भालन समुदाय : कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह बोलन दर्रे के इलाके में बसने वाले लोग थे। भालन समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।

5. द्रुह्य : ऋग्वेद अनुसार यह समुदाय द्रुह्यु कुल का था, जो अफगानिस्तान के गांधार प्रदेश में निवास करता था। द्रुह्य समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
 
6. मत्स्य : ऋग्वेद में इस समुदाय का जिक्र मिलता है लेकिन बाद में इनका शाल्व से संबंध होने का उल्लेख भी मिलता है। यह जनजाति समुदास के लोग थे। मत्स्य समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।

7. परसु : परसु समुदाय प्राचीन पारसियों का समुदाय था। ईरान इनका मूल स्थान था। प्राचीन समय में ईरान को पारस्य देश कहा जाता था। परसु समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
 
8. पुरु : यह समुदाय ऋग्वेद काल का एक महान परिसंघ था जिसे सरस्वती नदी के किनारे बसा होना बताया जाता रहा है, हालांकि आर्य काल में यह जम्मू-कश्मीर और हिमालय के क्षेत्र में राज्य करते थे। पुरु समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।

9. पणी : इन्हें दानव कुल का माना जाता है लेकिन बाद के ऐतिहासिक स्रोत इन्हें स्किथी लोगों से संबंधित बताते हैं। पणी समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
 
10. दास (दहए) : यह दास जनजातियां थी। ऋग्वेद में इन्हें दसुह नाम से जाना गया। यह भी माना जाता है कि यह काले रंग के थे। दास समुदाय का नाम है राजा का नहीं इनके राजा कौन थे यह अभी अज्ञात है।
 
संदर्भ :
*ऋग्वेद, महाभारत और पुराण।
*पुस्तक भारतीय पुरातत्व और प्रागैतिहासिक संस्कृतियां, लेखक डॉ. शिवस्वरूप सहाय।
*पुस्तक विश्वामित्र, लेखक बृजेश के बर्मन।

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