भारत में ऐसी बहुत सारी परंपराएं और ज्ञान प्रचलन में था, जो अब लुप्त हो गया है या जो अब प्रचलन से बाहर है। लोक नृत्य-गान, लोकभाषा, लोक संगीत, लोक पोशाक, लोक व्यंजन सहित लोक चित्रकला भी भारतीय परंपरा की पहचान है। प्राचीन भारत में 64 कलाएं प्रचलित थीं उसी में से एक है चित्रकला। लोक चित्रकला में मांडना, रंगोली, अल्पना आदि आते हैं। हर राज्य में चित्रकला के अलग अलग रूप और रंग देखने को मिलते हैं।
मधुबनी चित्रकला को मिथिला चित्रकारी भी कहते हैं। यह चित्रकला बिहार राज्य की लोककला है। बिहार में एक जिला है, मधुबन जिसका अर्थ है शहद का जंगल। यह चित्रकारी मधुबानी जिले की स्थानीय कला है। आओ जानते हैं इस चित्रकला की 10 खासियत।
1. मधुबनी चित्रकला प्राकृतिक रंगों की जाती है। इनमें इस्तेमाल किए जाने वाले रंग आमतौर पर चावल के पाउडर, हल्दी, चंदन, पराग, वर्णक, पौधों, गाय का गोबर, मिट्टी और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं जो चित्रकार खुद बनाता है। ये रंग अक्सर चमकदार होते हैं। दीपक की कालिख और मिट्टी जैसे रंग द्रव्य क्रमशः काले और भूरे रंग के बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
2. आधुनिक ब्रश के बजाय, चित्र बनाने के लिए पतली टहनी, माचिस, अंगुलियों और परंपरागत वस्तुओं का उपयोग उपयोग किया जाता है।
3. इस चित्रकला की 5 शैलियां हैं- भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना और कोहबर। हालांकि मुख्य रूप से मधुबनी पेंटिंग दो तरह की होतीं हैं- भित्ति चित्र और अरिपन। भित्ति चित्र विशेष रूप घरों में तीन स्थानों पर मिट्टी से बनी दीवारों पर की जाती है जिसमें कुलदेवता, लोकदेवता, नए विवाहित जोड़े (कोहबर) के कमरे और ड्राइंग रूम में की जाती है। अरिपन अर्थात अल्पना या मांडना को चित्रित करने के लिए आंगन या फर्श पर लाइन खींचकर सुंदर रंगोली जैसी बनाई जाती है। अरिपन कुछ पूजा-समारोहों जैसे पूजा, वृत, और संस्कार आदि अवसरों पर की जाती है।
4. इस चित्रकला में पौराणिक घटनाओं के वर्णन के साथ ही ज्यामितिक आकार और डिज़ाइन भी इस चित्रकारी देखने को मिलती है। चित्र के खाली स्थानों को अधिकतर समय फूल-पत्तों और बेलबुटों से भर दिया जाता है। इन चित्रों में कमल के फूल, बांस, शंख, चिड़ियां, सांप आदि कलाकृतियां भी होती है।
5. इस चित्रकला चित्रण का फोकस खासतौर पर रामायण, महाभारत और पौरणिक ग्रंथों की कथाओं के साथ ही हिन्दू उत्सव, 16 संस्कार, राज दरबार और विवाह जैसे सामाजिक कार्यक्रम के इर्द-गिर्द ही रहता है।
6. मथुबनी चित्रकला रामायण काल में भी होती थी, क्योंकि वाल्मीकि रामायण अनुसार सीता के पिता राजा जनक ने अपने चित्रकारों से अपनी बेटी की शादी के लिए मधुबनी चित्र बनाने के लिए कहा था। इन चित्रों से संपूर्ण महल और नगर को सजाया गया था।
7. इस पारंपरिक मधुबनी कला को पहले बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं ही किया करती थीं। लेकिन आज, यह शैली न केवल भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय है, बल्कि अन्य देशों के लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो चली हैं। अब इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग है।
8. अब दीवार, आंगन, पेड़ या मंदिर ही नहीं बल्की मनुबनी चित्रकारी को साड़ी, कुशन, परदे, डोरमेट, मूर्ति, चूड़ियां, बर्तन, कपड़े, एंटिक और कैनवास पर भी चित्रित कर रहे हैं।
9. मधुबनी चित्रकला में जिन देवी-देवताओं को दिखाया जाता है, वे हैं- मां दुर्गा, काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दस अवतार।
10. मधुबनी शहर में एक स्वतंत्र कला विद्यालय मिथिला कला संस्थान (एमएआई) की स्थापना जनवरी 2003 में ईएएफ द्वारा की गई थी, जो कि मधुबनी चित्रों के विकास और युवा कलाकारों का प्रशिक्षण के लिए है और 'मिथिला संग्रहालय', जापान के निगाटा प्रान्त में टोकामाची पहाड़ियों में स्थित एक टोकियो हसेगावा की दिमागी उपज है, जिसमें 15,000 अति सुंदर, अद्वितीय और दुर्लभ मधुबनी चित्रों के खजाने को रखा गया है। दरभंगा में कलाकृति, मधुबनी में वैधी, मधुबनी जिले के बेनिपट्टी और रंती में ग्राम विकास परिषद, मधुबनी चित्रकला के कुछ प्रमुख केंद्र हैं, जिन्होंने इस प्राचीन कला को जीवित रखा है।