जानिए भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ का इतिहास, जिसे लगाया गया है नए संसद भवन के ऊपर

Webdunia
- अथर्व पंवार

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का अपना एक नया संसद भवन बनने जा रहा है। इसी कड़ी में आज 11 जुलाई को भारत के प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर ने 20 फीट ऊंचे और 9500 किलो वजनी विशालकाय अशोक स्तम्भ का अनावरण भी किया।

आइए जानते हैं इस अशोक स्तम्भ का इतिहास-
 
मौर्य काल के तीसरे शासक हुए थे सम्राट अशोक। इन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ और शक्तिशाली राजाओं में गिना जाता है। इनका साम्राज्य आज के अफगानिस्तान, बंगाल और आसाम से दक्षिण के मैसूर तक फैला हुआ था। जैसा कि इतिहास में माना जाता है कि कलिंग के युद्ध का नरसंहार देखकर सम्राट अशोक आत्मग्लानि से भर गए थे और उन्होंने अहिंसा और शांति का मार्ग चुनने के लिए बौद्ध धर्म अपना लिया था।

बाद में इसी का सन्देश देने के लिए उन्होंने बौद्ध धर्म का देश-विदेश में भी प्रचार-प्रसार भी करवाया। इसके लिए उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भी भेजा था। ऐसा माना जाता है कि अशोक ने चौरासी हजार स्थानों पर स्तूप बनवाए जिसमें कुछ स्थानों पर अशोक स्तम्भ भी शामिल हैं। यह सारनाथ का विश्वविख्यात स्तम्भ धम्मचक्र की घटना का एक स्मारक रूप है। उन्हीं में से एक स्तम्भ सारनाथ में स्थित है जिसे राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
 
 
कैसा है अशोक स्तम्भ
यह स्तम्भ बलुआ पत्थर का बना हुआ है। यह करीबन 45 फुट लम्बा है। नींव को छोड़ दें तो यह स्तम्भ गोलाकार आकृति में है जिसकी परिधि ऊपर जाते-जाते छोटी होती जाती है। इस स्तम्भ (दंड ) के ऊपर कंठ है जिसके ऊपर इस स्तम्भ का शीर्ष है। जहां से इस स्तम्भ का कंठ आरम्भ होता है वहां एक उल्टा कमल बना हुआ है। कंठ भी गोलाकार है जिसे चार भागों में बांटा गया है। जिनमें क्रमानुसार गज, अश्व, बैल और सिंह की दौड़ती हुई आकृतियां बनी हुई है।

कंठ के ऊपर चार सिंह की मूर्तियां है जिनके मुख प्रत्येक दिशा में है। इन सभी सिंहों की पीठ जुडी हुई है। कंठ में इन दौड़ते पशुओं के मध्य चक्र बना हुआ है। इसमें 24 तीलियां है। इसे धर्म चक्र कहा जाता है जिसमें प्रत्येक तीली का बौद्ध मत के अनुसार एक विशेष महत्त्व है। भारत के ध्वज के केंद्र में स्थित ध्वज यहीं से लिया गया है। इस स्तम्भ में तीन शिलालेख थे। एक स्वयं अशोक के कार्यकाल का था जो ब्राह्मी लिपि में था। साथ ही एक कुषाण कल और एक गुप्त काल भी था।
 
क्या है अशोक स्तम्भ में सिंह का महत्त्व
बौद्ध धर्म में सिंह को बुद्ध के समान माना गया है। आज भी हम देखते हैं कि विश्व में अनेक स्थानों पर ऐसे बौद्ध मठ हैं जहां शेरों को पाला जाता है। पाली गाथाओं के अनुसार बुद्धको 'शाक्यसिंह' और 'नरसिंह' के नामों से भी जाना जाता है। यही कारण है कि बुद्ध द्वारा दिए गए उपदेश 'धम्मचक्कपवत्तन' को सिंह की गर्जना माना जाता है। यह दहाड़ते हुए सिंह बुद्ध का उपदेश देने के रूप में दृष्टिमान है। लोक कल्याण, शांति और अहिंसा का उपदेश विश्व में चारों दिशाओं में फैलाने के सन्देश का यह प्रतीकात्मक चिन्ह है।
 
 
भारत में कहां-कहां है अशोक स्तम्भ -
भारत में सारनाथ के अलावा सांची, दिल्ली, वैशाली, प्रयागराज में भी अशोक स्तम्भ स्थित है जिन सभी का अपने आप में विशेष महत्त्व है।

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