विश्व का प्रथम गणतंत्र भारत में जन्मा ना की एथेंस में, जानिए सबूत

अनिरुद्ध जोशी
सोमवार, 25 जनवरी 2021 (08:15 IST)
अंग्रेजी इतिहास में डेमोक्रेसी शब्द सबसे पहली बार हिरोडोटस (Herodotus) नाम के ग्रीक व्यक्ति द्वारा उपयोग किया गया था। परंतु कहा जाता है कि सबसे पहले 507-508 ईसा पूर्व एथेंस में डेमोक्रेसी की जो शुरुआत हुई उसके पीछे क्लेशिथेंस (cleisthenes) नाम के व्यक्ति का हाथ था। एथेंस में पहले महिलाओं को नहीं पुरुषों को वोट देने का अधिकार था। क्लेशिथेंस को 'एथेनियन लोकतंत्र का जनक' कहा जाता है। चूंकि यह परंपरा रही है कि पश्चिम में जो भी पहली बार घटित हुआ उसे ही विश्व में पहली बार ऐसा घोषित कर दिया जाता है, क्योंकि अंग्रेजों ने इस विश्व पर राज किया है इसीलिए इतिहास भी उन्होंने लिखा। खैर..
 
 
हम यह बताना चाहते हैं कि जब एथेंस का अस्तित्व भी नहीं था तब भारत में लोकतंत्र था। लोकतंत्र की अवधारणा भारत की देन है। महाभारत में इसके सूत्र मिलते हैं। बौद्ध काल में वज्जी, लिच्छवी, वैशाली जैसे गंणतंत्र संघ लोकतांत्रिक व्यवस्था के उदाहरण हैं। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव द्वारा चुना गया था।
 
 
कौटिल्य अर्थशास्त्र में लिखते हैं कि गणराज्य दो तरह के होते है, पहला अयुध्य गणराज्य यानि की ऐसा गणराज्य जिसमें केवल राजा ही फैसले लेते हैं, दूसरा है श्रेणी गणराज्य जिसमें हर कोई भाग ले सकता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी लिच्छवी, बृजक, मल्लक, मदक और कम्बोज आदि जैसे गणराज्यों का उल्लेख मिलता है। उनसे भी पहले पाणिनी ने कुछ गणराज्यों का वर्णन अपने व्याकरण में किया है। पाणिनी की अष्ठाध्यायी में जनपद शब्द का उल्लेख अनेक स्थानों पर किया गया है, जिनकी शासनव्यवस्था जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में रहती थी।
 
 
भारत में बौद्धकाल में 450 ई.पू. से 350 ई. तक चर्चित गणराज्य थे पिप्पली वन के मौर्य, कुशीनगर और काशी के मल्ल, कपिलवस्तु के शाक्य, मिथिला के विदेह और वैशाली के लिच्छवी का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता रहा है। इसके बाद अटल, अराट, मालव और मिसोई नामक गणराज्यों का भी जिक्र किया जाता रहा है। यह गणराज्य कोई बौद्धकाल में ही नहीं जन्में थे यह पहले ही विद्यमान थे परंतु बौद्धकाल में यह और भी मजबूत हुए।
 
 
भारत में गणतंत्र का विचार वैदिक काल से चला आ रहा है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग विश्व की पहली पुस्तक ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्ववेद में 9 बार और ब्राह्मण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। वैदिक साहित्य में, विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखों से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर हमारे यहां गणतंत्रीय व्यवस्था ही थी। ऋग्वेद में सभा और समिति का जिक्र मिलता है जिसमें राजा मंत्री और विद्वानों से सलाह मशवरा किया करके के बाद ही कोई फैसला लेता था। यह सभा और समीति ही राज्य के लिए इंद्र का चयन करती थी। इंद्र एक पद था। 

उल्लेखनीय है कि यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है।
 
यूनान के गणतंत्रों से पहले ही भारत में गणराज्यों का जाल बिछा हुआ था। यूनान ने भारत को देखकर ही गणराज्यों की स्थापना की थी। यूनान के राजदूत मेगास्थनीज ने भी अपनी पुस्तक में क्षुद्रक, मालव और शिवि आदि गणराज्यों का वर्णन किया है।
 
सिकंदर के भारत अभियान को इतिहास में रूप में प्रस्तुत करने वाले डायडोरस सिक्युलस तथा कॉरसीयस रुफस ने भारत के सोमबस्ती नामक स्थान का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वहां पर शासन की 'गणतांत्रिक प्रणाली थी, न कि राजशाही।' डायडोरस सिक्युलस ने अपने ग्रंथ में भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में अनेक गणतंत्रों की उपस्थिति का उल्लेख किया है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

गुजराती परिवार ने अमरेली में बनाई लकी कार की समाधि, समारोह में 1500 लोग हुए शामिल, 4 लाख हुए खर्च

J&K में तेज होती आतंकी हिंसा ने बढ़ाई चिंता, किश्तवाड़ में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन

BJP जहां सरकार नहीं बना सकती वहां विधायकों को ही खरीद लेती है : तेजस्वी यादव

अगला लेख
More