सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को सजा देने वाले राज्यों की सूची में अब बिहार का नाम जुड़ने जा रहा है। राज्य पुलिस ने आगाह किया है कि वो अब सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर राज्य पुलिस ने आगाह किया है कि ट्विटर, फेसबुक जैसे मंचों पर सरकार की आलोचना करने वाली टिप्पणी को अब साइबर क्राइम के रूप में देखा जाएगा। इस तरह के मामलों की जांच की जिम्मेदारी बिहार में साइबर क्राइम की नोडल संस्था आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) को सौंपी गई है। इकाई के अपर पुलिस महानिदेशक नैयर हसनैन खान ने राज्य सरकार के सभी विभागों को एक चिट्ठी लिखकर इसके बारे में अवगत कराया है।
खान ने लिखा है कि 'सोशल मीडिया/इंटरनेट के माध्यम से सरकार, माननीय मंत्रीगण, सांसद, विधायक एवं सरकारी पदाधिकारियों के संबंध में आपत्तिजनक/अभद्र एवं भ्रांतिपूर्ण टिप्पणियां' साइबर अपराध की श्रेणी में आती हैं। खान ने सभी महकमों से कहा है कि ऐसा कोई भी मामले उनके संज्ञान में आते ही ईओडब्ल्यू को सूचित किया जाए ताकि ऐसी टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
उन्होंने यह नहीं बताया कि ऐसी कार्रवाई किस कानून या किस धारा के तहत की जाएगी? लेकिन इस आदेश के आते ही बिहार में विपक्षी दलों ने इसके लिए सरकार की आलोचना करना शुरू कर दिया। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा कि मुख्यमंत्री 'हिटलर के पदचिन्हों पर चल रहे हैं'। तेजस्वी ने इस टिप्पणी के लिए उन्हें गिरफ्तार करने की मुख्यमंत्री को चुनौती भी दी।
कैसे तय हो स्वीकार्य आलोचना?
राजनीतिक बवाल होने के बाद अब राज्य सरकार को मजबूरन क्षति नियंत्रण करना पड़ रहा है। बिहार पुलिस मुख्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक जीतेन्द्र कुमार ने एक ताजा बयान में कहा है कि नया आदेश सिर्फ अफवाह उड़ाने वालों और अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने वाली टिप्पणियों तक सीमित है। उन्होंने कहा कि आलोचना लोकतंत्र के लिए गुणकारी है लेकिन आलोचना तर्कसाध्य होनी चाहिए और शालीन भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
बीते वर्षों में सोशल मीडिया के प्रयोग के साथ-साथ सरकारों द्वारा इस तरह की कार्रवाई करने का चलन भी बढ़ा है। कुछ ही दिनों पहले उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में रहने वाले एक छात्र को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। अमूमन इस तरह के मामलों में कार्रवाई करने के लिए पुलिस सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का इस्तेमाल करती है, लेकिन इस मामले में भारतीय दंड संहिता की उन धाराओं का उपयोग किया गया जिनका इस्तेमाल वैमनस्य फैलाने और किसी को प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के मामलों में किया जाता है।
बढ़ रही है राजनीतिक असहिष्णुता
इस तरह के मामलों में पुलिस द्वारा कार्रवाई के मामले कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में सामने आए हैं। अक्सर इस तरह की कार्रवाई के पीछे पुलिस की मनमानी होती है, क्योंकि किस तरह की टिप्पणी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी यह कानून में परिभाषित नहीं है। पुलिस को इसमें अपने विवेक का इस्तेमाल करना होता है और इसमें अक्सर मनमानी हो जाती है।
और भी ज्यादा चिंता की बात है कि कई बार अदालतें भी सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी के खिलाफ पुलिस को कार्रवाई करने के लिए कहती हैं। ऐसा किसी व्यक्ति द्वारा उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचने की शिकायत करने पर होता है। कई बार अदालतें कुछ टिप्पणियों को लेकर अदालत की अवमानना का मामला भी बना देती हैं, जैसा प्रशांत भूषण के कुछ ट्वीटों के मामले में हुआ था। बिहार में अभी तक इस तरह का कोई बड़ा मामला सामने नहीं आया था, लेकिन देखना होगा कि अब सोशल मीडिया पर टिप्पणियों को लेकर प्रशासन का क्या रुख रहता है?