Story of partition of india: 1857 से लेकर 1947 तक यानी 90 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद हमें आजादी मिली। सन् 1947 में भारत का विभाजन हो गया। यानी सभी संग्राम, आंदोलन, बलिदान आदि असफल हो गए। 1857 के पहले भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल लगभग 33 लाख वर्ग किलोमीटर से थोड़ा ही कम है। आओ जानते हैं भारत विभाजन की साजिश किस तरह रची गई।
1. 1857 की क्रांति की क्रांति के बाद बनी योजना : 1857 की क्रांति के कुचलने होने के बाद अंग्रेजों को एक बात तो समझ में आ गई थी कि अब इस देश में लंबे काल तक शासन करना मुश्किल होगा। इसलिए उन्होंने भारत को धर्म, जाति और प्रांत के आधार पर बांटने का प्लान तैयार किया। भारत को तोड़ने की प्रक्रिया के तहत हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग दर्जा देना प्रारंभ किया। लॉर्ड इरविन के दौर से ही भारत विभाजन के स्पष्ट बीज बोए गए। माउंटबेटन तक इस नीति का पालन किया गया।
2. मुस्लिम लीग की स्थापना : अंतत: 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की। जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में थे, लेकिन विंस्टन चर्चिल ने जिन्ना उन्हें इस बात के लिए आखिरकार मना ही लिया की मुसलमानों का भविष्य हिंदुओं के साथ सुरक्षित नहीं है। आखिरकार लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं।
3. अलग पाकिस्तान की मांग : अंग्रेजों द्वारा मुस्लिम लीग से पाकिस्तान की मांग उठवाई गई और फिर उसके माध्यम से सिंध और बंगाल में हिन्दुओं का कत्लेआम कराया गया। अगस्त 1946 में 'सीधी कार्रवाई दिवस' मनाया और कोलकाता में भीषण दंगे किए गए जिसमें करीब 5,000 लोग मारे गए और बहुत से घायल हुए। यहां से दंगों की शुरुआत हुई। ऐसे माहौल में सभी कांग्रेसी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश में गृहयुद्ध ना हो।
4. जिन्ना और जवाहर बने अंग्रेजों के खेल का शिकार : भारत विभाजन के मंसूबों को 3 जून प्लान या 'माउंबेटन प्लान' का नाम दिया गया। तमाम मुस्लिम नेताओं को जो भारत और कांग्रेस के लिए जान देने के लिए तैयार थे इस प्लान के तहत बरगलाए गए। विंस्टन चर्चिल ने जहां मोहम्मद अली जिन्ना को अपना करीबी बनाकर उन्हें बरगलाया वहीं माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू को साध कर रखा था।
5. 3 जून का प्लान : इसके बाद भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना ( 3 जून प्लान ) के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगे और उनको ब्रितानी सरकार सत्ता सौंप देगी। दरअसल, मार्च 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन, लॉर्ड इरविन के स्थान पर वायसराय नियुक्त हुए। 8 मई 1947 को वीपी मेनन ने सत्ता अंतरण के लिए एक योजना प्रस्तुत की जिसका अनुमोदन माउंटबेटन ने किया। कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और कृपलानी थे जबकि मुस्लिम लीग की ओर से मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली और अब्दुल निश्तार थे उन्होंने विचार-विमर्श करने के बाद इस योजना को स्वीकार किया। प्रधानमंत्री एटली ने इस योजना की घोषणा हाउस ऑफ कामंस में 3 जून 1947 को की थी इसलिए इस योजना को 3 जून की योजना भी कहा जाता है। इसी दिन माउंटबेटन ने विभाजन की अपनी घोषणा प्रकाशित की।
6. विभाजन का प्रारूप : इस योजना के अनुसार पंजाब और बंगाल की प्रांतीय विधानसभाओं के वे सदस्य, जो मुस्लिम बहुमत वाले जिलों का प्रतिनिधित्व करते थे, अलग एकत्र होकर और गैर मुस्लिम बहुमत वाले सदस्य अलग एकत्र होकर अपना मत देकर यह तय करेंगे कि प्रांत का विभाजन किया जाए या नहीं, दोनों भागों में विनिश्चित सादे बहुमत से होगा। प्रत्येक भाग यह भी तय करेगा कि उसे भारत में रहना है या पाकिस्तान में? पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में और असम के सिलहट जिले में जहां मुस्लिम बहुमत है वहां जनमत संग्रह की बात कही गई। दूसरी ओर इसमें सिंध और बलूचिस्तान को भी स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार दिए गए। बलूचिस्तान के लिए निर्णय का अधिकार क्वेटा की नगरपालिका को दिया गया।
7. बलूचिस्तान को किया भारत से अलग : 4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना, जो बलूचों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई। विभाजन से पूर्व भारत के 9 प्रांत और 600 रियासतों में बलूचिस्तान भी शामिल था। हालांकि इस घोषणा के बाद भी माउंटबेटन और पाकिस्तानी नेताओं ने 1948 में बलूचिस्तान के निजाम अली खान पर दबाव डालकर इस रियासत का पाकिस्तान में जबरन विलय कर दिया।
8. भारत के रजवाड़ों के समक्ष रखा विलय का प्रस्ताव : माउंटबेटन ने भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें यह प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा) थे, में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। कुल मिलाकर भारतवर्ष में 662 रियासतें थीं जिसमें से 565 रजवाड़े ब्रिटिश शासन के अंतर्गत थे। 565 रजवाड़ों में से से 552 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी।
9. ये रजवाड़े बनना चाहते थे स्वतंत्र देश : जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर बाकी की रियासतों ने पाकिस्तान के साथ जाने की स्वीकृति दी थी। बचे रह गए रजवाड़ों को भारत में मिलाने के लिए सरदार पटेल ने अभियान चलाया था। हालांकि कश्मीर में वे इसलिए सफल नहीं हो पाए थे क्योंकि कहा जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसमें दखल दिया था। जूनागढ़, हैदराबाद, भोपाल, त्रावणकोर और कश्मीर का विलय भारत में बाद में हुआ। सबसे बाद में गोवा, पुडुचेरी, सिक्किम आदि राज्यों का विलय हुआ।
10. 13 अगस्त का घटनाक्रम : 13 अगस्त के दिन त्रिपुरा की महारानी ने विलय के कागजात पर अपने दस्तखत किए थे जिसके चलते त्रिपुरा का भारत में विलय हुआ था जबकि इसी दिन 13 अगस्त 1947 को भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भोपाल के विलय से इनकार करते हुए भोपाल के आजाद रखने की मांग रखी थी। 13 अगस्त 1947 को ही फेडरल कोर्ट के चीफ जस्टिस सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया भारत के चीफ जस्टिस बनाए गए। 13 अगस्त 1947 को आजादी के महज दो दिन पूर्व ही हिंदुस्तान की सरकार ने यह फैसला लिया कि उनकी सरकार सोवियत यूनियन के साथ मित्रता का संबंध रखेगी, जबकि पाकिस्तान ने चीन और सऊदी अरब की ओर देखना प्रारंभ कर दिया था।
11. विभाजन की घोषणा : विभाजन की इस घोषणा के बाद पूरे देश में अफरातफरी का माहौल था। एक तरफ आजादी मिलने की खुशी थी तो दूसरी तरफ बंटवारे का दर्द। सभी यह जानने में लगे थे कि कौन सा क्षेत्र भारत में और कौन सा क्षेत्र पाकिस्तान में रहेगा। इसी के चले हिन्दू, सिख और मुस्लिम सभी बॉर्डर क्रॉस करने में लगे थे। अपनी भूमि और मकान सभी कुछ छोड़ने का दर्द सीने में लिए वे एक अनिश्चित भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे थे। दो देश के बंटवारे में दोनों ओर के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 1.4 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।