हम भारत की आजादी की 73वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। पूरा देश उल्लास में नहाया हुआ है। लेकिन हमें यह आजादी एक कठिन राह से गुजरकर और बहुत-सी कुर्बानियां देकर हासिल हुई है। इस आजादी की कीमत हमने शहीदों के खून और देशवासियों के बलिदान से चुकाई है। यदि गुजरे इतिहास के पन्नों को खंगालें तो उन बलिदानों पर से परदा उठता है और उन दिनों की स्मृतियां ताजा हो उठती हैं।
अंग्रेजों से पहले भारत पर मुगलों का शासन था और उन्होंने अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए हमारी धरती का उपयोग किया। सन् 1600 में जब अंग्रेजों ने व्यापार के उद्देश्य से भारत में प्रवेश किया था तो मुगल सम्राट को इसका अंदेशा भी नहीं था कि ये अंग्रेज व्यापार के बहाने उन्हें उनके राज्य से बेदखल कर देंगे। व्यापार की आड़ में देश पर अपना अधिकार जमाने की रणनीति धीरे-धीरे कारगर हुई।
जब चालाक मुगल शासक अंग्रेजों की कुटिल रणनीति को नहीं समझ पाए तो भला भोले-भाले लोग उस खतरे को कैसे भांप पाते कि यह व्यापार उनका सर्वस्व लूटने के लिए किया जा रहा है। अत्याचार और लूट-खसोट का यह सिलसिला दो सदियों तक चला और अंतत : एक लंबी लड़ाई के बाद हमें ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति मिली और भारत आजाद हो गया।
आजादी की लड़ाई की प्रमुख घटनाओं का एक लेखा जोखा :-
ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत आगमन : सन् 1600 में ब्रिटेन की रानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दे दी और इस तरह हिंदुस्तान में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन हुआ।
मुगल साम्राज्य का पतन : 1852 में बहादुरशाह जफर की मृत्यु के बाद मुगल शासन का अंत हो गया। आखिरी मुगल बादशाह की मौत के बाद पूरी सत्ता अंग्रेजों के हाथ में आ गई थी।
1857 की क्रांति-आजादी की पहली अंगड़ाई : भारतीय इतिहास में इसे सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी जाती है, लेकिन वास्तव में यह उत्तर से लेकर मध्य और मध्य भारत से लेकर पश्चिमी क्षेत्र में फैले व्यापक जन-असंतोष का परिणाम था। उस जन-असंतोष का कारण धार्मिक भी था, सैनिक भी और आर्थिक भी। विद्रोह को तो कुचल दिया गया, लेकिन भारतीय इतिहास में 1857 को प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम माना जाता है।
खूब लड़ी मर्दानी : 17 जून, 1858 को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं।
सत्ता की बागडोर कंपनी के हाथों में : 1859 को ब्रिटिश कानून के तहत शासन की पूरी बागडोर ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चली गई।
भीषण अकाल : 1860-61 में उड़ीसा, बिहार, मद्रास और बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें करीब 20 लाख लोगों की जानें गईं। अकेले उड़ीसा में ही 10 लाख लोग मारे गए।
कांग्रेस की स्थापना : दिसंबर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। ए.ओ. ह्यूम इसके पहले अध्यक्ष मनोनीत हुए। कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में डब्लू.सी. बनर्जी के नेतृत्व में आयोजित हुआ।
बंगाल विभाजन : 20 जुलाई, 1905 को बंगाल को दो हिस्सों में विभक्त कर दिया गया। पश्चिमी और पूर्वी बंगाल नाम से दो अलग-अलग क्षेत्र हो गए।
मुस्लिम लीग की स्थापना : 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में मुस्लिम-लीग नामक संगठन की स्थापना हुई। यह पहली बार था, जब इतने बड़े पैमाने पर मुस्लिम नेता एकजुट हुए। सलीम उल्लाह खान ने पहली बार यह प्रस्ताव रखा था, जिसमें एक ऐसे संगठन की बात कही गई थी, जो मुस्लिमों के हित की बात कहे।
खुदीराम बोस को फांसी : 1908 में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में बम फेंका। गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली, लेकिन खुदीराम बोस को उस कृत्य के लिए फांसी की सजा दी गई।
इंडियन कौंसिल एक्ट : 1909 में संवैधानिक सुधारों की घोषणा के साथ ही इंडियन कौसिंल एक्ट लागू किया गया। यह कानून मोर्ले-मिंटो के नाम से जाना गया, जो मुख्य रूप से नरमपंथियों को खुश करने की कोशिश थी।
बंगाल का एकीकरण : 1911 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन को समाप्त कर दिया गया। पश्चिमी और पूर्वी बंगाल को मिला दिया गया। साथ ही बिहार और उड़ीसा को अलग राज्य बना दिया गया।
गदर पार्टी की स्थापना : 1913 में अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीय क्रांतिकारियों ने 'गदर पार्टी' की स्थापना की। लाला हरदयाल इस पार्टी के संस्थापकों में से एक थे।
होम रूल लीग : 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध का कहर भारतीयों पर भी टूटा। उसी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए 1915-16 में लोकमान्य तिलक और एनी बेसेंट के नेतृत्व में दो होमरूल लीगों की स्थापना की गई। तिलक का नारा था- ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।’
गांधीजी की वापसी : 9 जनवरी, 1915 को गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से वकालत की डिग्री लेकर भारत वापस लौटे।
नरमपंथ-गरमपंथ एकता : 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के बाद एक ऐतिहासिक घटना हुई, जिसमें नरमपंथ और गरमपंथ फिर एक हो गए। अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की गई।
सांडर्स की हत्या : लाला लाजपत राय मौत से बौखलाए भगत सिंह ने 17 दिसंबर को अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी।
किसानों का बारदोली आंदोलन : 1929 में वल्लभाभई पटेल के नेतृत्व में बारदोली के किसानों ने आंदोलन चलाया।
जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष : - लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
- 31 दिसंबर को स्वाधीनता का स्वीकृत झंडा फहराया गया।
चंद्रशेखर आजाद की शहादत : 27 फरवरी को इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों की गिरफ्तारी से बचने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार ली और इस तरह आजादी का एक वीर सिपाही शहीद हो गया।
दांडी यात्रा और नमक-कानून : 12 मार्च 1930 को गां धीजी और उनके 78 अनुयायी दांडी की 200 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर समुद्र तट पर पहुंचे और नमक-कानून तोड़ा। यह दूसरा अवज्ञा आंदोलन माना जाता है।
असेंबली में बम : 8 अप्रैल को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंका। उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाना था।
ऐतिहासिक भूख-हड़ताल : जतीन दास और उनके साथियों ने लाहौर में कैद के दौरान जेल प्रशासन के अत्याचार के खिलाफ भूख हड़ताल रखी। यह भूख-हड़ताल 63 दिनों तक चली, जिसमें जतीन दास की मृत्यु हो गई।
तीन वीरों को फांसी : 31 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया और ये तीनों वीर ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गाते हुए खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर झूल गए।
कैदियों को छोड़ने का प्रस्ताव : मार्च में ही गांधी-इरविन समझौता हुआ। इसके तहत यह प्रस्ताव रखा गया कि अहिंसक व्यवहार करने वाले कैदियों को छोड़ने की अनुमति सरकार दे।
गोलमेज सम्मेलन : 1930 में लंदन में भारतीय नेताओं और प्रवक्ताओं का पहला गोलमेज-सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य साइमन-कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करना था।
- 1931 में गांधीजी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने इंग्लैंड पहुंचे।
- नवंबर, 1932 में कांग्रेस तीसरे गोलमेज सम्मेलन में सम्मिलित नहीं हुई। इस सम्मेलन का परिणाम 1935 के भारत सरकार कानून के रूप में सामने आया।
पहला सत्याग्रह- चंपारण : 1917 में गां धीजी के नेतृत्व में सबसे पहले बिहार के चंपारण जिले में सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत हुई। नील की खेती करने वाले किसानों पर हो रहे घोर अत्याचार के विरोध में यह सत्याग्रह शुरू किया गया था।
भारत सरकार कानून : 1918 में ब्रिटिश सरकार के भारत मंत्री एडविन मांटेग्यू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने संवैधानिक सुधारों की प्रस्तावना रखी, जिसके आधार पर 1919 का भारत सरकार कानून बनाया गया।
रौलेट एक्ट : मार्च, 1919 में रौलेट एक्ट बना। इस कानून के तहत यह प्रावधान था कि किसी भी भारतीय पर अदालत में मुकदमा चलाया जा सकता है और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद किया जा सकता है। इस एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया।
जलियांवाला बाग : 13 अप्रैल को डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। अमृतसर में तैनात फौजी कमांडर जनरल डायर ने उस भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलवाईं। हजारों लोग मारे गए। भीड़ में महिलाएं और बच्चे भी थे। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के काले अध्यायों में से एक है।
खिलाफत आंदोलन बदला असहयोग में : गहरे असंतोष के कारण लोगों ने खिलाफत आंदोलन की शुरुआत की थी। जून, 1920 में इलाहाबाद में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें स्कूलों, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार की योजना बनी। यह खिलाफत आंदोलन 31 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन में बदल गया।
- 1 अगस्त को स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता लोकमान्य तिलक का निधन हो गया।
- असहयोग आंदोलन चलाने के लिए स्वराज्य कोष की स्थापना की गई, जिसमें 6 महीने के अंदर ही 1 करोड़ रुपए जमा हो गए।
- चौरी-चौरा नामक स्थान पर लगभग 3,000 किसानों के कांग्रेसी जूलूस पर पुलिस ने गोलियां बरसाईं।
- दिसंबर में दास और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना की और मोतीलाल को अध्यक्ष बनाया गया।
- जून, 1925 को आजादी की लड़ाई के एक और अग्रणी नेता चित्तरंजन दास का निधन हो गया।
‘साइमन, गो बैक’ : नवंबर 1927 में साइमन कमीशन भारत आया, जिसका उद्देश्य संवैधानिक सुधारों को लागू करना था। लोगों ने इसका काफी विरोध किया और ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाए।
उसके बाद की कहानी हम सबको पता है... यहां सिर्फ प्रमुख ऐतिहासिक घटनाक्रम पर नजर डाली गई है।