1926 में इंदौर नगर में स्थापित चित्रकला प्रशिक्षण कक्षा ने एक ऐसी परंपरा को जन्म दिया जिसने इंदौर नगर को चित्रकारों की नर्सरी बना दिया। यहां के विद्यार्थियों को अपने स्पेसीमेन की परीक्षा के लिए बंबंई भेजने होते थे। 1929 में द्वितीय वर्ष के छात्र की पेंटिंग ने संपूर्ण भारत में प्रथम स्थान पाकर इंदौर स्कूल की धाक जमा दी। अगले ही वर्ष इंदौर में चतुर्थ वर्ष की क्लास प्रारंभ हुई। 1933 में डिप्लोमा क्लास का भी सूत्रपात हो गया।
इस विद्यालय से प्रथम बैच में अध्ययन कर निकलने वाले विद्यार्थियों में श्री गावड़े, श्री मकबूल फिदा हुसैन, श्री रामकृष्ण अनंत खोत, श्री नारायण श्रीधर बेन्द्रे, ब्रजलालजी सोनी, श्री सोलेगांवकर तथा श्री डी.जे. जोशी जैसे विख्यात चित्रकार थे। एकसाथ इतने प्रतिभाशाली छात्रों को शिक्षा देकर इंदौर का यह विद्यालय भी गौरवान्वित हुआ।
धीरे-धीरे इस विद्यालय ने न केवल राष्ट्रीय अपितु अंतरराष्ट्रीय कला वीथिकाओं में अपना नाम अंकित किया। 1934 की बात है, जब बंबई आर्ट्स कमेटी ने श्री नारायण श्रीधर बेन्द्रे तथा श्री सोलेगांवकर के 4 चित्र 'लंदन ओरिएन्टल आर्ट्स एक्जीब्युशन' में चुनकर भेजे थे। इस प्रदर्शनी का आयोजन बर्लिंगटन हाउस लंदन में किया गया था। प्रदर्शनी के संयोजक मिस्टर जॉन डीला वेलेटी ने 18 दिसंबर 1934 को बी.बी.सी. पर दी गई अपनी भेंट वार्ता में इंदौर के चित्रों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
11 दिसंबर 1934 के 'डेली टेलीग्राफ' ने श्री सोलेगांवकर के चित्र 'त्रिमूर्ति' की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। उसी दिन लंदन से प्रकाशित 'द टाइम्स' ने लाइफ एंड कलर शीर्षक के अंतर्गत श्री बेन्द्रे के चित्रों की समीक्षा करते हुए लिखा- 'देयर इज ए सिंग्युलर चार्म इन मोहर्रम ऑफ एन.एस. बेन्द्रे।'
इंदौर स्कूल ऑफ आर्ट्स ने न केवल भारत में अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट शैली, रंग संयोजन, विविधता व मौलिकता के लिए ख्याति अर्जित की है। प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी अपनी मौलिक शैली में चित्रांकन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। इलाहाबाद, बड़ौदा और हैदराबाद तक से विद्यार्थी यहां चित्रकला के अध्ययन हेतु आया करते थे।
इस विद्यालय ने अपनी स्थापना के 2 दशकों में ही ऐसे विद्यार्थियों को जन्म दिया जिनके नाम से आज दुनियाभर में इंदौर को जाना जाता है। विख्यात चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन के जीवन व चित्रों की विवेचना करते हुए जापान से 1969 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी। पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर अंकित पंक्ति इस प्रकार है- '36 वर्ष पूर्व, चित्रकारी के लिए इंदौर में मकबूल फिदा हुसैन ने एक स्वर्ण पदक जीता...।
अपने प्रशिक्षण के रूप में हुसैन अपनी साइकल पर सवार प्रतिदिन संध्या के समय इंदौर के आसपास लैंडस्केप चित्रित करने निकल जाते। वे अपने साथ लालटेन रखते। संध्या के धुंधलके में जो कुछ देखते उसे अपने केनवास पर अंकित कर देते।' इंदौर नगर के लिए सदैव यह गौरव की बात रहेगी कि नाना भुजंग, डी.डी. देवलालीकर, बेन्द्रे, हुसैन, मनोहर जोशी तथा देवकृष्ण जोशी जैसे विख्यात चित्रकारों का सान्निध्य इस नगर को मिला।