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विश्व नदी दिवस : देश की 10 नदियां और उनका इतिहास

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अनिरुद्ध जोशी

, गुरुवार, 22 सितम्बर 2022 (17:43 IST)
विश्व नदी दिवस हर साल सितंबर के अंतिम रविवार को मनाया जाता है। विश्व में हजारों नदियां हैं लेकिन बांध बनाने और प्रदूषण के चलते सैंकड़ों नदियों का अस्तित्व खतरे में है। तेजी से बेतरतीब शहरीकरण और आद्योगिक विकास नदियों की बिगड़ती स्थिति के लिए कई हद तक ज़िम्मेदार हैं। नदियों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए ही विश्‍व नदी दिवस मनाया जाता है। आओ जानते हैं भारत की 10 नदियों का परिचय।
 
1. सिन्धु नदी : सिन्धु के बिना हिन्दू वैसे ही है, जैसे प्राण के बिना शरीर, अर्थ के बिना शब्द हैं। सिन्धु से ही हिन्दुओं का सिंधुघाटी का इतिहास है। सिन्धु का अर्थ जलराशि होता है। सिन्धु नदी का भारत और हिन्दू इतिहास में सबसे ज्यादा महत्व है। 3,600 किलोमीटर लंबी और कई किलोमीटर चौड़ी इस नदी का उल्लेख वेदों में अनेक स्थानों पर है। इस नदी के किनारे ही वैदिक धर्म और संस्कृति का उद्गम और विस्तार हुआ है। वाल्मीकि रामायण में सिन्धु को महानदी की संज्ञा दी गई है। जैन ग्रंथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिन्धु नदी का वर्णन मिलता है। नए शोध परिणामों के मुताबिक सिन्धु नदी का उद्‍गम तिब्बत के गेजी काउंटी में कैलाश के उत्तर-पूर्व से होता है। सिन्धु नदी 3,600 किलोमीटर लंबी है, जबकि पहले इसकी लंबाई 2,900 से 3,200 किलोमीटर मानी जाती थी। इसका क्षेत्रफल 10 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है। सिन्धु नदी भारत से होकर गुजरती है लेकिन इसका मुख्य इस्तेमाल भारत-पाक जल संधि के तहत पाकिस्तान करता है। सिन्धु भारत से बहती हुई पाकिस्तान में 120 किमी लंबी सीमा तय करती हुई सुलेमान के निकट पाक-सीमा में प्रवेश करती है। पाकिस्तान के मैदानी इलाकों में बहती हुई यह नदी कराची के दक्षिण में अरब सागर में गिरती है। 
 
2. वितस्ता नदी : सिन्धु की सहायक वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित है। झेलम नदी हिमालय के शेषनाग झरने से प्रस्फुटित होकर कश्मीर में बहती हुई पाकिस्तान में पहुंचती है और झांग मघियाना नगर के पास चिनाब में समाहित हो जाती है। यह नदी 2,130 किलोमीटर तक प्रवाहित होती है। वितस्ता नदी के पास 14 मनुओं की परंपरा के प्रथम मनु स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे। माना जाता है कि मानव की उत्पत्ति इसी नदी के पास हुई। वितस्ता को आजकल झेलम नदी कहा जाता है। इस नदी के पास ही पोरस और सिकंदर का युद्ध हुआ था। यह नदी कश्मीर घाटी के बीच से निकलकर इसे दो हिस्सों में बांटती है। आज यह नदी गंदे नाले की शक्ल ले चुकी है।
 
3. सरस्वती एंड यमुना नदी : ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को 'यमुना के पूर्व' और 'सतलुज के पश्चिम' में बहती हुई बताया गया है। ताण्डय और जैमिनीय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है। महाभारत में सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन है। इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय है। महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया। यमुना गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (प्रयागराज) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्धु, बेतवा और केन उल्लेखनीय हैं।
 
4. गंगा नदी : ब्रह्मा से लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। इससे पहले उनके पूर्वज सगर ने भारत में कई नदी और जलराशियों का निर्माण किया था। उन्हीं के कार्य को भगीरथ ने आगे बढ़ाया। गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गौमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है। हिमालय से निकलकर यह गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। इस दौरान यह 2,300 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती है।
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5. रेवा नदी : नर्मदा नदी को रेवा नदी भी कहा जाता है। यह नदी मध्यप्रदेश के विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला से अमरकंटक क्षेत्र से निकलकर गुजरात में होते हुए सिन्धुसागर (अरब की खाड़ी) में गिरती है। इसके बीचोबीच स्थित है नेमावर। नेमावर को प्राचीन काल में नैमिषारण्य क्षेत्र कहा जाता था जहां ऋषि-मुनि तपस्या करते थे। यह क्षे‍त्र हैहयवंशियों के अधीन था और इस क्षे‍त्र में परशुराम के पिता रहते थे। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। नर्मदा, गोदावरी औरमहानदी के किनारे ही भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
 
6. छत्तीसगढ़ की गंगा महानदी : छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला था। महानंदा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की सबसे बड़ी नदी महानदी का प्राचीन नाम चित्रोत्पला था। इसके अलावा इसे महानंदा और नीलोत्पला के नाम से भी जाना जाता है। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत से हुआ है। इस नदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है। इस नदी को 'छत्तीसगढ़ की गंगा' भी कहा जाता है।
 
7. गोदावरी नदी : गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। गोदावरी दक्षिण भारत की एक प्रमुख नदी है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमघाट की पर्वत श्रेणी के अंतर्गत त्रियम्बक पर्वत से हुई है, जो महाराष्ट्र में स्थित है। यहीं त्रियम्बककेश्वर तीर्थ है जो नासिक जिले में है। नदी की लंबाई करीब करीब 900 मील है। गोदावरी नदी धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र मानी जाती है। प्रति 12वें वर्ष पुष्करम्‌ का स्नान करने के लिए राजमुंद्री के पास बहुत बड़ा मेला लगता है जिसे कुंभ का मेला कहा जाता है। गोदावरी के तट पर भगवान राम ने अपना वनवास काटा था। गोदावरी की उपनदियों में प्रमुख हैं प्राणहिता, इन्द्रावती और मंजिरा। यह नदी महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश से बहते हुए राजहमुन्द्री शहर के समीप बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। इस नदी की प्रमुख शखाएं हैं:- गौतमी, वसिष्ठा, कौशिकी, आत्रेयी, वृद्धगौतमी, तुल्या और भारद्वाजी।
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8. कृष्णा नदी : कृष्णा नदी दक्षिण भारत की एक महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका उद्गम पश्चिमी घाट के पर्वत महाबालेश्वर (महाराष्ट्र) से होता है। यह नदी भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। यह महाराष्ट्र में 303 किमी आंध्रप्रदेश में 1300 किमी तथा कर्नाटक में 480 किमी की यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। कृष्णा नदी में भीमा और तुंगभद्रा दो बड़ी सहायक नदियों सहित 6 उपनदियां गिरती हैं। कृष्णा नदी की उपनदियों में प्रमुख हैं: तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा। कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्म के निकट गिरती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य कृष्णा नदी जल बटवारे से संबंधित विवाद है। महाभारत सभा पर्व में कृष्णा को कृष्णवेणा कहा गया है और गोदावरी और कावेरी के बीच में इसका उल्लेख है जिससे इसकी वास्तविक स्थिति का बोध होता है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
 
9. कावेरी : दक्षिण की गंगा कहलाने वाली कावेरी का वर्णन कई पुराणों में बार-बार आता है। कावेरी को बहुत पवित्र नदी माना गया है। कावेरी नदी में मिलने के वाली मुख्य नदियों में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा, लक्ष्मणतीर्थ, भवानी, काबिनी मुख्य हैं। दक्षिण की इस प्रमुख नदी कावेरी का विस्तृत विवरण विष्णु पुराण में दिया गया है। यह सह्याद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व की दिशा में कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई लगभग 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इसके जल बंटवारे को लेकर विवाद है।
 
10. ब्रह्मपुत्र : ब्रह्मपुत्र के कारण ही बर्मा का नाम पहले ब्रह्मवर्त था। आज इसे म्यांमार कहा जाता है। चाइनीज एकैडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मपुत्र के मार्ग का उपग्रह से ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करने के साथ भारत-पाकिस्तान से बहने वाली सिन्धु और म्यांमार के रास्ते बहने वाली सालवीन और इर्रावडी के बहाव के बारे में भी पूरा विवरण जुटा लिया है। शोधाअनुसार ब्रह्मपुत्र (तिब्बती भाषा में यारलुंगजांगबो) का उद्‍गम स्थल तिब्बत के बुरांग काउंटी स्थित हिमालय पर्वत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित आंग्सी ग्लेशियर है, न कि चीमा-युंगडुंग ग्लेशियर, जिसे भूगोलविद् स्वामी प्रणवानंद ने 1930 के दशक में ब्रह्मपुत्र का उद्‍गम बताया था। नए शोध परिणामों के मुताबिक ब्रह्मपुत्र नदी 3,848 किलोमीटर लंबी है और इसका क्षेत्रफल 7,12,035 वर्ग किलोमीटर है, जबकि पहले के दस्तावेजों में नदी की लंबाई 2,900 से 3,350 किलोमीटर और क्षेत्रफल 520,000 से 17 लाख 30 हजार वर्ग किलोमीटर बताया गया था।
 

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