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Pitru Paksha connection with maa sita: माता सीता ने कहां किया था पिंडदान, किसे माना था साक्षी

हमें फॉलो करें Pitru Paksha connection with maa sita: माता सीता ने कहां किया था पिंडदान, किसे माना था साक्षी
Pitru Paksha 2022 : पितरों की मुक्ति हेतु किए जाने वाले कर्म तर्पण, भोज और पिंडदान को (pitru shradh paksha 2022) उचित रीति से नदी के किनारे किया जाता है। श्राद्ध पक्ष के लिए देश में लगभग 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है जिनमें से एक है बिहार का गया। 
 
आपने देखा होगा कि चावल के पिंड बनाकर उसका पिंडदान किया जाता है, परंतु गया में फल्गु नदी के तट पर बालू की रेत के पिंडदान (Balu ka pind daan) बनाकर दान किया जाता है। आखिर ऐसा क्यों करते हैं, जानिए माता सीता के पिंडदान का रहस्य- 
 
गयाजी में फल्गु नदी के तट पर माता सीता द्वारा बालू के पिंड बनाकर दान किए जाने का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। 
 
कहते हैं कि श्रीराम जी के वनवास के दौरान ही राजा दशरथ जी का देहांत हो गया था। तब वनवास के दौरान ही राम जी अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता के साथ  पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। 
 
उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का कुतप समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जी के आगे फल्गु नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गई। उन्होंने फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया। 
 
 
थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा। तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गु नदी की रेत, केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म की गवाही दे सकते हैं। लेकिन फल्गु नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने राजा दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।
 
 
दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने क्रोधित होकर उनको श्राप दिया कि फल्गु नदी- 'जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा।' इस कारण फल्गु नदी आज भी गया में सूखी रहती है। 
 
गाय को श्राप दिया कि- 'तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी।' और केतकी के फूल को श्राप दिया कि, 'तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा।' 
 
वटवृक्ष को सीता जी का आशीर्वाद मिला कि़ 'उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा जो पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी। उसको अखंड सौभाग्य का वरदान मिलेगा।' 
 
यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पडता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गु नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है। 

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