राजस्थान में बिश्नोई समाज के लिए प्रकृति प्रेमी हैं। समाज के प्रमुख गुरु जम्भेश्वर को इस समाज के लोग विष्णुजी का अवतार मानते हैं। जम्भो जी ने कुल कुल 29 जीवन सूत्र बताए थे। इसी कारण भी बीस और नौ मिलकर इस समाज का नाम बिश्नोई हो गए। पर्यावरण प्रेमी विश्नोई समाज का प्रतिवर्ष मेला लगता है।
फाल्गुन मास में अमावस्या के दिन विश्नोई समाज के लोगों का भव्य मेला आयोजित होता है। राजस्थान में खासकर यह मेला जम्भेश्वर के समाधि स्थल पर लगाता है। इस मेले में देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु अपने परम श्रद्धेय गुरु जांभोजी भगवान के दर्शनार्थ आते हैं। मुक्ति धाम मुकाम के साथ बिश्नोईयों के आद्य स्थल समराथल धोरा, जांभोजी के जन्म स्थल पीपासर, लोहावट साथरी, कांठ उत्तर प्रदेश, सोनड़ी, मेघावा और भिंयासर साथरी पर भी मेले का आयोजन किया जाता रहा है।
कौन थे सद्गुरु जम्भेश्वर : गुरु जम्भेश्वर का पंवार राजपूत परिवार में 1451 में जन्म हुआ था। साल 1487 में जब जबरदस्त सूखा पड़ा तो जम्भो जी ने लोगो की बड़ी सेवा की थी। तभी उन्हीं से प्रेरित होकर कई लोगों ने उनके संप्रदाय को अपना लिया था। वन्य प्राणियों के प्रति बिश्नोई समाज की अटूट आस्था है। यह समाज मूल रूप से खेती और पशुपालन करके ही अपनी आजीविका का साधन जुटाते हैं, लेकिन वक्त के साथ उन्होंने व्यापार को बदला भी है।