यह कहानी ओशो रजनीश ने अपने किसी प्रवचन में सुनाई थी। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संतों के या तीर्थंकरों के प्रवचन या उनकी शिक्षाएं कितनी काम की होती है।
एक प्रसिद्ध चोर ने मरते वक्त अपने बेटे से कहा- महावीर स्वामी नाम के आदमी का एक शब्द भी मत सुनना। यही मेरी शिक्षा है।
चोर का बेटा जीवनभर बचता रहा महावीर से। लेकिन एक दिन रास्ते से गुजरते वक्त महावीर का एक आधा वाक्य उसको सुनाई दे गया। वह कान बंदकर वहां से गुजर गया।
चोर के बेटे के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं था। तब मंत्री की योजना के तहत उसे पकड़कर गहरा नशा दिया गया। तीन दिन बाद उसने खुमारी में आंखे खोली, तो देखा चारों और अप्सराएं खड़ी थी। उसने पूछा कि मैं कहां हूं।
अप्सराओं ने कहा- तुम मर गए हो। अब यदि तुम अपने पापों के बारे में सत्य कहोगे तो हम स्वर्ग ले जाएंगी। चोर ने सोचा- जब मर ही गए हैं तो सत्य बता देते हैं, लेकिन अचानक ही उसे महावीर का वह आधा वाक्य याद आ गया- 'यमदूतों और देवताओं की परछाई नहीं होती।'
तब उसने अप्सराओं की परछाई देखी। वह सजग हो गया और समझ गया। फिर उसने कहा- देवी! लाख याद करने पर भी मुझे कोई पाप याद नहीं आते। नरक में डालों या स्वर्ग में आपकी मर्जी। उस मंत्री की योजना असफल हो गई, वर्ना चोर को फांसी लगती।
वहां से छुटकर चोर सीधा भगवान महावीर के पास पहुंचा और कहा- आपके आधे वाक्य ने ही मुझे बचा लिया। मुझे दीक्षा दो।