फाल्गुन माह की द्वितीया को मनायी जाने वाली फुलेरा दूज, होली आगमन का प्रतीक मानी जाती है। उत्तर भारत के गांवों में फुलेरा दूज का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। फुलेरा दूज के बाद से ही होली की तैयारियां शुरू कर दीं जातीं हैं। कुछ लोग इसे होली रखने वाले दिन के रूप में भी जानते हैं। इस त्यौहार से गुलरियां बनाने का कार्य शुरू किया जाता हैं।
इस त्योहार को फूलों से रंगोली बनाई जाती है तथा विशेष रूप से श्री राधाकृष्ण का फूलों से श्रंगार करके उनकी पूजा की जाती है। ब्रजभूमि के श्री कृष्ण मंदिरों में इस त्यौहार का महत्व सर्वाधिक हैं। इस दिन मथुरा और वृंदावन में सभी मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है और फूलों की होली खेली जाती है। भगवान कृष्ण के मंदिरों में भजन गाए एवं सुने जाते हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि, फुलैरा दूज इस माह का सबसे शुभ दिन होता है और इस दिन किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है। सर्दी के मौसम के बाद इसे विवाह का अंतिम शुभ दिन माना जाता, अतः इस दिन किसी भी मुहूर्त में शादी की जा सकती है। परंतु ज्योतिष विज्ञान के कई ज्ञाता यह दिन प्रति पल शुभ है, इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते हैं।
गुलरियां का प्रयोग होलिका दहन के समय किया जाता है। गुलरियां को गाय के गोबर से गोल-गोल टिक्की आकर देकर उनके बीच में छिद्र बना दिया जाता है। सूखने के बाद उन्हें एक धागे मे पिरो लिया जाता है, जिसे गुलरियों की माला कहा जाता है।
इन गुलरियां के निर्माण के साथ एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इन्हें केवल फुलैरा दूज से ही बनाना / निर्माण शुरू कर सकते हैं। मध्यप्रदेश निमाड़ अंचल में इस बड़बुले, बड़कुले, बड़गुले, बडकुल्ये कहते हैं। जिनमें गोबर से कई प्रकार की आकृतियां बनाकर माला बनाई जाती है। दो दीयों को मिलाकर उसमें कंकड़ डाल कर नारियल बनाया जाता है। उसी तरह पान, बरफी, मठरी, लड्डू सब आकार की बीच में छेद सहित आकृतियां बनाकर सुखाई जाती है फिर सबको पिरोकर उसकी माला बनाकर होली दहन पर समर्पित की जाती है।
फुलेरा दूज, मंगलवार, फरवरी 25, 2020 शुभ मुहूर्त
द्वितीया तिथि प्रारंभ - फरवरी 24, 2020 को रात्रि 11:15 बजे
द्वितीया तिथि समाप्त - फरवरी 26, 2020 को दिन में 01:39 बजे तक