रोला छंद : नारी
नारी का सम्मान, बचाना धर्म हमारा,
सफल वही इंसान, लगे नारी को प्यारा।
जीवन का आधार, हमेशा नारी होती,
खुद को कर बलिदान, घर-परिवार संजोती।
नारी का अभिमान, प्रेममय उसका घर है,
नारी का सम्मान, जगत में उसका वर है।
नारी का बलिदान, मिटाकर खुद की हस्ती,
कर देती आबाद, सभी रिश्तों की बस्ती।
नारी को खुश रखो, नहीं तो पछताओगे,
पा नारी का प्रेम, जगत से तर जाओगे।
नारी है अनमोल, प्रेम सब इनसे कर लो,
नारी सुख की खान, खुशी जीवन में भर लो।
नारी का सम्मान ही, पौरूषता की आन,
नारी की अवहेलना, नारी का अपमान।
मां-बेटी-पत्नी-बहन, नारी रूप हजार,
नारी से रिश्ते सजे, नारी से परिवार।
नारी बीज उगात है, नारी धरती रूप,
नारी जग सृजित करे, धर-धर रूप अनूप।
नारी जीवन से भरी, नारी वृक्ष समान,
जीवन का पालन करे, नारी है भगवान।
नारी में जो निहित है, नारी शुद्ध विवेक,
नारी मन निर्मल करे, हर लेती अविवेक।
पिया संग अनुगामिनी, ले हाथों में हाथ,
सात जनम की कसम, ले सदा निभाती साथ।
हर युग में नारी बनी, बलिदानों की आन,
खुद को अर्पित कर दिया, कर सबका उत्थान।
नारी परिवर्तन करे, करती पशुता दूर,
जीवन को सुरभित करे, प्रेम करे भरपूर।
प्रेम लुटा तन-मन दिया, करती है बलिदान,
ममता की वर्षा करे, नारी घर का मान।
मीरा, सची, सुलोचना, राधा, सीता नाम,
दुर्गा, काली, द्रौपदी, अनसुइया सुख धाम।
मर्यादा गहना बने, सजती नारी देह,
संस्कार को पहनकर, स्वर्णिम बनता गेह।
पिया संग है कामनी, मातुल सुत के साथ,
सास-ससुर को सेवती, रुके कभी न हाथ।
नारी तुम स्वतंत्र हो,
जीवन धन यंत्र हो।
काल के कपाल पर,
लिखा सुख मंत्र हो।
सुरभित बनमाल हो,
जीवन की ताल हो।
मधु से सिंचित-सी,
कविता कमाल हो।
जीवन की छाया हो,
मोहभरी माया हो।
हर पल जो साथ रहे,
प्रेमसिक्त साया हो।
माता का मान हो,
पिता का सम्मान हो।
पति की इज्जत हो,
रिश्तों की शान हो।
हर युग में पूजित हो,
पांच दिवस दूषित हो।
जीवन को अंकुर दे,
मां बनकर उर्जित हो।
घर की मर्यादा हो,
प्रेमपूर्ण वादा हो।
प्रेम के सान्निध्य में,
खुशी का इरादा हो।
रंगभरी होली हो,
फगुनाई टोली हो।
प्रेमरस पगी-सी,
कोयल की बोली हो।
मन का अनुबंध हो,
प्रेम का प्रबंध हो।
जीवन को परिभाषित,
करता निबंध हो।
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