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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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वासंती कविता : आओ बसंत

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श्रीमती गिरिजा अरोड़ा

आओ बसंत, छाओ बसंत
पुलकित हो मन, आनंद मगन
 
फूलों के रंग, परागों के संग
सरोवरों में बन कर कमल
 
ले कर सुगंध, आंगन भवन
बहकी चले, शीतल पवन
 
हर ओर करें भंवरे गुंजन
बागों में हो कोयल के स्वर
 
फूटे कपोल, सुन्दर चमन
सरसों के खेत, मंगल शगुन
 
तोतों के झुंड, दिखते गगन
बौरों में छिप बैठे अनंग
 
धरती सजे बनकर दुल्हन
उत्सव में हो हर एक कण। 

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