Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मां शारदा देवी पर दो कविताएं

हमें फॉलो करें  Sharda Maa
webdunia

सुशील कुमार शर्मा

मां और शारदे मां 
 
मां ने प्यारा जीवन देकर 
धरा पर मुझे उतारा है। 
मैं माटी का अनघड़ पुतला 
 तूने मुझे संवारा है। 
 
प्रथम पाठ मां से सीखा है। 
शब्दों का संसार दिया। 
बुद्धि देकर तूने माते।  
अर्थों का आधार दिया। 
 
संस्कार सीखे माता से।  
प्रेम का मीठा ज्ञान मिला। 
मां तेरी अविरल धारा में। 
विद्या का वरदान मिला। 
 
मां गर जीवन की गति है तो।  
तुम सुरभित चेतन अस्तित्व। 
मां इस तन को देने वाली। 
तुम वो पूर्ण अमित व्यक्तित्व। 
 
जन्म हुआ भारत भूमि पर 
देश प्रेम का मार्ग चुना। 
मां तेरे बल के ही कारण 
शौर्य आत्म विश्वास बुना।
 
माता मेरी प्रथम गुरु हैं। 
मातु शारदे रक्षक हैं। 
माता है अमृत घट प्याला। 
आप पाप की भक्षक हैं। 
 
माता भावों की जननी हैं 
शब्द समंदर आप भरें। 
कृपा कटाक्ष से तेरे ही मां।  
हम सब सुंदर सृजन करें। 
 
करे दूर अवगुण से माता 
जीवन को आदर्श करे। 
मां तेरा चिंतन हम सबको। 
जीवन विमल विमर्श करे।
 
त्याग की मूरत माता होती।  
आप ज्ञान का सागर हैं। 
माता अमृत का है प्याला। 
आप अमिय की गागर हैं। 
 
नहीं ऊऋण दोनों से हम हैं। 
दोनों ज्ञान के रूप हैं।      
नाम अलग दोनों के लेकिन। 
दोनों ब्रह्म स्वरूप हैं। 
 
**** 
 
प्रणमामि मां शारदे (दोहा छंद)
 
 
वीणापाणी तम हरो, दिव्य ज्ञान आधार। 
धवल वसन सुरमोदनी, हर लो सभी विकार। 
 
ज्ञान शून्य जीवन हुआ, मन में भरे विकार। 
मां अब ऐसा ज्ञान दो, विमल बने आचार। 
 
ज्ञान सुधा से तृप्त कर, कलम विराजो आप। 
शब्द सृजन के पुष्प से, करूं तुम्हारा जाप। 
 
जयति जयति मां शारदे, आए तेरे द्वार। 
सृजन शक्ति मुझको मिले, प्रेम पुंज व्यवहार। 
 
मधुर मनोहर काव्य दे, गद्य गहन गंभीर। 
छंदों का आनंद दे, तुक, लय तान, प्रवीर। 
 
उर में करुणा भाव हों, मन में मलय तरंग। 
बासंती जीवन खिले, मृदुल मधुर रसरंग। 
 
वाग्दायिनी ज्ञान दो, मन को करो निशंक। 
प्रणत नमन मां सरस्वती, शतदल शोभित अंक।
 
शुक्लवर्ण श्वेतांबरी, वीणावादित रूप।
शतरूपा पद्मासना, वाणी वेद स्वरूप।
 
हाथ में स्फटिकमालिका, धवल वर्ण गुण नाम।
श्वेत वसन कमलासना, बसो आन उर धाम।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मां नर्मदा पर कविता : मां आशुतोषी