राजनीति पर कविता : क्यों ? क्यों ? क्यों ?

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
येन-केन -प्रकारेण सत्ता को पा जाने की ही चाह क्यों है ?
राजनीति अपने स्थापित आदर्शों से यों गुमराह क्यों है ?
 
सर्वशक्तिमान मतदाता इतना निरीह और बेबस क्यों हैं ?
चुनाव प्रचार में उछाले गए मुद्दे इतने बेहूदे और बेकस क्यों हैं ?
 
सियासत में सिद्धान्तहीन लोगों की निर्विघ्न चलती मनमानी क्यों है ?
राजनीति की राह सुयोग्य युवाओं  के लिए अनजानी क्यों है ?
 
जनशक्ति अपनी सामर्थ्य से बिलकुल अनजान, ऊंघती, सोती क्यों है ?
राजनीति कुछ हठधर्मियों की बरबस बन गई बपौती क्यों है ?
 
गुजरात की चुनावी गहमा गहमी से ये ही सब संकेत मिले हैं। 
क्या चिन्तनशील मनों को चिन्तित करने वाले नहीं ये सिलसिले हैं ?
 
एक परिपक्व प्रजातन्त्र में जाति, धर्म, जनेऊ, मंदिर ही क्या मौजूं चर्चा के विषय हैं ?
यह प्रजातन्त्र ऐसे ही चले क्या यही बस हम सबका निर्णय है ?
 
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