मौत को देखा है सिसकते हुए,
देखा है वटवृक्ष को निढाल होते हुए।
जिसकी छत्रछाया में पनपे सभी,
उनके लिए आंसू बह निकले।
एक-एक आंसू है उनकी यादों के,
वो उनकी हर बातों को कह निकले।
कुछ तो बात होगी शख्स में,
हर उम्मीद पर वो खरा उतरा।
जब-जब परखा सबने,
साहित्य के जौहरी का न रहना।
परख की बेबसी अब सबके सामने,
खड़ी है पोखरण की तरह।
चाहत है वैसे रूप की,
ऊपर वाला क्या बना सकेगा।
वैसा ही स्वरूप जो निर्णय ले सके,
दुनिया को हिलाने का।
समझ सके हर एक की बातें,
शायद एक स्वप्न था भारत का।
मृत्यु भी तो अटल सत्य है,
मगर आत्मा अजर-अमर।
वो है देश के आसपास,
जब कभी पोखरण पर आएगा संकट।
हमारा विश्वास सदा अटल रहेगा,
देश सुरक्षित हम सुरक्षित।
इसे समझ सकते,
एक अटल निर्णय के रूप में।