वहां पेड़ अपनी बातें कह रहे थे, मैं गुलमोहर हूं, मैं पीपल हूं, मैं बरगद हूं... मैं नीम हूं, मैं पलाश हूं.. अवसर था वामा साहित्य मंच की जून माह की मासिक बैठक का, जो पर्यावरण दिवस मनाने के उद्देश्य से अनोखे अंदाज में आयोजित की गई। वामा साहित्य मंच की हर सदस्य ने किसी एक पेड़ का चयन कर पेड़ की व्यथा को पेड़ के ही शब्द दिए, हर पेड़ ने ही अपने गुण और फायदे बताए, किसी पेड़ ने अपना दर्द बयान किया तो किसी पेड़ की मार्मिक पीड़ा छलक गई .. इस कार्यक्रम का विषय था ''क्योंकि हर पेड़ कुछ कहता है''
वामा साहित्य मंच प्रति माह अपनी बैठक में कोई नवाचार करने का प्रयास करता है और अपनी हर सदस्य को प्रतिभागिता का सुअवसर प्रदान करता है। जून माह की बैठक में पर्यावरण दिवस के मद्देनजर आयोजन रखा गया। कार्यक्रम की रूपरेखा कुछ इस तरह रखी गई कि हर सदस्य अपने प्रिय पेड़ पर 10 पंक्तियों में प्रस्तुति दें और स्वयं पेड़ बनकर ही अपनी बात कहे।
इस अनूठे आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में इंजीनियर और युवा पर्यावरणविद् नितिन धाकड़ शामिल हुए। मूलत: राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले श्री नितिन आईआईटी रूड़की के इंजीनियर हैं, समाज को समझने की गहरी रूचि के चलते के अक्सर गांव जाया करते थे। जब 2015 में वे झाबुआ गए तो फिर उनका मन कहीं नहीं लगा, 2017 से झाबुआ बसे और वहीं के होकर रह गए। वर्तमान में शिवगंगा संस्थान के साथ समग्र ग्राम विकास पर उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। जिसमें विशेष रूप से जल, जंगल, जमीन और जानवर के संरक्षण और संवर्धन को लेकर उनके कार्य प्रशंसनीय हैं।
नितिन ने इस मौके पर अपनी बात कविता के माध्यम से कुछ यूं रखी कि- '' छोड़ देना राही, नल खुला, बहते देखना उस पानी को उपजेगा उसके व्यर्थ बहाव से एक सवाल, कौन देस में किसने सहेजा ये किसके हिस्से का पानी...
इससे पूर्व, सचिव ज्योति जैन ने अतिथि का परिचय तथा स्वागत उद्बोधन अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने दिया। कार्यक्रम में बरगद, हरसिंगार, गुलमोहर, तुलसी, मालती, अमलतास, कैक्टस, आम, गुलाब, अमरूद, अशोक, मोगरा, आंवला, पलाश, गेंदा, रुद्राक्ष, जामुन, नीम, नारियल, शहतूत, इमली, पीपल, चंदन, कटहल, कमल, बेल, सेब, नींबू़, अनार, केसर, देवदार, चीड़, बड़ी इलायची,ग्वारपाठा, बांस, नीलगिरी, झाड़फानुस, कदंब, खजूर, सूरजमुखी, केला, चमेली, संतरा, चंपा, चेरी ब्लॉसम, बबूल, गोंदा, खाखरा, ट्यूलिप, लौकी और बेर जैसे फल, सब्जी, फूल तथा औषधि के पेड़ व पौधे पर सदस्यों ने अपनी एकल रचना पढ़ीं।
खास बात यह थी कि सदस्यों ने अपने चयनित वृक्ष या पौधे की आवाज बनने की कोशिश की और यकीनन सभी उसमें कामयाब रहीं। सद स्यों के माध्यम से पेड़ों ने बताया कि हम जी वन को फल, फूल, छाया, सुगंध, औषधि देते हैं...किस तरह हमारी उत्पत्ति हुई, जीवन के लिए हमारा क्या महत्व है, हमारे फायदे और चिकित्सकीय लाभ क्या हैं यह हर मनुष्य को जानना चाहिए, पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना चाहिए ताकि जब कोई कुल्हाड़ी विकास के नाम पर हम पर उठे तो कई हाथ हमें बचाने के लिए एक साथ खड़े हो जाए।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दीपा मनीष व्यास, स्मृति आदित्य, अर्चना मंडलोई, शिरीन भावसार, अंजू निगम, बेला जैन, नूपुर वागले, वैजयंती दाते, महिमा शुक्ला, विनीता मोटलानी, मधु टांक, वंदना वर्मा, करूणा प्रजापति, गरिमा दुबे, स्नेह श्रीवास्तव, विनीता शर्मा, शांता पारेख, चारुमित्रा नागर,माधवी तारे,पुष्पा दसौंधी, चंद्रकला जैन, हंसा मेहता, शोभा प्रजापति, प्रीति रांका, रुपाली पाटनी, निधि जैन, पूर्णिमा भारद्वाज, वसुधा गाडगिल, इंदु पाराशर, प्रतिभा जैन, प्रेमलता, किसलय पंचोली, उषा तोमर, निशा देशपांडे, आशीष, सरला मेहता रश्मि लोणकर, बकुला पारेख, अंजना मिश्रा, मीनाक्षी रावल, शारदा मंडलोई, मंजूषा मेहता, अमर चड्ढा, रेखा उपाध्याय, व कोमल रामचंदानी समेत 50 सदस्यों ने रचना पढ़ी।
अतिथि का स्वागत स्मृति आदित्य ने किया, स्मृति चिन्ह मालिनी शर्मा ने दिया।
कार्यक्रम का संचालन निरुपमा नागर ने किया, सरस्वती वंदना अंजू श्रीवास्तव ने प्रस्तुत की तथा आभार माना वैजयंती दाते ने।