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लेखक शरद पगारे को 2020 के लिए ‘व्‍यास सम्‍मान’, उपन्‍यास 'पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी' के लिए मिला पुरस्‍कार

पहली बार दिल्‍ली से बाहर इंदौर में दिया गया केके बिड़ला फाउंडेशन का यह सम्‍मान

हमें फॉलो करें लेखक शरद पगारे को 2020 के लिए ‘व्‍यास सम्‍मान’, उपन्‍यास 'पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी' के लिए मिला पुरस्‍कार
इंदौर, मध्‍यप्रदेश और इंदौर के लिए यह बहुत गौरव की बात है कि वरिष्‍ठ लेखक और साहित्‍यकार शरद पगारे को 2020 के लिए केके बिड़ला फाउंडेशन की तरफ से व्यास सम्मान दिया गया है। साहित्‍यकार श्री पगारे को यह सम्‍मान उनके उपन्यास 'पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी' के लिए दिया गया है। सम्‍मान का यह निर्णय हिंदी साहित्य के विद्वान प्रो रामजी तिवारी की अध्यक्षता में संचालित एक चयन समिति द्वारा किया गया।
 
सम्‍मानित लेखक श्री पगारे ने की वेबदुनिया से चर्चा 
क्‍या है उपन्‍यास की कहानी 
 
वरिष्‍ठ लेखक और व्‍यास सम्‍मान से सम्‍मानित साहित्‍यकार शरद पगारे ने वेबदुनिया को बताया कि जहां तक मेरा ख्‍याल है कि मध्‍यप्रदेश से मैं पहला लेखक हूं, जिसे यह सम्‍मान दिया गया। इंदौर में जो मुझे साहित्‍यिक माहौल मिला उसके कारण में इतिहास के साथ साथ मैं इतिहास से जुड़ पाया। इंदौर और मालवा के इतिहास को जब मैंने देखा तो मुझे कुछ ऐतिहासिक प्रेम-कथाएं मिलीं। इसलिए मेरे उपन्‍यास 'पाटलीपुत्र की सम्राज्ञी' जिसे यह सम्‍मान दिया जा रहा है, उसमें यथार्थवादी- काल्‍पनिक सौंदर्य का समन्‍वय है। अगर किसी किताब में पूरा इतिहास हो या पूरी कल्‍पना हो तो यह उतना रोचक नहीं होगा, इसलिए मैंने अपनी किताबों में यथार्थ और काल्‍पना के सौंदर्य का समन्‍वय रखा। 
 
मेरी जिस किताब को व्‍यास सम्‍मान दिया जा रहा है, वो सम्राट अशोक की मां धर्मा के जीवन पर आधारित है। बिन्दुसार की तो 16 पटरानियां थीं, धर्मा उसकी सतरहवीं रानी थी, ऐसे में सिर्फ धर्मा का बेटा अशोक ही सम्राट क्‍यों बना। बाकी रानियों के भी तो बेटे थे, वो भी चाहती होंगी कि उनके बेटे सम्राट बने, लेकिन इतिहास में सिर्फ अशोक को ही सम्राट बना। इसके पीछे धर्मा की क्‍या भूमिका थी यही इस किताब में दर्ज किया है। 
 
इतिहासकारों ने मां को तो छोड़ दिया, लेकिन अशोक को सम्राट बनाने के लिए धर्मा ने क्‍या राजनीति खेली वही सब इस साढे 500 पन्‍नों के उपन्‍यास में है। श्री पगारे ने बताया कि यह सम्‍मान मिलने से वे बेहद प्रसन्‍न हैं। बता दें कि इतिहास में धर्मा के धमार नाइन बनने या फिर सम्राज्ञी के पद पर पहुंचने की यात्रा के बारे कोई जानकारी नहीं मिलती। धर्मा रूप, गुण, कला और सौंदर्य में अप्रतिम थीं। इसीलिए सम्राट बिन्दुसार ने धर्मा को 'सुभद्रांगी' यानी शुभ अंगों वाली कहा था।
 
कौन हैं शरद पगारे
5 जुलाई, 1931 को मध्यप्रदेश के खंडवा में जन्में शरद पगारे हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखकों में से एक हैं। उन्होंने इतिहास में एमए करने के बाद पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। शरद पगारे इतिहास के विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं। वे इतिहास के अच्‍छे जानकार हैं। फिलहाल श्री पगारे शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। पगारे ने वृंदावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास परम्परा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
 
श्री पगारे को सम्‍मान
पगारे को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भारतभूषण सम्मान के अतिरिक्त कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनके छह कहानी संग्रह, दो नाटक और शोध प्रंबंध प्रकाशित हुए हैं। हिंदी भाषा में प्रकाशित उनकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, ओड़िया, मराठी, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु में अनुवाद हो चुका है। अब उन्‍हें वर्ष 2020 के लिए केके बिड़ला फाउंडेशन की तरफ से व्यास सम्मान की घोषणा की गई है। जो 11 जनवरी को इंदौर में दिया जाएगा।
 
व्‍यास सम्‍मान के बारे में
व्यास सम्मान की शुरुआत 1991 में केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा की गई थी। यह सम्मान किसी भारतीय लेखक को पिछले 10 वर्ष के भीतर प्रकाशित उसकी किसी उत्कृष्ट कृति को मिलता है। इसके तहत 4 लाख रुपए की पुरस्कार राशि के साथ एक प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिन्ह भेंट किया जाता है। 

केके बिड़ला फाउंडेशन के निदेशक डॉक्टर सुरेश ऋतुपर्ण ने प्रेस क्लब इंदौर में आयोजित सम्मान समारोह में कहा की शरद पगारे जी का यह उपन्यास रचनात्मकता और कलात्मकता का अद्भुत संयोग है, इसमें पाटली पुत्र की साम्राज्ञी और सम्राट अशोक की मां धर्मा के जीवन संघर्ष और उनकी राजनीतिक दक्षता का दिलचस्प व्याख्या है।
 
निदेशक डॉक्टर ऋतुपर्ण ने यह भी बताया कि किस तरह से और किन स्थितियों में केके बिड़ला सम्मान की शुरुआत हुई। उन्होंने कहा की इस सम्मान की खासियत यह है की इसमें किसी की सिफारिश नहीं चलती। अब पगारे जी की सिफारिश करने वाला कौन था, लेकिन उनकी रचनाओं ने उन्हें यहां तक पहुंचाया। पगारे जी का लेखन अमूर्त को मूर्त बनाता है, वे अपनी भाषा और शब्दों से मूर्तियां गढ़ते हैं। 
 
मंच पर देवी अहिल्या विश्व विद्यालय की कुलपति रेणु जैन, ख्यात उद्घोषक सुशील दोषी और प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी उपस्थित थे।

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलपति रेणु जैन ने कहा यह न सिर्फ पगारे जी के लिए बल्कि इंदौर शहर के लिए गौरव की बात है, उनकी इस उपलब्धि के लिए मैं उन्हें बधाई देती हूं। जिस तरह से पगारे जी की लेखनी के बारे में मैंने सुना है, उससे पाटली पुत्र की साम्राज्ञी उपन्यास को पढ़ने की तीव्र इच्छा जाग्रत हो गई है। मैं तो गणित विषय की स्टूडेंट रही हूं, लेकिन इस सम्मान के बाद साहित्य में भी मेरी दिलचस्पी जाग गई है। श्री पगारे जी को इस उपलब्धि पर बहुत बधाई।

आयोजन का संचालन श्रुति अग्रवाल ने किया।

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