जानिए क्यों कहलाए आचार्य विनोबा भावे भूदान आंदोलन के जनक
आचार्य विनोबा भावे : जिन्होंने दिया लाखों गरीब किसानों को जीने का सहारा
आचार्य विनोबा भावे जयंती 2024 : महान विचारक व स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा (अब रायगढ़) जिले के गागोडे गांव में हुआ था। विनोबा भावे को भूदान आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है और वे कन्नड़, गुजराती, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और संस्कृत सहित विभिन्न भाषाओं में निपुण थे। वे भगवद्गीता, महाभारत, और रामायण जैसे कालजयी ग्रंथों के पठन, पठान एवं श्रवण से हमेशा प्रभावित रहे।
'जय जगत' का नारा दिया
भू-दान यज्ञ के प्रणेता और सर्वोदय की धारा को जन-जन तक प्रवाहित करनेवाले संत विनोबा भावे का नारा 'जय जगत' आज भी प्रासंगिक है। उनका जीवन गांधीवादी सिद्धांतों की अभिव्यक्ति था। 'जय जगत' का नाराफेने वाले आचार्य विनोबा भावे सामाजिक सशक्तिकरण के प्रति अत्यंत भावुक थे। विनोबा भावे वर्ष 1958 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे। 1983 में मरणोपरांत, उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
क्यों कहलाए भूदान आंदोलन के प्रणेता
विनोबा भावे एक महान् विचारक, लेखक और विद्वान थे जिन्होंने ना जाने कितने लेख लिखने के साथ-साथ संस्कृत भाषा को आमजन मानस के लिए सहज बनाने का भी सफल प्रयास किया। विनोबा भावे एक बहुभाषी व्यक्ति थे। उनका कहना था कि उन्हें गांधी जी में हिमालय जैसी शक्ति दिखती थी। 1955 में 'भूदान आंदोलन' का विचार उमके मन में तब जन्मा जब देश में अशांति का माहौल था। 30 जनवरी, 1948 में को गांधी जी की हत्या के बाद उनके अनुयायी दिशा-निर्देश के लिए विनोबा भावे की ओर देख रहे थे।
उनके इस आंदोलन ने लोगों के बीच अपार जागरूकता का संचार किया साथ ही स्वैच्छिक सामाजिक न्याय के दृष्टिगत छेड़ा गया उनका यह आंदोलन पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुआ। यहां तक कि उत्तर प्रदेश और बिहार में राज्य सरकार ने भूदान एक्ट भी पास कर दिया। उनका मानना था, “सबै भूमि गोपाल की" अर्थात, हवा और पानी की तरह भूमि पर भी सबका अधिकार होना चाहिए। उनका ये मानना था कि भारतीय समाज की पूर्ण परिवर्तन के लिए 'अहिंसक क्रांति' छेड़ने की आवश्यकता है।
उनका कहना था कि देश ने स्वराज प्राप्त कर ही लिया है, ऐसे में लोगों का उद्देश्य सर्वोदय के लिए समर्पित होना चाहिए। तेलंगाना (आंध्र प्रदेश) में वामपंथियों की अगुवाई में एक हिंसक संघर्ष चल रहा था। यह भूमिहीन किसानों का आंदोलन था। वामपंथियों की मंशा ये दिखाने की भी थी कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था कभी सफल नहीं हो सकती। जब विनोबा को इस संघर्ष की सूचना मिली तो उन्होंने पैदल ही वहां जाने का संकल्प लिया। आंदोलन कर रहे किसानों ने उनसे अपनी आजीविका के लिए 80 एकड़ जमीन की मांग करते हुए कहा कि यदि उनके समुदाय के 40 परिवारों के लिए 80 एकड़ जमीन मिल जाए तो उससे उनके परिवारों का गुजारा हो जाएगा।
विनोबा जी में उनकी मांग सुनकर उस क्षेत्र के जमींदारों से बात की। विनोबा जी की बातों का उस इलाके के रामचंद्र रेड्डी नाम के एक संपन्न जमींदार पर इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने उसी समय अपनी सौ एकड़ जमीन भूमिहीन किसानों को दान कर दी। विनोबा भावे की अगुवाई में पूरे भारत में 13 वर्षों तक भूदान आंदोलन चलता रहा। इस आंदोलन के दौरान उन्होंने देश के कोने-कोने तक पदयात्रा की। इसके पीछे विनोबा जी की मंशा मनुष्य के अंदर के तत्व को जगाकर सामाजिक परिवर्तन लाने की थी।
महाराष्ट्र के वर्धा का 'गीताई मंदिर'
विनोबा भावे अपनी पूरी जिंदगी सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए गरीब और बेसहारा लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देशवासियों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर, स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने की अपील भी की। स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान उन्हें पांच साल कारावास की सजा भी हुई। जेल प्रवास के दौरान गीता पर दिये गये उनके प्रवचन बहुत विख्यात भी हुए। पनी माँ के आग्रह पर उन्होंने श्रीमदभगवद्गीता का गीताई नामक मराठी काव्यानुवाद भी किया था। महाराष्ट्र के वर्धा आश्रम से उन्होंने महाराष्ट्र धर्म नाम से मराठी भाषा की एक मासिक पत्रिका भी निकाली थी। इसके पीछे उनका मकसद देशवासियों में वैदिक ज्ञान- विज्ञान और उपनिषद के संदेशों को पहुंचाने का था।
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