Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

रानी पद्मिनी के जीवन पर आधारित मान्य कृति : ल‍ड़ें नहीं, पढ़ें

हमें फॉलो करें रानी पद्मिनी के जीवन पर आधारित मान्य कृति : ल‍ड़ें नहीं, पढ़ें
ब्रजेन्द्रकुमार सिंहल​ की पुस्तक : रानी पद्मिनी, चित्तौड़ का प्रथम ​जौहर 
 
...जोधराज कृत हम्मीर-रासो, से इस बात की भी पुष्टि होती है कि अलाउद्दीन पर विजय प्राप्त करके महाराज हम्मीर शत्रुओं से छीनी हुई विजय की ध्वजाओं को आगे किये गढ़ लौटे तो उनकी सेना को शत्रु की विजयी सेना समझकर तब तक रानी परिवार की वीर महिलाओं के साथ अग्नि में प्रवेश कर चुकी थीं…” ​​​​डॉ. इमरै बंघा/ हिन्दी प्रवक्ता/ ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय ​
 
सूफी कवि जायसी कृत पद्मावत विश्व के सुन्दरतम प्रेमाख्यानों में से एक है। रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी ने इस प्रेमाख्यान द्वारा रत्नसेन और पद्मिनी के प्रेम को अमर बनाया है। यह बात शायद कुछ ही लोगों को ज्ञात होगी कि इन आदर्श प्रेमी-प्रेमिकाओं की तथा चित्तौड़गढ़ पर प्रथम आक्रमण की कथाओं को लेकर और भी कई साहित्यिक रचनाओं का सृजन हुआ है। 
 
इस पुस्तक में इन कथाओं से सम्बन्धित राजस्थानी रचनाओं पर लेखक श्री ब्रजेन्द्रकुमार सिंहल ने नया प्रकाश डाला है। श्री सिंहल इस प्रेम व युद्ध से सम्बन्धित अज्ञात रचना, पद्मिनी​ ​समिओ का एक प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ के आधार पर प्रथम बार सानुवाद​ ​प्रकाशन करा रहे हैं। इसके साथ-साथ इस रचना से काफी हद तक मिलनेवाली ‘गोरा-बादल- कथा’ का भी पाठान्तर व अनुवाद सहित नया प्रकाशन हो रहा है। 
 
जैसा कि ब्रजेन्द्रकुमार सिंहल की दूसरी पुस्तकों में होता है, यहां भी सम्पादित पाठ के साथ विस्तृत विचार-विमर्श है। उनका अध्ययन न केवल रचनाओं की पाण्डुलिपियों पर और रचनाओं के इतिहास पर प्रकाश डालता है बल्कि इन रचनाओं की एक दूसरे से तथा इस विषय पर लिखित कुछ अन्य रचनाओं के साथ तुलना भी करता है।
 
डॉ. आनन्दप्रकाश दीक्षित/ अध्यक्ष, हिन्दी-विभाग/ पुणे विश्वविद्यालय
 
समीक्षा : विद्वान् ग्रंथकर्ता की विचारणीय दो कृतियां हैं, जिन पर उन्होंने बड़े परिश्रमपूर्वक सर्वांगीण विचार किया है और कोई ऐसा कोना नहीं छोड़ा है जिसकी गहरी और सतर्क छानबीन न की हो। जहां प्रसंगतः अन्य कृतियों के विचार की जितनी आवश्यकता हुई उन्होंने यथासंभव उनका उपयोग किया है। पाठ-सम्पादन बड़ा दुष्कर और गंभीर साधना का काम है। श्रीयुत सिंहल ने पाठ-सम्पादन में जितने परिश्रम और ध्यान से पाठभेद को लक्षित किया है उतने, बल्कि उससे भी कहीं अधिक ध्यान से वे इस कथा से सम्बन्धित मूल विवेच्य और इतर काव्यों की सूक्ष्म पड़ताल में गये हैं और साथ ही अपने विवेचन में उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर घटनाओं तथा पात्रों का पूरे ब्यौरे के साथ विवेचन करते हुए अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं।
 
प्रस्तुत ग्रंथ के कर्ता श्रीसिंहल का विचार है कि पद्मिनी रणथम्भौर से सम्बन्धित है और रणथम्भौर के किले में कुछ स्थलों के नाम इसके प्रमाण हैं। उनके विचार से पद्मिनी महाराज हम्मीर की पुत्री थी। सत्य क्या है इसका निर्णय तो इतिहासकार ही कर सकते हैं, परन्तु राणा रत्नसेन और महाराज हम्मीर का समकालीन होना तो इतिहास-सिद्ध है ही और यह भी कि दोनों का युद्ध अलाउद्दीन खिलजी से हुआ था। जोधराज कृत ‘हम्मीर-रासो’ से इस बात की भी पुष्टि होती है कि अलाउद्दीन पर विजय प्राप्त करके महाराज हम्मीर शत्रुओं से छीनी हुई विजय की ध्वजाओं को आगे किये गढ़ लौटे तो उनकी सेना को शत्रु की विजयी सेना समझकर तब तक रानी परिवार की वीर महिलाओं के साथ अग्नि में प्रवेश कर चुकी थीं। यह देखकर दुखी हम्मीर ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि चित्तौड़ जाकर कुंवर रत्नसेन की रक्षा करें। ​
 
‘कुंवर’ शब्द का प्रयोग जहां सिंहासनासीन होने से पूर्व ‘राजकुमार’ होने की अवस्था के लिए होता है, वहीं ‘जामाता’ के लिए भी होता है। यदि यह वर्णन सही है तो रत्नसेन हम्मीर के जामाता हो सकते हैं और यदि सचमुच ऐसा है तो श्रीसिंहल की ‘सिंहल’ और ‘पद्मिनी’ विषयक धारणा में भी बल हो सकता है। विद्वानों को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और जब तक इसका सप्रमाण खण्डन न हो जाय, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।


पुस्तक : रानी पद्मिनी, चित्तौड़ का प्रथम ​जौहर 
लेखक : ब्रजेन्द्रकुमार सिंहल
मूल्य :  600 रु. 
पृष्ठ : 282
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 
webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मानव को प्रेरणा देते हैं श्रीमद्भगवद्गीता के 10 अनमोल विचार