Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पुस्तक समीक्षा : मेमोयर्स ऑफ़ गेइशा

हमें फॉलो करें पुस्तक समीक्षा : मेमोयर्स ऑफ़ गेइशा
webdunia

देवयानी एस.के.

झुकी झुकी वोह नज़र, होंठों पर अल्हड़ सी मुस्कान… हलके हलके पलकें उठाना और शरमा कर फिर नज़रें चुराना। बस इन पल दो पल की अठखेलियों में भी जो किसी को भी दीवाना बना दे वह होती है असली गेइशा। ना शरीर की नुमाइश और ना ही कोई ओछापन। बस कुछ नखरें, कुछ अदाएं, जरा सी शरारत और हलका सा फ्लर्टिंग!
 
गेइशा! जापान के इतिहास का और तात्कालीन जापानी समाज जीवन का एक अटूट अंग।
 
'Memoirs of a Geisha' लेखक आर्थर गोल्डन की लिखी यह किताब १९९७ में प्रकाशित हुई। जापानी गेइशाऐं और उनके जीवन का विस्तृत चित्रण इस पुस्तक में किया गया है।
 
गेइशा का मतलब क्या है? गेइशा होती क्या है? वह करती क्या है?
 
गेइशा शब्द का शब्दशः अर्थ है 'कलाकार' पुरुषों को रिझाने वाली, उनका मनोरंजन करने वाली स्त्री।
 
एक कुशल गेइशा बनने के लिए केवल खूबसूरती ही काफी नहीं होती। खूबसूरती बेशक मायने रखती है पर एक अच्छी गेइशा को संभाषण कला में भी निपुण होना भी बेहद जरूरी होता है।
 
घर-संसार के तनावों से कुछ पलों के लिए राहत देने वाली जादू की पुड़ियां होती है गेइशा। मधुर मीठी बातों से रिझाने वाली सखी होती है गेइशा। कभी मनमोहने वाली अप्सरा तो कभी परामर्श देनेवाली मित्र होती है गेइशा।
 
 
गेइशा के कई रूप होते हैं। कभी कविताएं रचती, तो कभी वाद्य पर कोई धुन छेड़ती, कभी चुटकुले सुनाकर हंसाती तो कभी आपकी परेशानियों से भरा माथा अपने नाजुक हाथों से सहलाती।
 
गेइशाओं की बस अपनी एक अलग ही दुनिया होती थी। ये दुनिया बनाई गयी थी पुरुषों के सुख के लिए। यहां पर दु:ख, चिंता, परेशानियों के लिए कोई जगह नही। यहां बसेरा था सिर्फ और सिर्फ सौंदर्य का, खुशियों का। यहां हंसी मुस्कानों की बहारें हैं, खुशबू उड़ाता यौवन है, अक्षय पात्र से मदिरा बहती है और सिक्कों की छनछनाहट पर मोहब्बतें पनपती हैं, परन्तु इस जन्नत का निर्माण करने में ना जाने कितने दु:खों की आहुती देनी पड़ती होगी इसकी कल्पना भर से ही दिल कांप उठता है।
 
 
सपनों के इस महल की नींव रखी जाती थी टूटे घरों के पत्थरों से। उजड़ा बचपन, बिछड़ा घर द्वार, बिखरी जिंदगियां और अश्क बहाती आंखे। उन मुस्कुराते मुखौटों के पीछे का ये था भयानक सच।
 
'मेमोयर्स ऑफ गेइशा' की कहानी शुरू होती हैं १९२० के जापान में। बीमार मां, बूढ़ा बाप और उनकी दो बेटियां। जापान के समुद्री तट के किसी छोटे से गांव में रहने वाला एक अत्यंत गरीब परिवार। हालातों से थक कर मां बाप की हिम्मत जवाब दे जाती है, दिल पर पत्थर रख कर वे अपनी बेटियों को चंद रुपयों के बदले बेचने का फैसला कर लेते हैं। रातो-रात रोती बिलखती बच्चियों को उनके घर से अलग कर दिया जाता है।
 
थरथराते नन्हे कदम और आंखों में सैलाब लिए ये बहने पहुंचती हैं क्योटो में। क्योटो! सपनों का शहर। मायानगरी। क्योटो। कला, साहित्य, स्थापत्य और संस्कृति के लिए सुप्रसिद्ध क्योटो शहर वहां की गेइशाओं के लिए भी जाना जाता था। क्योटो की गेइशायें सारे जापान में सबसे ज्यादा रूपवान और गुणवान मानी जाती थीं।
 
गेइशाओं की दुनियां में घर परिवार की परिभाषा बहुत भिन्न होती थी। किसी घर या परिवार का मतलब होता है गेइशाओं का एक समूह या ग्रुप। ऐसे कई परिवार क्योटो शहर में थे। कुछ जाने माने तो कुछ सामान्य। परिवारों का ओहला परिवार की प्रमुख गेइशा की कमाई पर निर्भर करता था।
 
गेइशाओं के घरों में लाई गयी लड़कियों के पास जिन्दगी बसर करने के बस दो रास्ते होते थे। एक तो सारा जीवन घर में नौकरानी बनकर गुज़ार दें और अंत में घुट घुट के मर जाऐं या तो फिर ईश्वर से प्रार्थना करें की उन्हें गेइशा बनने का मौका मिले ताकि उनकी कांटों भरी राहें थोड़ी बहुत ही सही पर आसान तो हों।
 
अगर लड़की देखने में सुन्दर हो और उस पर घर के मालकिन की मेहरबान नज़र पड़े तो लड़की की किस्मत चमक उठतीं थी। ऐसी लड़कियों को चुन कर उनको गेइशा बनाने की तालीम शुरू हो जाती। दोनों बहनों में से छोटी बहन चिओ का नसीब भी एक दिन खिल उठता हैं और उस का गेइशा बनने का प्रशिक्षण शुरू होता है।
 
 
नृत्य, गायन, वादन, काव्य, चित्रकारी गेइशा शिक्षण के ये कुछ महत्वपूर्ण अंग होते हैं। वस्त्र -परिधान, इत्र, फूल, आभूषण, श्रृंगार, केशरचना इन सब विषयों का सखोल अभ्यास साथ साथ संभाषण कला के गुर सीखना भी अति आवश्यक होता था। उसका खास प्रशिक्षण दिया जाता था। किस्से - कहानियां, हंसी चुटकुले, सामान्य ज्ञान, मौजूदा सियासत और सामाजिक जीवन के बारे में जानकारी होना एक परिपूर्ण गेइशा प्रशिक्षण का हिस्सा होता था।
 
 
लेकिन सबसे प्रमुख पहलू जो पूरी तालीम की बुनियाद होती थी वो थी पुरुषों को मोहने की कला। जी हां, गेइशा पाठशाला में पुरुषों को रिझाने की बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती थी। अधरों की सुर्ख़ी, आंखों में शराब।। कमर का बल खाना और वो मंद मंद मुस्काना। गज़ब की नज़ाकत से उसका करीब आना। मखमली उंगलियों से हलके से छूना और उफ़्फ़ शरमा के फिर वो दूर हो जाना। एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह एक गेइशा अपनी चालें चलना खूब जानती थी। बला की खूबसूरत और दिलकश ये नाजुक परियां कई वर्षों के कठोर परिश्रम और प्रशिक्षण का परिणाम होती थीं!
 
 
चिओ का जीवन सफ़र इस पुस्तक का अहम् हिस्सा है पर ये कहानी केवल उसी की नहीं, बल्कि चिओ की अंगुली थामे हम पहुंच जाते हैं करीबन सौ साल पूर्व के जापान में। तात्कालीन जापान का समाज जीवन, लोगों का रहन सहन, विचार धारा, राजनैतिक उतार-चढ़ाव का बेहद प्रभावी चित्रण इस पुस्तक में किया गया है।
 
गेइशाओं की जगमगाती दुनियां का अनन्य साधारण अंग होते हैं उनके आश्रय दाता। इनमे कोई बड़े उद्योगपती होते थे तो कोई फौज में उच्चाधिकारी। कोई राजनेता थे तो कोई कॉर्पोरेट वर्ल्ड के ऊंचे स्थान पर। भिन्न भिन्न किरदार, भिन्न भिन्न स्वभाव विशेष।। लेखक ने अपने कलम की ताकत से सारे किरदारों में प्राण फूंक दिए हैं।
 
 
क्योटो की गलियां, सड़कें, वहां के घर, बगीचे, दुकानें। गेइशाओं के परिवार, रिश्ते नाते, दोस्ती, मोहब्बत और नफरतें।।। दुनियां के सारे रंग लिए किसी चित्रकार ने जैसे एक कैनवस पर खूबसूरत पैंटिंग बनायी हो।
 
'मेमोयर्स ऑफ़ गेइशा' पर २००५ में इसी नाम से एक फिल्म भी बनी। निर्माता थे स्टीवन स्पीलबर्ग और दिग्दर्शक रॉब मार्शल। पुस्तक का विस्तार काफी भव्य है। साढ़े चार सौ पन्नो की कथा रुपहले परदे पर उतारना स्पीलबर्ग और मार्शल के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। लेकिन दोनों इस कठिन लक्ष्य में सौ प्रतिशत कामयाब हुए। इस कथा को रॉब मार्शल ने बड़ी सक्षमता के साथ परदे पर उकेरा है, सिनेमेटोग्राफी लाजवाब है।
 
कई बार ये होता हैं की संजीदा विषय पर बनी फिल्में स्क्रीन पर बड़ी डार्क, म्लान सी लगती हैं। लेकिन इस फिल्म में ऐसा नहीं होता। फिल्म गंभीर जरूर है पर देखने में बोझिल और उदास नहीं लगती।
 
स्क्रीनप्ले जबरदस्त है और एडिटिंग एकदम सटीक। आर्थर गोल्डन की इस बेहतरीन कथा को बेहद सुंदरता से रुपहले परदे पर साकार करने का बहुत बड़ा श्रेय जाता है फिल्म के कलाकारों को। कहानी के सारे किरदार मानो सजीव होकर किताब से सीधे स्क्रीन पर उतर आते हैं।
 
 
'मेमोयर्स ऑफ़ गेइशा' केवल एक पुस्तक या एक चित्रपट नहीं बल्कि ये आलेख है एक देश के सामाजिक परिवर्तन का, चित्रण है भावनाओं के ताने बाने का, दस्तावेज है ऐतिहासिक घटनाओं का, सफर है यादों का।
 
'मेमोयर्स ऑफ़ गेइशा'। ये संस्मरण है एक गेइशा का!

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

लोकसभा चुनाव 2019 भविष्यवाणी : सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर